अलख/alakha

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अलख  : वि० [सं० अलक्ष्य] १. जिसका आकार या रूप दिखाई न पड़ता हो। अदृश्य। २. जिसका ज्ञान इंद्रियों द्वारा न हो सकता हो। अगोचर। उदाहरण—तुलसी अलखै का लखै, राम नाम भजु नीच।—तुलसी। पुं० =वह जो दिखाई न पड़े अर्थात् ईश्वर। मुहावरा—अलख जगाना=(क) अलख, अलख पुकार कर अलक्ष्य (ईश्वर) को स्मरण करना और दूसरों को भी उसे स्मरण करते रहने के लिए प्रेरित करना। (ख) अलक्ष्य (ईश्वर) के नाम पर भिक्षा माँगना।
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अलख-निरंजन  : पुं० [हिं० +सं० ] ईश्वर। परमात्मा।
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अलख-पुरुष  : पुं० [हिं० +सं० ] ईश्वर। परमात्मा।
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अलखधारी  : पुं०=अलखनामी।
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अलखनामी  : पुं० [सं० अलक्ष्य+नाम] गोरखनाथ के अनुयायी साधुओं का एक संप्रदाय। अलखधारी। अलखिया। (ऐसे साधु गलियों बाजारों में ‘अलख’ ‘अलख’ पुकारते फिरते है)
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अलखित  : वि० =अलक्षित।
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अलखिया  : पुं० =अलखनामी (संप्रदाय)।
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