शब्द का अर्थ
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					आकर					 :
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					पुं० [सं० आ√कृ(करना)+घ] १. खान। २. वह स्थान जहाँ किसी वस्तु की बहुतायत हो। आधान। ३. खजाना। जैसे—गुणाकर, रत्नाकर। ४. उत्पत्ति का स्थान। ५. तलवार चलाने का एक ढंग। वि० १. श्रेष्ठ। २. बहुत अधिक या यथेष्ठ। ३. खान में निकलने या प्राप्त होनेवाला। पुं०=आक (मदार)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					आकर-भाषा					 :
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					स्त्री० [ष० त०] वह मूल भाषा जो किसी दूसरी भाषा की जननी हो तथा उसे अपने शब्दभांडार से निरंतर पुष्ट तथा संवर्द्धित करती हो। जैसे—गुजराती, बंगला, हिन्दी आदि की आकर भाषा संस्कृत है।				 | 
			
			
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					आकरकरहा					 :
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					पुं० [अ०] दे० ‘अकरकरा’।				 | 
			
			
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					आकरखाना					 :
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					स० [सं० आकर्षण] अपनी ओर आकृष्ट करना। खीचना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					आकरसना					 :
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					स० [सं० आकर्षण] अपनी ओर आकृष्ट करना। खींचना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					आकरिक					 :
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					वि० [सं० आकर+ठञ्+इनि] १. खान में काम करनेवाला। २. सुरंग बनाने या खोदनेवाला।				 | 
			
			
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					आकरिक					 :
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					वि० [सं० आकर+ठञ-इक] १ खान में काम करनेवाला। २. सुरंग बनाने या खोदनेवाला।.				 | 
			
			
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					आकरिका					 :
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					स्त्री० [सं० आ√कृ+ण्वुल्-अक-टाप्, इत्व] दे० ‘रूप विधान’।				 | 
			
			
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					आकरी (रिन्)					 :
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					वि० [सं० आकर+इनि] १. खान से निकाला हुआ (खनिज पदार्थ)। २. अच्छी जाति या नस्ल का। स्त्री० [सं० आकर] १. खान खोदकर उसमें से चीजें निकालने का काम या व्यवसाय। २. सुरंग बनाने का काम। स्त्री०-आकुलता। पुं० दे० ‘आकरिक’।				 | 
			
			
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					आकर्ण					 :
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					अव्य० [सं० अव्य० स०] काम तक। वि० कानों में पहुँचा या सुना हुआ।				 | 
			
			
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					आकर्णित					 :
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					भू० कृ० [सं० आ√कर्ण् (सुनना)+क्त] सुना हुआ।				 | 
			
			
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					आकर्ष					 :
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					पुं० [सं० आ√कृष् (खींचना)+घञ्] १. अपनी ओर खींचना। २. पासे से खेला जानेवाला जुआ। ३. ऐसे खेल की बिसात। ४. इंद्रिय। ५. धनुष चलाने का अभ्यास। ६. कसौटी। ७. चुंबक पत्थर।				 | 
			
			
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					आकर्षक					 :
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					वि० [सं० आ√कृष्+ण्वुल्-अक] १. आकर्षण करने या खींचनेवाला। २. प्रभावित या मोहित करके अपनी ओर ध्यान खींचनेवाला। (एट्रैक्टिव)				 | 
			
			
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					आकर्षण					 :
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					पुं० [सं० आ+कृष्+ल्युट्-अन] [वि० आकर्षक, भू० कृ० आकर्षित, आकृष्ट] १. अपने बल या शक्ति की सहायता से किसी को अपनी ओर ले आना। खीचंना। २. अपने गुण, विशेषता आदि के बल पर किसी का ध्यान अपनी ओर ले आना। ३. वह व्यापार जो किसी का ध्यान या मन अपनी ओर खींचने या अपने पास बुलाने के लिए किया जाता है। (एट्रैक्शन)				 | 
			
			
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					आकर्षण-शक्ति					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] १. ऐसी शक्ति जो किसी को अपनी ओर खींचे। २. वह गुण, विशेषता या शक्ति जो किसी को प्रभावित तथा मोहित करे या अपनी ओर अनुरक्त या प्रवृत्त करे।				 | 
			
			
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					आकर्षणी					 :
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					स्त्री० [सं० आकर्षण+ङीष्] १. एक प्राकर का पुराना सिक्का। २. अँकुसी।				 | 
			
			
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					आकर्षन					 :
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					पुं०=आकर्षण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					आकर्षना					 :
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					स० [सं० आकर्षण] १. अपनी ओर खींचना। २. प्रभावित या मोहित करके अपनी ध्यान खींचना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					आकर्षित					 :
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					भू० कृ० [सं० आकृष्ट] १. खिंचा हुआ। २. जो किसी से प्रभावित होकर उसकी ओर अनुरक्त या प्रवृत्त हुआ हो।				 | 
			
			
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					आकर्षी (र्षिन्)					 :
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					वि० [सं० आ√कृष्+णिनि]-आकर्षक।				 | 
			
			
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