शब्द का अर्थ
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					आतुर					 :
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					वि० [सं० आ√अत् (सतत गमन)+उरच्] १. जिसे घाव या चोट नगी हो। घायल। २. उत्कट आकांक्षा या इच्छावाला। ३. जो किसी कार्य या फल की विकलता पूर्वक प्रतीक्षा करता हो और बहुत जल्दी उसकी सिद्धि या प्राप्ति चाहता हो। उतावला। ४. (कार्य) जो बिना अच्छी तरह सोचे समझे केवल विकलता की दशा में जल्दी-जल्दी कर लिया जाए। जैसे—आतुर संन्यास। ५. बेचैन। विकल। अव्य० बहुत जल्दी और घबराहट में। पुं० १. बीमारी। रोग। २. बीमार। रोगी।				 | 
			
			
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					आतुर-सन्यास					 :
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					स्त्री० [सं० ष०त०] ऐसा सन्यास जो रुग्ण अथवा सांसारिक जीवन से दुखी और निराश होने की दशा में केवल घबराहट और जल्दी में ग्रहण किया जाए।				 | 
			
			
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					आतुरता					 :
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					स्त्री० [सं० आतुर+तल्-टाप्] १. आतुर होने की अवस्था या भाव। २. उतावलापन। जल्दी। ३. बीमारी। रोग।				 | 
			
			
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					आतुरताई					 :
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					स्त्री० =आतुरता।				 | 
			
			
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					आतुराना					 :
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					अ० [सं० आतुर] किसी काम या बात के लिए बहुत अधिक आतुर या उतावला होना। स०किसी को आतुर या उतावला करना।				 | 
			
			
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					आतुरालय					 :
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					पुं० [सं० आतुर-आलय, ष० त०] आतुरशाला। चिकित्सालय।				 | 
			
			
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					आतुरी					 :
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					स्त्री० [सं० आतुर्य+ङीष्, यलोप]=आतुरता।				 | 
			
			
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					आतुर्य					 :
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					पुं० [सं० आतुर+ष्यञ्]-आतुरता।				 | 
			
			
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