आर्थी-व्यंजना/aarthee-vyanjana

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आर्थी-व्यंजना  : स्त्री० [सं० व्यस्त०पद] साहित्य में, व्यंजना (शब्द शक्ति) का वह प्रकार या भेद जिसमें स्वयं शब्दों से नहीं, बल्कि उनके द्वारा निकलनेवाले अभिप्राय या आशय से अथवा शारीरिक चेष्टा, व्यंग्य काकु, प्रसंग आदि के द्वारा कोई विशेष अर्थ या भाव व्यंजित होता है। जैसे—‘बाल-मराल कि मंदर लेही’। से वक्ता यह बतलाना चाहता है कि रामचंद्र धनुष नहीं उठा सकते।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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