आसु/aasu

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आसु  : सर्व० [सं० अस्य] इसका। पुं० [सं० आश] प्राण। जीवनी शक्ति। अव्य० =आशु (जल्दी)। उदाहरण—जारहि भवन चारि दिसि आसू।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आसुग  : वि० =आशुग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आसुत  : भू० कृ० [सं० आ√सु+क्त] =आसवित।
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आसुति  : स्त्री० [सं० आ√सु+क्तिन्] १. आसवन करने की क्रिया या भाव। २. प्रसव।
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आसुर-विवाह  : पुं० [सं० ] आठ प्रकार के विवाहों में से एक जिसमें कन्या के माता-पिता को धन देकर उनसे कन्या ली जाती थी और तब पत्नी के रूप में अपने घर में रखी जाती थी।
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आसुरी  : वि० [सं० आसुर] १. असुर संबंधी। असुरों का। जैसे—आसुरीमाया। २. असुरों की तरह का। जैसे—आसुरी विवाह। ३. असुरों के ढंग से (अर्थात् उग्रता, क्रूरता, निर्दयता आदि से) किया हुआ। जैसे—आसुरी चिकित्सा, आसुरी संपत् आदि। स्त्री० [सं० असुर+अण्+ङीष्] १. असुर या राक्षस जाति की स्त्री। २. वैदिक छंद का एक भेद। ३. राई। ४. सरसों। ५.एक प्रकार का सिरका।
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आसुरी चिकित्सा  : स्त्री० [सं० व्यस्त पद] १. ऐसी उग्र या क्रूरतापूर्ण चिकित्सा जिसमें रोगी के उन शारीरिक कष्टों का कुछ भी ध्यान न रखा जाए जो चिकित्सा के फलस्वरूप होते है। २. चीर-फाड़ आदि के रूप में होनेवाली चिकित्सा। शल्य-चिकित्सा।
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आसुरी संपत्  : स्त्री० [सं० व्यस्त पद] असुरों की तरह अनीति, अन्याय या कुमार्ग से अर्जित अथवा प्राप्त किया हुआ धन या वैभव। बुरी कमाई।
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आसुरी-विवाह  : पुं०=आसुर-विवाह।
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