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			| शब्द का अर्थ |  
				| उलटवाँसी					 : | स्त्री० [हिं० उलटा+सं० वाचा] साहित्य में ऐसी उक्ति या कथन (विशेषतः पद्यात्मक) जिसमें असंगति, विचित्र, विभावना, विषम, विशेषोक्ति आदि अलंकारों से युक्त कोई ऐसी विलक्षण बात कही जाती है जो प्राकृतिक नियम या लोक-व्यवहार के विपरीत होने पर भी किसी गूढ़ आशय या तत्त्व से युक्त होती है। जैसे—(क) पहिले पूत पाछे भइ माई। चेला के गुरू लागै पाई।—कबीर। (ख) समंदर लागी आगी माइ। नदियाँ जरि कोइला भई।—कबीर। |  
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं |  
				| उलटवाँसी					 : | स्त्री० [हिं० उलटा+सं० वाचा] साहित्य में ऐसी उक्ति या कथन (विशेषतः पद्यात्मक) जिसमें असंगति, विचित्र, विभावना, विषम, विशेषोक्ति आदि अलंकारों से युक्त कोई ऐसी विलक्षण बात कही जाती है जो प्राकृतिक नियम या लोक-व्यवहार के विपरीत होने पर भी किसी गूढ़ आशय या तत्त्व से युक्त होती है। जैसे—(क) पहिले पूत पाछे भइ माई। चेला के गुरू लागै पाई।—कबीर। (ख) समंदर लागी आगी माइ। नदियाँ जरि कोइला भई।—कबीर। |  
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं |  |