कंठ/kanth

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कंठ  : पुं० [सं०√कण् (शब्द करना)+ठ] १. गरदन। गला। २. गले का वह भीतरी भाग जिसके अंदर वे नलियाँ होती हैं जिनसे भोजन पेट में जाता है और आवाज या स्वर निकलता है। ३. गले से निकली हुई आवाज या स्वर। मुहावरा—कंठ फूटना=(क) वर्णों के स्पष्ट उच्चारण का आरंभ होना। बोलने लगना। (ख) मुँह से शब्द निकलना। ४. तोते आदि पक्षियों के गले पर लाल, नीली आदि कई रंगों की वृत्ताकार लकीर। हँसली। ५. किनारा। तट। ६. मैनफल। वि० (कविता बात आदि) जो जबानी याद हो। कंठस्थ। जैसे—उन्हें सारी गीता कंठ है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
कंठ-कुब्ज  : पुं० [ब० स०] एक प्रकरा का सन्निपात। (वैद्यक)
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कंठ-कूणिका  : स्त्री० [उपमि० स०] वीणा।
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कंठ-गत  : वि० [द्वि० त०] गले तक या गले में आया हुआ। जैसे—किसी के प्राण कंठगत होना।
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कंठ-तालव्य  : वि०=कंठ्य-तालव्य।
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कंठ-मणि  : पुं० [मध्य० स०] १. कंठहार। २. घोड़े के गले के पास होने वाली एक भौंरी।
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कंठ-माला  : स्त्री० [मध्य० स०] गले में होनेवाला एक प्रकार का रोग, जिसमें जगह-जगह गिल्टियाँ निकल आती हैं। (स्क्रॉफ्यूला)
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कंठ-शूल  : पुं० [स० त०] घोड़े के गले की एक भौंरी।
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कंठ-श्री  : स्त्री० [मध्य० स०] १. गले में पहनने का एक प्रकार का जड़ाऊ गहना। २. कंठी। माला।
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कंठ-सिरी  : स्त्री० कंठ-श्री।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कंठ-हार  : पुं० [ष० त०] १. गले में पहनने का हार। २. ऐसी वस्तु जो किसी से सदा चिपकी या लगी रहे तथा जिससे जल्दी पीछा न छूटे।
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कंठस्थ  : वि० [सं० कंठ्स्था (ठहरना)+क] १. गले में आकर अटका, ठहरा या रुका हुआ। २. जबानी याद किया हुआ। जैसे—पाठ कंठस्थ होना।
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कँठहरिया  : स्त्री०=कंठी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कँठहरी  : स्त्री०=कंठी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कंठा  : पुं० [हिं० कंठ] १. बड़ी कंठी, जिसमें बड़े-बड़े मनके होते हैं। २. काले, लाल आदि रंग की वह रेखा, जो कई प्रकार के पक्षियों के गले में रहती है। ३. अँगरखे या कुरते का वह गोलाकार भाग, जो गले पर पड़ता है।
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कंठाग्र  : वि० [कंठ-अग्र, ष० त०] (कविता, पद्य आदि) जो जबानी याद किया गया हो। कंठस्थ।
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कंठाल  : पुं० [सं०√कंठ् (स्मरण करना)+आलच्] १. नाव। २. कुदाल। ३. युद्ध।
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कंठी  : स्त्री० [कंठा का अल्प० रूप] १. छोटी गुरियों की माला। छोटा कंठा। २. तुलसी आदि के बहुत छोटे दानों की वह माला, जो वैष्णव लोग किसी मत में दीक्षित होने के समय पहनते हैं, और जिसके उपरांत वे विशिष्ट आचार-विचारपूर्वक रहते हैं। मुहावरा—कंठी तोड़ना=वैष्णवत्व का त्याग करके फिर से मछली-मांस आदि खान लगना। (किसी को) कंठी देना या बाँधना=चेला बना कर वैष्णव धर्म में दीक्षित करना। कंठी ले लेना=वैष्णव धर्म में दीक्षित होकर आचार-विचारपूर्वक रहना। ३. कुछ पक्षियों के गले की वह गोल धारी, जो देखने में कंठी या माला की तरह होती है। हँसली। जैसे—तोते या मोर की कंठी। वि० [सं० कंठ+इनि] कंठ या ग्रीवा से संबंध रखने या उसमें होनेवाला।
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कंठी-रव  : पुं० [ब० स०] १. सिंह। शेर। २. कबूतर। ३. मतवाला हाथी।
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कंठ्य  : वि० [सं० कंठ+यत्] कंठ संबंधी। गले का। पुं० वह वर्ण, जिसका उच्चारण कंठ से होता हो। जैसे—अ, क, ख, ग, घ, ङ, ह और विसर्ग।
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कंठ्य-तालव्य  : वि० [द्व० स०] (वर्ण) जिसका उच्चारण कंठ तथा तालु दोनों के योग से होता हो। (गठरोपैलेटल) जैसे—‘ए’ और ‘ऐ’ वर्ण।
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कंठ्यौष्ठ्य  : वि० [कंठ्य-औष्ठ्य, द्व० स०] (व्याकरण के अनुसार वह वर्ण) जिसका उच्चारण कंठ और ओंठ से एक साथ किया जाय।
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