कहँ/kahan

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कहँ  : प्रत्य० [सं० कक्ष, पा० कच्छ] के लिए। वास्ते। क्रि० वि०=कहाँ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कह  : वि० [सं० कः] क्या। उदाहरण—मैं कह करौं सुतहिं नहीं बरजति।—सूर। पुं० [सं० कथ] १. आवाज। शब्द। २. कोलाहल। शोर। (राज०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कह-मुकरी  : स्त्री० दे० ‘मुकरी’।
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कहकहा  : पुं० [अ० अनु] एक साँस में बहुत जोर से होनेवाली ऐसी हँसी जिसमें बहुत शब्द भी होता है। ठहाका।
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कहकहाहट  : स्त्री० [अ० कहकह=अट्टहास] जोर की हँसी। कहकहा। उदाहरण—हुइ रहियौ कहकहाहट।—प्रिथीराज।
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कहगिल  : स्त्री० [फा० काह=घास+गिल=मिट्टी] मिट्टी की दीवारों आदि पर लगाने का वह गारा जिसमें घास-फूस या भूसा मिला होता है।
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कहत  : पुं० [अ०] अकाल। दुर्क्षिभ।
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कहँतरी  : स्त्री० [?] मिट्टी का बरतन।
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कहतसाली  : स्त्री० [अ० कहत+साल] दुर्क्षिभ का समय। अकाल के दिन।
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कहन  : स्त्री० [सं० कथन] १. कथन। उक्ति। २. वचन। ३. कहावत। ४. लोक में प्रचलित कोई पद या पद्य का चरण।
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कहना  : स० [सं० कथ, प्रा० कह, कध, कत्थ, कहिज्ज, गु० कहवूं, पं० कैना, सिं० कहनुँ, मरा० कथणें] १. मुँह से सार्थक पद,वाक्य या शब्द का उच्चारण करना। बोलना। जैसे—कुछ कहो तो सही। २. अपना उद्देश्य भाव० विचार आदि शब्दों में व्यक्त करना। जैसे—(क) मुझे जो कुछ कहना था वह मैंने कह दिया। (ख) अब अपनी कहानी कहेगें। मुहावरा—कहना बदना=(क) किसी बात का निश्चय करना। (ख) प्रतिज्ञा करना। कहना-सुनना=बातचीत या वार्तालाप करना। पद—कहने की बात=महत्त्वपूर्ण बात। कहने को=क) नाममात्र को। यों ही। जैसे—कहने को ही यह नियम चल रहा है। (ख) यों ही काम चलाने या बात टालने के लिए। जैसे—उन्होंने कहने को कह दिया कि हम ऐसा नहीं करेंगे। कहने-सुनने को=कहने को। ३. घोषणा करना। जैसे—राष्ट्रपति ने रात को रेडियो पर कहा है कि स्थिति सुधरते ही यह आदेश लौटा लिया जायगा। ४. चेष्टा, संकेत आदि से अपना आंतरिक भाव जतलाना। जैसे—ये आँखें कुछ कह रही हैं। ५. समाचार या सूचना देना। जैसे—उनका नौकर अभी-अभी यह कह गया है। ६. नाम रखना। पुकारना। जैसे—उन्हें लोग राय साहब कहने लगे हैं। ७. बतलाना या समझाना-बुझाना। जैसे—कई बार उससे कहा गया है पर उनकी समझ में नहीं आता। पद—कहना-सुनना-(क) समझाना-बुझाना। (ख) प्रार्थना करना। ८. बातों में बहलाना या भुलाना। बहकाना। जैसे—इसके संगीसाथी जो कुछ कहते हैं वही यह करता है। मुहावरा—(किसी के) कहने या कहने-सुनने में आना=किसी की अर्थहीन या झूठी बातों को ठीक मानकर उनके अनुसार चलना। (किसी के) कहने पर चलना=आदेश, उपदेश आदि के अनुसार काम करना। ९. अनुचित या अनुपयुक्त कहना। भली-बुरी बातें कहना। जैसे—जो एक कहेगा, वह चार सुनेगा। पुं० १. कथन। बात। २. आज्ञा। आदेश। ३. अनुरोध। प्रार्थना।
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कहनाउत  : स्त्री०=कहनावत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कहनाम  : पुं० [हिं० कहना] १. किसी की कही हुई बात। उक्ति। कथन। २. कहावत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहनावत  : स्त्री० [हि० कहना+आवत (प्रत्य०)] १. किसी की कही हुई बात उक्ति। कथन। उदाहरण—सुनहु सखी राधा कहनावति।—सूर। २. दे० ‘कहावत’।
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कहनि  : स्त्री०=कहनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहनी  : स्त्री० [सं० कथनी, प्रा० कहनी] १. उक्ति। कथन। बात। २. कथा। कहानी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहनूत  : स्त्री०=कहनावत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहर  : पुं० [अ० कह्र] १. आपत्ति। विपत्ति। संकट। २. विकट क्रोध। प्रकोप। मुहावरा—कहर करना=बहुत ही भयानक, भीषण या विकट काम करना। (किसी पर) कहर करना=बहुत बड़ा अत्याचार या अनर्थ करना। किसी को बहुत बड़ी विपत्ती या संकट में डालना। कहर टूटना=बहुत बड़ी विपत्ति या संकट आना। (किसी पर) कहर ढाना या तोड़ना=किसी को अपने भीषण प्रकोप का पात्र या भाजन बनाना। कुद्ध होकर ऐसा काम करना जिससे कोई बहुत बड़े संकट मे फँसे। पद—कहर का=(क) बहुत अधिक भयानक, भीषण या विकट। (ख) बहुत ही अद्भुत या अनोखा। परम विलक्षण। (ग) बहुत बड़ा-चढ़ा। महान। ३. खलबली। हलचल। मुहावरा—कहर मचना=बहुत बड़ा उत्पात या उपद्रव होना। वि० [अ० कह्रहार] १. अगम। अपार। २. घोर। भयंकर। ३. बहुत प्रबल या विकट।
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कहरना  : अ०=कराहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहरवा  : पुं० [हिं०कहार] १. पाँच मात्राओं का एक ताल। २. दादरे की तरह का एक प्रकार का गीत जो उक्त ताल पर गाया जाता है। ३. उक्त ताल पर होनेवाला नाच। विशेष—संभवतः कहरवा नामक गीत पहले कहारों आदि में ही प्रचलित था।
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कहरी  : वि० [अ० कहर+ई (प्रत्यय)] १. कहर संबधी। २. कहर या आफत ढानेवाला। (व्यक्ति)। ३. बहुत उग्र या तीव्र (गुण, प्रभाव, स्वभाव आदि)।
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कहरुबा  : पुं० [फा०] १. गोंद की तरह का एक पदार्थ जिसे कपड़े आदि पर रगड़कर घास या तिनके के पास रखने से उस कपड़े में चुंबक की-सी शक्ति आ जाती है। तृण-मणि। २. एक प्रकार का सदाबहार वृक्ष, जिसका गोंद राल या धूप कहलाता है।
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कहल  : पुं० [देश] १. बरसात में हवा बंद होने के कारण उत्पन्न होनेवाली गरमी। उमस। २. कष्ट। ३ संताप।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहलना  : अ० [हिं० कहल] १. उमस के कारण बेचैन या विकल होना। २. आकुल होना। अकुलाना। ३. आलस्य, संकोच आदि के कारण किसी काम से दूर रहना या बचना।
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कहलवाना  : स०=कहलाना।
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कहलाना  : स० [कहना का प्रे० रूप] १. कहने का काम किसी दूसरे से कराना। किसी को कुछ कहने में प्रवृत्त करना। जैसे—मैंने तो आपके सामने उसमें सब बातें कहला ली हैं। २. किसी के द्वारा किसी के पास संदेशा भेजना। जैसे—किसी को भेजकर उन्हें कहला दो कि कल आवें। अ० किसी का किसी नाम से पुकारा जाना या प्रसिद्ध होना। कहा जाना। जैसे—यह कपड़ा गवरून कहलाता है। अ० [हिं० कहल] उमस, गरमी, आदि से व्यथित या व्याकुल होना। उदाहरण—कहलाने एकत बसत, अहि मयूर, मृग, बाघ।—बिहारी।
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कहवाँ  : वि०=कहाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहवा  : पुं० [अ०] १. एक प्रकार का क्षुप जिसके सफेद फूलों में से निकले हुए दाने या बीजों से एक प्रकार का पेय बनता है। २. उक्त वृक्ष के दाने या बीज। ३. उक्त दानों या बीजों को भूनकर उनसे बनाया हुआ (चाय की तरह का) पेय पदार्थ (काँफी, उक्त सभी अर्थों के लिए)
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कहवाखाना  : पुं० [अ०+फा०] वह स्थान जहाँ पेय के रूप में कहवा बिकता है। (कॉफी हाउस)।
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कहवाना  : स०=कहलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहवैया  : वि० [हिं० कहना+वैया प्रत्यय] जो किसी से कुछ कहे। कहनेवाला।
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कहाँ  : अव्य० [वैदिक० सं० कुह, म० सं० कुत्र; पा० कुत्थ० पं० कित्थे, बँ० कोथाय, मरा० कुठें, सिं० कित्थी] १. एक प्रश्न-वाचक अव्यय जिसका प्रयोग मुख्यतः स्थान के संबंध में जिज्ञासा या प्रश्न के प्रसंग में होता है। किस स्थान पर? किस जगह जैसे—अब यहाँ से आप कहाँ जायेंगे? २. किसी अवधि,सीमा या स्थिति के संबध में प्रश्नावाचक अव्यय। जैसे—(क) अब कहाँ तक उनकी प्रतीक्षा की जाय। (ख) लिखिएगा वह काम कहाँ तक पहुँचा है। ३. उपेक्षा,तिरस्कार आदि के प्रसंगों में किसी अज्ञात या अनिश्चित स्थान का वाचक अव्यय। जैसे—(क) अजी बैठे रहो,तुम वहाँ कहाँ जाओगे। (ख) यह बला तुमने कहाँ से अपने पीछे लगा ली। पद—कहाँ…कहाँ…=पारस्परिक बहुत अधिक अन्तर या भेद का सूचक पद। जैसे—कहाँ बिहारी सतसई कहाँ यह तुक-बंदी। कहाँ का=(क)किसी उपेक्ष्य या नगण्य स्थान का। जैसे—तुमने यह झगड़ा अपने पीछे लगा लिया (ख) काकु से,कहीं का नहीं। जैसे—वह कहाँ का पंडित है जो तुम्हें व्याकरण पढ़ावेगा। (ग) कुछ भी नहीं। बिलकुल नहीं। जैसे—जब लड़के को ताश का शौक लग गया तब कहाँ का पढ़ना और कहाँ का लिखना। कहाँ का कहाँ=प्रस्तुत प्रसंग या स्थान से बहुत दूर। जैसे—आप भी कहाँ की बात कहाँ ले गये। कहाँ का…कहाँ का=ऐसे अज्ञात या अनिश्चित स्थान, जिन में परस्पर बहुत अधिक अन्तर या भेद हो। जैसे—यह तो संयोग से भेंट हो गयी,नहीं तो कहाँ के आप और कहाँ के हम। कहाँ की बात=यह बिलकुल अनहोनी या निराधार बात है। कहाँ तक=किस अवधि, परिमाण या सीमा तक, अर्थात् इससे आगे बढ़ना ठीक या संभव नहीं। जैसे—अब कहाँ तक कहा जाय, यही समझ लीजिए कि वह हद से ज्यादा झूठा है। पुं० [अनु] बहुत छोटे बच्चों के रोने का शब्द।
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कहा  : पुं० [हिं० कहना] १. कही हुई बात। उक्ति। कथन। पद—कहा-सुनी। २. आज्ञा। आदेश। जैसे—बड़ों का कहा माना करो। स्त्री०=कथा। सर्व०=क्या (व्रज) जैसे—मोसों तोसों अब कहा काम।—गीत। क्रि० वि० किस प्रकार का। कैसा।
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कहा-सुना  : पुं० [हिं० कहना+सुनना] अनजान में या भूल से कही हुई कोई अप्रिय या अनुचित बात या हो जानेवाला कोई अनुचित या असंगत व्यवहार। जैसे—हमारा कहा-सुना माफ करें।
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कहा-सुनी  : स्त्री० [हिं० कहना+सुनना] आपस में कही और सुनी जानेवाली, अप्रिय या अशिष्ट बातें। झगड़े या विवाद का आरंभिक या हलका रूप।
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कहाउ  : पुं० =कहा। (उक्ति)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहाउति  : स्त्री०=कहावत।
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कहाकही  : स्त्री०=कहा-सुनी।
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कहाका  : पुं०=कहकहा।
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कहाना  : स०=कहलाना।
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कहानी  : स्त्री० [सं० कथनिका, प्रा० कहाणिआ, सिं० मरा, कहाणी] १. मौखिक या लिखित, कल्पित या वास्तविक तथा गद्य या पद्य में लिखी हुई कोई भाव प्रधान या विषय-प्रधान घटना, जिसका मुख्य उद्देश्य पाठकों का मनोरंजन करना, उन्हें कोई शिक्षा देना अथवा किसी वस्तु-स्थिति से परिचित कराना होता है। (स्टोरी) २. कोई झूठी या मनगढंत बात। मुहावरा—कहानी जोड़ना=आवश्यकता से अधिक और प्रायः अरुचिकर या निरर्थक वृत्तांत। पद—राम-कहानी-लंबा=चौड़ा वृत्तांत। ३. =कथा।
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कहार  : पु० [सं० कं=जल+हार या स्कंधभार] [स्त्री० कहारिन, कहारी] लोगों के यहाँ पानी भरकर तथा उनकी छोटी-छोटी सेवाएँ करके जीविका चलानेवाली एक जाति। इस जाति के लोग डोली आदि भी ढोते हैं।
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कहारा  : पुं० [सं० स्कंधभार] बड़ा टोकरा। दौरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहाल  : पुं० [देश] एक प्रकार का बाजा।
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कहावत  : स्त्री० [हिं०कह=कही हुई बात+वत प्रत्यय] १. ऐसा बँधा हुआ लोक-प्रचलित कथन या वाक्य, जिसमें किसी तथ्य या अनुभूत सत्य का चमत्कारपूर्ण ढंग से प्रतिपादन या प्रस्थापन किया गया हो। जैसे—(क) नाच न आवै आँगन टेढ़ा। (ख) चिराग तले अँधेरा। २. किसी को भेजा हुआ विशेषतः मृत्यु-संबंधी संदेश।
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कहिअ  : क्रि० वि० [हिं० काहे, सं० कथम्] किसलिए। क्यों। उदाहरण—ऐसे पितर तुम्हारे कहि अहि आपन कहिअ न लेही।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कहिया  : क्रि० वि० [सं० कर्हि] किस दिन। किस रोज। स्त्री० [?] कलईगरों का एक औजार जिससे वे राँगा रखकर धातु के बरतन आदि जोड़ते हैं।
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कहीं  : अव्य० [हिं० कहाँ] १. ऐसी जगह जिसका कुछ ज्ञान या निश्चय न हो। अनजानी जगह, किसी अज्ञात स्थान पर। जैसे—थोड़ी देर हुई वे कहीं चले गये हैं। पद—कहीं और=किसी दूसरे स्थान पर। जैसे—यह ओषधि यहाँ तो नहीं किन्तु कहीं और अवश्य मिलेगी। २. ऐसा स्थान जिसका स्पष्ट रूप से निरूपण या निर्धारण न किया गया हो। जैसे—यह पुस्तक भी कहीं रख दो। पद—कहीं का=न जाने किस जगह का। (उपेक्षा, तिरस्कार आदि का सूचक। जैसे—पाजी कहीं का। कहीं का कही=एक जगह से हट कर दूसरी जगह बिलकुल अलग या बहुत दूर। जैसे—दो ही वर्षों में नदी कहीं की कहीं चली गई। कही-कही=कुछ अवसरों या स्थानों में। जैसे—कहीं कहीं य़ह भी पाठ मिलता है। कहीं न कहीं=किसी-न-किसी स्थान पर। जैसे—तुझे ढूँढ़ ही लेगे कहीं-न-कहीं।—गीत। मुहावरा— कहीं का न रहना=(क) किसी भी काम या पद के योग्य न रह जाना। (ख) सब तरफ से गया बीता या नगण्य हो जाना। जैसे—आपके फेर में पड़कर हम कहीं के न रहे। ३. किसी अज्ञात परन्तु संभावित अवस्था या दशा में। जैसे—(क) कहीं यह दवा तुमने खा ली होती तो अनर्थ हो जाता। (ख) जल्दी चलो, कहीं गाड़ी निकल न जाय। ४. बहुत अधिक बढ़कर। जैसे—यह उससे कहीं बढ़कर है। ५. (काकु से) कदापि नहीं। कभी नहीं। जैसे—ऐसा कहीं हो सकता है।
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कही  : स्त्री० [हिं० कहना] १. उक्ति। कथन। उदाहरण—कहत न परत कही।—सूर। २. उपदेश, विधि आदि के रूप में कही हुई बात। उदाहरण—एक न लगत कही काहू की, कहति कहति सब हारी।—नारायण स्वामी।
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कहुँ  : क्रि० वि०=१. किसी जगह। कहीं। २. के लिए। वास्ते। उदाहरण—अंत काल कहुँ भारी।—कबीर। विभ०=को।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कहुआ  : पुं० [सं० कीह] १. अर्जुन नामक वृक्ष। पुं० [सं० क्वाथ] घी, चीनी, मिर्च, और सोंठ को पकाकर बनाया हुआ अवलेह जो जुकाम या सरदी होने पर खाया जाता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहुला  : वि०=काला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहुँवै  : क्रि० वि०=कहीं। (ब्रज)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कहूँ  : क्रि० वि०=कहीं।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कह्यारी  : स्त्री० [हिं० कहना] कहने या बात करने का ढंग। उदाहरण—आछी आछी बात कहै आछियँ कह्यारी सों।—केशव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कह्र  : पुं० दे० ‘कहर’।
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कह्लार  : पुं० [सं० क√ह्लाद (प्रसन्न होना)+अच् (पृषो०) द=र] सफेद कमल।
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