काठ/kaath

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काठ  : पुं० [सं० काष्ठ, प्रा० कट्ठ, गु० पं० बं० काठ, सि० काठु, सिंह० कट,० का० कूट, मरा० काठी] १. वह पदार्थ जिससे वृक्षों, झाड़ियों आदि के तने शाखाएँ आदि बनी होती हैं। लकड़ी। यौ०-काठ-कबाड़। (देखें)। पद—काठ का उल्लू=बहुत बड़ा या निरा बेवकूफ। वज्र मूर्ख। काठ का घोड़ा=(क) अरथी या टिकठी जिस पर रखकर शव को अंत्येष्टि के लिए ले जाते हैं। (ख) बैसाखी जिसके सहारे लंगड़े-लूले चलते हैं। काठ की हाँड़ी=ऐसी वस्तु जिससे एकाध बार से अधिक काम न लिया जा सके। (छल-कपट आदि के प्रसंग में) क्या हुआ जो वे झूठ बोलकर एक बार मुझ से रुपए ले गये। काठ की हाँड़ी बार-बार नहीं चढ़ती। उदाहरण—हाँड़ी काठ की चढ़ै न दूजी बार। विशेष—यदि कोई काठ की हाँड़ी बनाकर उसमें कोई चीज पकाना चाहे वह अधिक-से-अधिक एक ही बार और वह भी जैसे—तैसे अपना काम चला सकता है। इसी तथ्य के आधार पर यह पद बना है। २. चूल्हे आदि में जलाने की लकड़ी। ईधन। ३. मध्य युग में लकड़ी का एक प्रकार का उपकरण, जिसमें बहुत बड़ी और भारी लकडी में दो छेद करके उसमें अपराधी या दंडित व्यक्ति के पैर इस प्रकार फँसा दिये जाते थे कि वह उठ-बैठ या भाग न सके। कलंदरा। मुहावरा—(किसी को) काठ मारना=किसी को दंड देने के लिए उसके पैरों में उक्त उपकरण लगाना या फँसाना। काठ में (किसी के) पाँव ठोंकना या देना=अपराधी या दंडनीय व्यक्ति के पैर उक्त प्रकार के उपकरण में फँसाकर उसे एक स्थान पर बैठा देना। (एक प्रकार का दंड) काठ में (अपने) पाँव डालना या देना-जान=बूझकर किसी बहुत बड़ी विपत्ति या संकट में पड़ना। ४. लाक्षणिक अर्थ में ऐसी वस्तु जो सूख करकाठ के समान कठोर या निष्चेष्ट हो गई हो। मुहावरा—(किसी को) काठ मार जाना=आश्चर्य, कष्ट, शोक आदि की दशा में स्तब्ध हो जाना। जैसे—यह बात सुनते ही मुझे तो काठ मार गया। (वस्तु का) काठ होना=सूखकर इतना कड़ा हो जाना कि काम में आने के योग्य न रह जाय। (व्यक्ति का) काठ होना=(क) बेहोशी, मौत आदि के कारण जड़वत, निश्चेष्ट या संज्ञा-शून्य होना। चेतना-रहित होनाः (ख) बहुत अधिक आश्चर्य, भय आदि के कारण स्तंभित होना। (ग) काठ की तरह सूख जाना। दुर्बल होना। ५. कठ-पुतली। उदाहरण—कतहुँ पखंडी काठ नचावा।—जायसी।
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काठ-कटौअल  : स्त्री० [हिं० काठ+काटना] आँख-मिचौनी की तरह का लड़कों का एक खेल, जिसमें उन्हें दौड़-दौड़ कर किसी काठ को छूना पड़ता है।
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काठ-कवाड़  : पुं० [हिं० काठ+कवाड़] काठ की बनी परन्तु (क) टूटी-फूटी वस्तुएँ। (ख) टूटा-फूटा तथा निरर्थक सामान।
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काठ-कोड़ा  : पुं० [हिं० काठ+कोड़ा] मध्य-युग का एक प्रकार का दंड जिसमें किसी के पाँव में काठ डालकर ऊपर से उसे कोड़ों से मारते थे। क्रि० प्र०-चलना।
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काठ-कोयला  : पुं० [हिं० काठ+कोयला] वृक्षों की लकड़ियाँ जलाकर तैयार किया जानेवाला कोयला। (चारकोल)।
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काठड़ा  : पुं० [स्त्री० काठड़ी]=कठड़ा (कठौता)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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काठनीम  : पुं० [हिं० काठ+नीम] एक प्रकार का वृक्ष, जिसे गंधेल भी कहते हैं।
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काठबेर  : पुं० दे० ‘घूँट’ (वृक्ष)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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काठबेल  : स्त्री० [हिं० काठ+बेल] इंद्रायन की जाति की एक बेल।
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काठा  : वि० [हिं० काठ] १. काठ का बना हुआ। २. (फल) जिसका ऊपरी छिलका बहुत कड़ा और मोटा हो, अथवा जिसका गूदा काठ के समान कड़ा हो। जैसे—काठा बादाम, काठा केला।
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काठिन्य  : पुं० [सं० कठिन+ष्यञ्]=कठिनता।
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काठियावाड़  : पुं० [हिं० काँठ=समुद्रतट+बाड़=द्वार] पश्चिमी भारत का एक प्रदेश जो आधुनिक द्विभाषी बम्बई राज्य के अन्तर्गत है।
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काठियावाड़ी  : पुं० [हिं० काठियावाड़] १. काठियावाड़ का निवासी। २. काठियावाड़ का घोड़ा। स्त्री० काठियावाड़ की बोली या भाषा। वि० काठियावाड़ का। काठियावाड़ संबंधी।
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काठी  : स्त्री० [हिं० काठ] १. ऊँटों, घोड़ों आदि की पीठ पर कसने की जीन जिसमें नीचे की ओर काठ लगा रहता है। यह आगे और पीछे की ओर कुछ उठी होती है। २. शरीर की गठन या बनावट। ३. कटार, तलवार आदि की म्यान। ४. छड़ी। लकड़ी। (राज।) वि० [काठियावाड़] काठियावाड़ का (घोड़ा)।
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काठू  : पुं० [हिं० काठ] कूटू की तरह का एक पौधा।
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काठों  : पुं० [हिं० काठ] पंजाब में होनेवाला एक प्रकार का मोटा धान।
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