शब्द का अर्थ
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					केँ					 :
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					वि० भ० दे० ‘के’। अव्य०=या।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					कें कें					 :
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					स्त्री० [अनु०] १. पक्षियों का आर्त्तनाद। २. कष्ट सूचक ध्वनि। ३. व्यर्थ की बातचीत। बकवाद।				 | 
			
			
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					केंचुली					 :
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					स्त्री० [सं० कंचुक] [विं० केंचुली] सर्प आदि के शरीर पर की वह झिल्लीदार खोली जो प्रतिवर्ष आप-से-आप उतर जाती है। मुहावरा—केंचुली बदलना=पुराना रूप छोड़कर नया रूप धारण करना। (परिहास और व्यंग्य) (साँप का) केंचुली में आना या भरना=केंचुली छोड़ने पर होना।				 | 
			
			
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					केंचुवा					 :
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					पुं० =केंचुआ।				 | 
			
			
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					केंड़ा					 :
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					पुं० =कैंड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					केंत					 :
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					पुं० [देश०] एक प्रकार का बेंत, जिससे छड़ियाँ बनती है।				 | 
			
			
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					केंदु					 :
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					पुं० [सं० कुगति० स०] तेंदू का पेड़।				 | 
			
			
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					केंदुवाल					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] डाँड़, जिससे नाव खेते हैं।				 | 
			
			
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					केंदू					 :
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					पुं० [सं० केन्दु] तेंदू (वृक्ष)				 | 
			
			
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					केंद्र					 :
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					पुं० [सं० क√इन्द् (सम्पन्न होना)+र] १. किसी गोले या वृत्त के बीच का वह विंदु जिससे उस गोले या वृत्त की परिधि का प्रत्येक विंदु बराबर दूरी पर पड़ता हो। नाभि। २. किसी वस्तु के बीच का स्थान। मध्य भाग। ३. किसी उपकरण या यंत्र का वह बिंदु जिसके चारों ओर कोई चीज घूमती हो। ४. वह मूल या मुख्य स्थान जहाँ से चारों ओर दूर-दूर तक फैले हुए कार्यों की व्यवस्था तथा संचालन होता है। ५. वह स्थान जहाँ कोई चीज विशेष रूप से और बहुत अधिक मात्रा में उपजती, पनपती बनती या निर्मित होती हो। (सेन्टर उक्त सभी अर्थों के लिए) ६. किसी निश्चित अंश से ९॰, १८॰, २७॰ और ३६॰ अंशों के अंतर का स्थान। ७. जन्मकुंडली में ग्रहों का पहला, चौथा, सातवाँ और दसवाँ स्थान (ज्योतिष)।				 | 
			
			
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					केंद्रगामी (मिन्)					 :
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					वि० [सं० केंद्र√गम्+णिनि] जो केद्र की ओर जा या बढ़ रहा हो।				 | 
			
			
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					केंद्रण					 :
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					पुं० [सं० केन्द्र+णिच्+ल्युट-अन]=केन्द्रीकरण।				 | 
			
			
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					केंद्रापग					 :
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					वि० [सं० केंद्र-अप√गम्+ड]=केन्द्रापसारी।				 | 
			
			
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					केंद्राभिमुखी (खिन्)					 :
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					वि० [सं० केंद्र-अभिमुखी, ष० त०] जो किसी शक्ति की प्रेरणा से अपने केंद्र की ओर जाता या बढ़ता हो। (सेन्ट्रिपेटल)				 | 
			
			
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					केंद्राभिसारी (रिन्)					 :
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					वि० [सं० केंद्र-अभि√सृ+णिनि०]=केंद्रापसारी।				 | 
			
			
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					केंद्रिक					 :
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					वि० [सं० केंद्र+ठन्-इक] केंद्र में बनने, रहने या होनेवाला। (सेंन्ट्रिक)				 | 
			
			
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					केंद्रिक					 :
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					भू० कृ० [सं० केंद्र+इतच्] केंद्र में लाया या स्थित किया हुआ (सेन्ट्रलाइज्ड)				 | 
			
			
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					केंद्री (द्रिन्)					 :
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					वि० [सं० केंद्र+इनि] १. केंद्र का। केंद्र संबंधी। २. केंद्र में रहने या होनेवाला।				 | 
			
			
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					केंद्रीकरण					 :
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					पुं० [सं० केंद्र+च्वि√कृ (करना)+ल्युट-अन] १. आस-पास की चीजों बातों आदि को केंद्र में लाने की क्रिया या भाव। केंद्रित करना। २. अधिकार या सत्ता एक व्यक्ति या संस्था के अधीन करना। (सेन्ट्रलाइजेशन)।				 | 
			
			
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					केंद्रीभूत					 :
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					भू० कृ० [सं० केंद्र+च्वि√भू (होना)+क्त] जो किसी एक केंद्र में आकर एकत्र हुआ हो। या लाकर एकत्र किया गया हो।				 | 
			
			
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					केंद्रीय					 :
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					वि० [सं० केंद्र+छ-ईय] १. केंद्र संबंधी। २. केंद्र या मध्यभाग का। ३. किसी राज्य या राष्ट्र के केंद्रस्थान या राजधानी से संबंध रखनेवाला (सेन्ट्रल) जैसे—केंद्रीय शासन। ४. प्रधान या मुख्य।				 | 
			
			
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					केंद्रीय-शासन					 :
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					पुं० [कर्म० स०] किसी राष्ट्र या राज्य की वह सर्वप्रधान शासन-सत्ता या सरकार जिसका प्रमुख स्थान उसकी राजधानी में होता है और जो वहाँ के सारे देश का शासन या व्यवस्था करती है। (सेन्ट्रल गवर्नमेन्ट)				 | 
			
			
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					केंद्रीय-सरकार					 :
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					स्त्री० दे० ‘केंद्रीय शासन’।				 | 
			
			
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					केंद्रीयकरण					 :
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					पु०=केंद्रीकरण।				 | 
			
			
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					केंवा					 :
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					पुं० [देश०] जलाशयों के किनारे रहनेवाला एक पक्षी। उदाहरण—केवा, सोंन, ढेक, बगलेदी। रहे अपूरि मीन जलभेदी।—जायसी।				 | 
			
			
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