शब्द का अर्थ
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					कोश					 :
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					पुं० [सं०√कुश् (मिलना)+घञ्] १. वह आधार या पात्र जिसमें तरल पदार्थ रखा जाय अथवा पिया जाय। २. सामग्री या सामान रखने का पात्र। जैसे—खाना, संदूक आदि। ३. आवरण। खोती। म्यान। ४. किसी वस्तु का भीतरी अंश। ५. मकान का भीतरी वह कमरा, जिसमें अन्न आदि अथवा रुपए-पैसे रखे जाते हों। खजाना। ६. इस प्रकार इकट्ठा किया हुआ धन। ७. वह ग्रंथ जिसमें किसी विशेष क्रम से शब्द दियें हों और उनके आगे अर्थ दिये हों। ८. अंडकोश। ९. योनि। १॰. घाव पर बाँधने की पट्टी। ११. ज्योतिष में वह योग, जिस समय किसी घर में शनि, बृहस्पति तथा एक और कोई ग्रह हो। १२. रेशम का कोया। १३. कटहल का कोया। १४. कमल-गट्टा।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					कोश-कला					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] वह कला या विद्या, जिसमें शब्द-कोशों की रचना के सिद्धान्तों का विवेचन होता है। (लेक्सिकाँलोजी)				 | 
			
			
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					कोश-कीट					 :
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					पुं० [मध्य० स०] रेशम का कीड़ा।				 | 
			
			
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					कोश-नायक					 :
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					पुं० [ष० त०] खजाँची।				 | 
			
			
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					कोश-पति					 :
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					पुं० [ष० त०] कोशाध्यक्ष।				 | 
			
			
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					कोश-पान					 :
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					पुं० [तृ० त०] एक प्रकार की प्राचीन परीक्षा जिससे किसी के अपराधी होने या न होने की पहचान की जाती थी।				 | 
			
			
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					कोश-रचना					 :
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					स्त्री० [ष० त०] शब्द-कोश आदि बनाने या तैयार करने का काम (लेक्सिकोग्राफी)				 | 
			
			
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					कोश-विभाग					 :
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					पुं० [ब० स०] किसी प्रतिष्ठित संस्थान का वह विभाग जहाँ कोश-रचना का कार्य होता है। जैसे—हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग या नागरी प्रचारिणी सभा काशी का कोश-विभाग।				 | 
			
			
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					कोश-वृद्धि					 :
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					स्त्री० [ष० त०] अंडकोश के बढ़ने तथा फूलने का रोग।				 | 
			
			
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					कोश-संधि					 :
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					स्त्री० [मध्य० स०] शत्रु को धन देकर उससे की जानेवाली संधि।				 | 
			
			
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					कोशक					 :
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					पुं० [सं०√कुश्+णिच्+ण्वुल्-अक] १. अंडा। २. अंडकोश।				 | 
			
			
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					कोशकार					 :
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					पुं० [सं० कोश√कृ (करना)+अण्] १. शब्दकोश के लिए शब्दों का संग्रह तथा उनका संपादन करनेवाला। (लेक्सिकोग्राफर) २. कटार, तलवार आदि की म्यानें बनानेवाला। ३. धन रखने के लिए पात्र या संदूक बनानेवाला। ४. रेशम का कीड़ा, जो अपने रहने के लिए अपने ऊपर का आवरण या कोश बनाता है। ५. एक प्रकार की ईख। ६. ब्रह्मपुत्र के उस पार का एक प्राचीन देश।				 | 
			
			
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					कोशकीट-पालन					 :
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					पु० [ष० त०] रेशम के कीड़े पालने का काम या उद्योग (सेरीकल्चर)				 | 
			
			
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					कोशचक्षु					 :
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					पुं० [ब० स०] सारस पक्षी।				 | 
			
			
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					कोशज					 :
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					पुं० [सं० कोश√जन् (उत्पन्न होना)+ड] १. रेशम। २. मोती। ३. घोंघे, शंख, सीप आदि में रहनेवाले जीव। वि० कोश में से उत्पन्न होने या निकनलेवाला।				 | 
			
			
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					कोशफल					 :
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					पुं० [ब० स०] १. अंडकोश। २. जायफल। ३. ककड़ी, कद्दू कुम्हड़ा तरबूज आदि की लताएँ तथा उनके फल।				 | 
			
			
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					कोशल					 :
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					पुं० [सं०√कुश्+कलच्, गुण (बा०)] १. भारत के एक प्राचीन प्रदेश का नाम,जो सरयू नदी के दोनों ओर आधुनिक अयोध्या के आसपास बसा था। २. कोशल देश में बसने वाली क्षत्रिय जाति। ३. अयोध्या। ४. संगीत में एक प्रकार का राग।				 | 
			
			
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					कोशलिक					 :
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					पुं० [सं० कुशल+ठन्-इक] रिश्वत। घूस।				 | 
			
			
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					कोशली					 :
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					वि० [सं० कोशलीय] कोशल संबंधी। कोशल का। पुं० कोशल प्रदेश का निवासी। स्त्री० कोशल देश की भाषा, अवधी का दूसरा नाम। विशेष दे० ‘अवधी’।				 | 
			
			
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					कोशस्थ					 :
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					पुं० [सं० कोश√स्था (रहना)+क] पाँच प्रकार के जीवों में से एक प्रकार के जीव, जिसके अन्तर्गत शंख, घोंघें आदि ऐसे जीव हैं जो कोश में रहते हैं। (सुश्रुत)।				 | 
			
			
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					कोशा (षा) धिप					 :
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					पुं० [सं० कोश (ष)-अधिप, ष० त०] खजांची।				 | 
			
			
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					कोशांग					 :
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					पुं० [सं० कोश-अंग, ब० स०] एक प्रकार का सरकंडा।				 | 
			
			
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					कोशागार					 :
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					पुं० [सं० कोश-आगार,ष०त०] १. वह कमरा या स्थान जहाँ धन-दौलत रखी जाती है। खजाना। २. किसी प्रकार की वस्तुओं का भंडार।				 | 
			
			
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					कोशांड					 :
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					पुं० [सं० कोश-अंड, ब० स०] अंडकोश।				 | 
			
			
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					कोशातक					 :
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					पुं० [सं० कोश√अत् (गति)+क्वुन्-अक] यजुर्वेद की कठ-शाखा का एक नाम।				 | 
			
			
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					कोशातकी (किन्)					 :
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					[सं० कोशातक+इनि] १. व्यापारी। २. व्यापार। ३. वाडवाग्नि। स्त्री०=तरोई।				 | 
			
			
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					कोशाधीश					 :
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					पुं० [सं० कोश-अधीश, ष० त०] खजांची।				 | 
			
			
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					कोशाध्यक्ष					 :
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					पुं० [सं० कोश-अध्यक्ष, ष० त०] १. कोश या खजाने का प्रधान अधिकारी। खजांची। २. आजकल किसी संस्था का वह अधिकारी जिसके पास संस्था की सब आय सुरक्षा के लिए रखी जाती हो। (ट्रेजरर)।				 | 
			
			
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					कोशांबी					 :
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					स्त्री०=कौशाम्बी।				 | 
			
			
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					कोशाभिसंहरण					 :
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					पुं० [सं० कोश-अभिसंहरण, मध्य० स०] १. कोश की कमी पूरी करने के लिए प्रजा से विभिन्न प्रकार के कर उगाहने का काम। २. कर के रूप में धान्य आदि का तीसरा या चौथा भाग लेना।				 | 
			
			
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					कोशाम्र					 :
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					पुं० [सं० कोश-आम्र,० उ पमि० स०] कोसम वृक्ष और उसका फल।				 | 
			
			
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					कोशिका					 :
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					स्त्री० [सं० कोशी+कन्-टाप्, ह्रस्व] १. कटोरा। प्याला। २. गिलास।				 | 
			
			
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					कोशिश					 :
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					स्त्री० [फा०] कोई काम करने के लिए विशेष रूप से किया जाने वाला प्रयत्न।				 | 
			
			
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					कोशी					 :
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					स्त्री० [सं०√कुश्+अच्-ङीष्] १. कली। २. अनाज का टूँड़। ३. चप्पल या स्लीपर। वि० कोशयुक्त। पुं० आम का पेड़।				 | 
			
			
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