गला/gala

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गला  : पुं० [सं० गल, प्रा० गल, पा० गलो, द्र० गार्, गरोर्, उ०पं० बं० गला, गु० गलु, मरा, गंठा, सि० गरो] १. शरीर का वह गोलाकार लंबोत्तर अंग जो धड़ के ऊपर और सिर के नीचे होता है और जिसके अंदर सांस लेने, स्वरों का उच्चारण करने और खाने-पीने की चीजें पेट तक पहुँचाने वाली नलिकाएँ होती हैं। गरदन। ग्रीवा। मुहावरा–(अपना या दूसरे का) गला काटना=छुरी, तलवार या धारदार औजार से काटकर सिर को धड़ से अलग करना और इस प्रकार मृत्यु का कारण बनना। गरदन काटकर हत्या करना। जैसे–चोरों ने चलते-चलाते बुढिया का भी गला काट डाला। (किसी का) गला काटना=किसी का सब कुछ छीन लेना अथवा इसी प्रकार की बहुत बड़ी हानि करना। जैसे–दूसरों का गला काट-काटकर ही तो वे बड़े आदमी बने है। (किसी का) गला घोंटना-गला दबाना ( दे० आगे)। (किसी बात या व्यक्ति से) गला छूटना=कष्ट, संकट आदि (अथवा त्रस्त करनेवाले व्यक्ति) से पीछा छूटना। छुटकारा मिलना। जान बचना। पिंड छूटना। जैसे–चलों इनके आ जाने से हमारा गला छूट गया। (किसी का) गला जकड़ना=कोई बंधन लगाकर या बाधा खड़ी करके किसी को बोलने से बलपूर्वक रोकना। (किसी से) गाल जोड़ना=मैत्री या घनिष्ट संबंध स्थापित करना। गहरा मेल-मिलाप पैदा करना। (किसी का) गला टीपना या दबाना=(क) हाथ या हाथों से इस प्रकार चारों ओर से दबाना कि उसका दम घुंट जाए या सांस रुक जाए और वह मर जाए या मरने को हो जाए। (ख) कोई काम करने या स्वार्थ साधने के लिए जबरदस्ती किसी को विवश करना। अनुचित रूप से बहुत अधिक दबाव डालना। (किसी का) गला पकड़ना=किसी को किसी बात के लिए उत्तरदायी ठहराना। जैसे–यदि इस युक्ति से हमारा काम न हुआ तो हम तुम्हारा गला पकड़ेगे। गला फँसना-किसी प्रकार के कष्टदायक बंधन में पड़ना। जैसे–तुम्हारें कारण अब इसमें हमारा भी गला फँस गया है। (किसी का) गाल रेतना=किसी को क्रमशः या निर्दयतापूर्वक बहुत अधिक कष्ट पहुँचाकर अथवा उसकी बहुत अधिक हानि करके अपना मतलब निकालना। जैसे–इस तरह दूसरों का गरा रेतकर अपना काम निकालना ठीक नहीं है। (कोई बात) गले तक आना=किसी कार्य, बात या व्यापार की इतनी अधिकता होना कि उसका निर्वाह या सहन करना बहुत अधिक कठिन हो जाए। जैसे–जब बात गले तक आ गई, तब मै भी बिगड़ खड़ा हुआ। विशेष–जब नदी या बाढ़ का पानी बढ़ता-बढ़ता आदमी के गले तक पहुँच जाता है, तब वह असह्य भी हो जाता है और आदमी अपने जीवन से निराश हो जाता है। लाक्षणिक रूप में यह मुहावरा ऐसी ही स्थिति का सूचक है। (कोई चीज या बात) गले पड़ना=इच्छा न होते हुए भी जबरदस्ती या भार रूप में आकर प्राप्त होना। जैसे–यह व्यर्थ का झगड़ा आकर हमारे गले पड़ा है। उदाहरण–गरे परि कौ लागि प्यारी कहैये। (अपने ) गले बाँधना=जान-बूझकर या इच्छापूर्वक अपने साथ या पीछे लगाना। उदाहरण–लोभ पास जेहि गर न बँधाया।–तुलसी। (किसी के) गले बाँधना, मढ़ना या लगाना=किसी की इच्छा के विरुद्ध उसे कोई चीज देना अथवा कोई भार सौंपना। (किसी को) गले लगाना= (क) आलिंगन करना। (ख) अपराध, दोष आदि का विचार छोड़कर अपना बनाना। जैसे–उच्च वर्णों के लोगों को चाहिए कि वे हरिजनों को गले लगावें। पद-गले का ढोलना या हार-ऐसी वस्तु या व्यक्ति जो सदा साथ रखा जाए अथवा रहे। जिसका या जिससे जल्दी साथ न छूटे। २. शरीर के उक्त अंग का वह भीतरी भाग जिसमें खाने, पीने बोलने साँस लेने आदि की नलियाँ रहती है। मुँह के अन्दर का वह विवर जिसका संबंध पेट, फेफड़ों आदि से होता है। मुहावरा-गला आना या पडना=गले की घंटी में पीड़ा या सूजन होना। गलांकुर रोग होना। गला उठाना या करना-गले की घंटी बढ जाने पर उसे उँगली से दबाकर और उस पर कोई दवा लगाकर उसे ऊपर उठाना। घंटी बैठाना। (किसी चीज का) गला काटना=चरपरी या तीखी चीज खानेपर उसके गले के भीतरी भाग में हल्की खुजली चुन-चुनाहट या जलन पैदा करना। जैसे–जमीकंद या सूरन यदि ठीक तरह से न बनाया जाए तो कला काटता है। गला घुटन=प्राकृतिक कारणों अथवा अस्वस्थता, रोग आदि के फलस्वरूप साँस आने-जाने में बाधा होना। दम घुटना। गला जकड़ना-गले की ऐसी अवस्था होना कि सहज में कुछ खाया पिया या बोला न जा सके। (किसी चीज का) गला पकड़ना=कसैली या खट्टी चीज खाने पर गले में ऐसा विकार या हलकी सूजन होना कि खाने-पीने, बोलने में कष्ट हो। जैसे–ज्यादा खटाई खाओगे तो गला पकड़ लेगी। गला फँसन=गले के अन्दर किसी चीज का पहुँचकर इस प्रकार अटक फंस या रुक जाना कि खाने-पीने बोलने साँस लेने आदि में कष्ट होने लगे। जैसे–अब तो पानी भी कटिनाई से गले के नीचे उतरता है। (किसी बात का) गले के नीचे उतरना= (क) ठीक प्रकार से समझ में आना। (ख) ग्राह्म, मान्य या स्वीकृत होना। जैसे–उनका उपदेश तुम्हारें गले के नीचे उतार या नहीं। ३. शरीर के उक्त अंग का वह अंश जिसमें बोलने के समय शब्दों आदि का और गाने के समय स्वरों आदि का उच्चारण होता है। स्वर-नाली। जैसे–जब तक गवैये का गला अच्छा न हो तब तक उसके गाने में रस नहीं आता। मुहावरा–गला खुलना=गले का इस योग्य होना कि उसमें से अच्छी तरह या ठीक तरह से स्वर निकल सके। गला गरमाना-गाने, भाषण देने आदि के समय आंरभ में कुछ देर तक धीरे-धीरे गाने या बोलने के बाद कंठ-स्वर का तीव्र या प्रबल होकर पूरी तरह से काम करने के योग्य होना। गला फटना-बहुत चिल्लाने, बोलने आदि से अथवा स्वर नाली में कोई रोग होने के कारण कंठ स्वर का इस प्रकार विकृत हो जाना कि उससे ठीक, सुरीला और स्पष्ट उच्चारण न हो सके। जैसे–चिल्लाते-चिल्लाते गला फट गया पर तुमने जबाव न दिया। गला फाड़ना=बहुत जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर बोलना और स्वतः अपना कंठ-स्वर कर्णकटु तथा विकृत करना। जैसे–तुम लाख गला फाड़ा करो पर वहाँ तुम्हारी सुनता कौन है। गला फिरना=गाने के समय स्वरों और उनकी श्रुतियों पर बहुत ही सहज में और सुन्दरता पूर्वक अथवा सुरीलेपन से कंठ-स्वर का उच्चरित होना अथवा ऊपर और नीचे के स्वरों पर सरलतापूर्वक आना-जाना। जैसे–हर किटिकरी तान, पलटे और फंदेपर उसका गला इस तरह फिरता था कि तबीयत खुश हो जाती थी। गला बैठना=बहुत अधिक गाने चिल्लाने बोलने आदि से अथवा कुछ प्रकृत कारणों या विकारों से कंठ-स्वर का इतना धीमा या मन्द पड़ना कि कंठ-से होने वाला शब्दों का उच्चारण सहज में दूसरों को सुनाई न पड़े। ४. कमीज, कुरते कोट आदि पहनने के कपड़ों का वह अंश जो गरदन पर और उसके चारों ओर रहता है। रेगबान। ५. घड़े, लोटे, सुराही आदि पात्रों का वह ऊपरी गोलाकार तंग और लंबोतर भाग जो उनके पेट और मुँह के बीच में पड़ता है और जिससे होकर उन पात्रों में चीजें आती-जाती (अर्थात् निकलती या भरी) जाती है। जैसे–गगरे का गला टूट गया है।
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गलाऊ  : वि० [हिं० गलाना] गलानेवाला। वि. [हिं० गलना] जो गल सकता हो। गलनशील।
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गलांकुर  : पुं० [सं० गल-अंकुर, मध्य० स०] एक रोग जिसमें गले के अंदर का कौआ या घंटी सूज जाती है। (टान्सिल)।
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गलाना  : स० [हिं० गलना का प्रे० रूप] १. किसी घन या ठोस पदार्थ को इतना अधिक गरम करना या तपाना कि वह तरल हो जाए। जैसे–मक्खन या सोना गलाना। २. कड़े और कच्चे अन्नों, तरकारियों आदि को उबाल या पकाकर नरम या मुलायम और खाये जाने के योग्य करना। जैसे–आलू या दाल गलाना। ३. तरल पदार्थ में किसी क्रिया से कोई विलेय वस्तु घुमाना। जैसे–तेजाब में चाँदी गलाना। ४. बहुत अधिक चिंता या श्रम करके अपने शरीर को क्षीण और दुर्बल बनाना। जैसे–देश की सेवा में तन या शरीर गलाना। ५. किसी प्रकार नष्ट या बरबाद करना। ६. ठंढक या सरदी का अपनी तीव्रता से हाथ-पैर गलानेवाली सरदी पड़ना। ७. वास्तु-शास्त्र में किसी खड़ी रचना पर इतना दबाव या बोझ डालना कि वह धीरे-धीरे नीचे धँस कर अदृश्य हो जाए। जैसे–पुल बनाने के लिए कोठी या खंभा गलाना।
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गलानि  : स्त्री०=ग्लानि। पुं० [सं०] एक प्रकार की मछली।
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गलार  : वि० [हिं० गाल] १. बहुत गाल बजानेवाला अर्थात् बकवादी। २. झगड़ालू। स्त्री० [?] मैना (पक्षी)। पुं० [?] एक प्रकार का वृक्ष।
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गलारी  : स्त्री० [सं० गल्प, प्रा० गल्ल] गिलगिलिया नाम की चिड़िया। गल-गलिया।
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गलावट  : स्त्री० [हिं० गलाना] १. गलने की क्रिया या भाव। २. गलने के कारण घटने या नष्ट होनेवाला अँश। ३. ऐसी वस्तु जो दूसरी वस्तुओं को गलाने में सहायक होती हो।
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