शब्द का अर्थ
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गीति :
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स्त्री० [सं०√गै+क्तिन्] १. गान। गीत। २. आर्या छन्द का एक भेद जिसके विषम चरणों में १२ और सम चरणों में १८ मात्राएँ होती हैं। उदगाथा। उदगाहा। |
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गीति-काव्य :
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पुं० [मध्य० स०] ऐसा काव्य जो मुख्यतः गाये जाने के उद्देश्य से ही बना हो। |
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गीति-नाट्य :
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पुं० =गीति=रूपक। |
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गीति-रूपक :
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पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का रूपक जो पूरा या बहुत कुछ पद्य में लिखा होता है। (ऑपेरा)। |
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गीतिका :
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स्त्री० [सं० गीति+कन्-टाप्] १. छोटा गीत। २. एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १६ और १॰ के विराम से २६ मात्राएं होती हैं। इसकी तीसरी, १॰ वीं, १७ वीं और २४ वीं० मात्राएं सदा लघु होती हैं। ३. एक वर्णिक चंद जिसके प्रत्येक चरण में सगण, जगण, भगण रगण, सगण और लघु गुरु होते हैं। |
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