गुर/gur

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गुर  : पुं० [सं० गुरुमंत्र] १. वह अमोघ साधन या सूत्र जिससे कोई कठिन काम निश्चित रूप से चटपट तथा सरलता से संपन्न होता हो। २. बहुत अच्छी युक्ति। पुं० [सं० गुण] तीन गुणों के आधार पर तीन की संख्या। (डिं०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०-गुरु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०-गुड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरखई  : स्त्री० [?] जमीन रेहन रखने का वह प्रकार जिसमें रेहनदार उसकी तीन चौथाई मालगुजारी देता है और एक चौथाई महाजन देता है।
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गुरखाई  : स्त्री०=गुरखई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरगा  : पुं० [सं० गुरुग] [स्त्री० गुरगी] १. गुरु का अनुगामी। चेला। शिष्य। २. टहलुआ। दास। सेवक। ३. अनुचर। ४. जासूस। भेदिया।
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गुरगाबी  : पुं० [फा०] एक प्रकार का देशी जूता।
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गुरच  : स्त्री०=गुरुच।
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गुरचना  : अ० [हिं० गुरुच] सिकुड़कर गुरुच की बेल की तरह टेढ़ा मेढ़ा होना और आपस में उलझ जाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरचियाना  : अ०=गुरचना।
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गुरची  : स्त्री० [हिं० गुरुच] १. सिकुड़न। बल। २. डोरे आदि। उलझने या फँसने से पड़नेवाली गाँठ या गुत्थी।
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गुरचों  : स्त्री० [अनु०] आपस में धीरे-धीरे होनेवाली बात-चीत काना-फूसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरज  : पुं० [फा० गुर्ज] १. किसी भवन, मीनार आदि का ऊपरी गोलाकार भाग। गुंबज। उदाहरण–सोभित सुबरन बरन मैं उरज गुरज के रूप।–मतिराम। २. एक प्रकार का गदा। गुर्ज।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरजा  : पुं० [देश०] लवा या लोवा नामक पक्षी।
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गुरझन  : स्त्री० [सं० अवरुधन, पुं० हिं० उरझन] १. पेंच की बात उलझन। २. ग्रंथि। गाँठ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरझना  : अ०=उलझना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरझाना  : स०=उलझाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरथ्थ  : पुं० [सं, गुरु+अर्थ] गंभीर बहुत बड़ा या महत्वपूर्ण अर्थ।
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गुरदा  : पुं० [फा० गुर्दः] १. रीढ़दार जीवों के पेट के अंदर के वे जो खोये हुए पदार्थों से बननेवाला रक्त साफ करते हैं और बचे हुए तर पदार्थ को पेशाब के रूप में नीचे मूत्राशय में भेजते हैं। (किडनी) साहस। हिम्मत। ३. एक प्रकार की छोटी तोप। ४. लोहे का एक प्रकार का बड़ा कलछा जिससे पकाते समय गुड चलाया जाता है।
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गुरदाह  : पुं०=गुरदा (छोटी तोप)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरदिल  : पुं० [देश०] १. जलाशयों के किनारे रहने तथा मछलियाँ खानेवाला किलकिला की जाति का पक्षी। बदामी। २. कचनार।
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गुरना  : अ०=घुलना। उदाहरण–गुरि गुरि आपु हेराई जौं मुएहु न छाँडैं पास।–जायसी।
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गुरनियालू  : पुं० [देश०] जमीकंद रतालू आदि की जाति का एक प्रकार का कंद।
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गुरँब  : पुं०=गुडंबा। उदाहरण०–औभा अंब्रित गुरँब गरेठा।–जायसी।
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गुरबत  : स्त्री० [अ०] १. विदेश का निवासी। प्रवास। २. यात्रा-काल में पथिक की दोन स्थिति। निस्सहाय होने की अवस्था। ३. उक्त अवस्था के फलस्वरूप मनुष्य की परवशता तथा विवशता।
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गुरबरा  : पुं० [हिं० गुड़+बरा] [स्त्री० अल्पा० गुरबरी] १. गुड़ डालकर पकाया हुआ मीठा बड़ा। २. गुड़ के घोल में डाला हुआ बड़ा।
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गुरंबा  : पुं० दे० ‘गुडंबा’।
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गुरबिनी  : स्त्री० [सं० गुर्विणी] १. गुरु-पत्नी। २. गर्भवती स्त्री।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरंभर  : पुं० [हिं० गुडंबा] मीठे आम का पेड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरमुख  : वि० [हिं० गुरु+मुख] जिसने गुरु से मंत्र लिया हो। दीक्षित।
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गुरमुखी  : स्त्री० [सं० गुरु+मुख+हिं० ई (प्रत्य०)] पंजाब में प्रचलित देवनागरी लिपि का वह रूप जिसे सिक्खों के पाँचवें गुरु अर्जुनदेव ने चलाया था।
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गुरम्मर  : पुं० [हिं० गुड़+अंब] १. गुड़ की तरह मीठे फलोंवाला आम का पेड़। २. दे० ‘गुडंबा’।
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गुरल  : पुं० [?] भूरे रंग की एक प्रकार की पहाड़ी बकरी जिसे कश्मीर में रोम और असम में छागल कहते हैं और जिसका मांस बहुत स्वादिष्ट होता है।
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गुरवनी  : स्त्री०=गुर्विणी (गर्भवती)।
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गुरवी  : वि० [सं० गर्व] अभिमानी। घमंडी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरसल  : पुं० [देश०] किलहँटी या गिलगिलिया नामक पक्षी।
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गुरसी  : स्त्री० =गोरसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरसुम  : पुं० [देश०] सोनारों की एक प्रकार की छेनी।
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गुरहा  : पुं० [देश०] १. छोटी नावों के अंदर की ओर दोनों सिरों पर जड़े हुए तख्ते जिनमें से एक पर मल्लाह बैठता है और दूसरे पर सवारियाँ बैठती है। २. एक प्रकार की छोटी मछली।
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गुराई  : स्त्री० [?] तोप लादने की गाड़ी। स्त्री० गोराई (गोरापन)। उदाहरण–साँवरे छैल छुओगे जु मोहिं तो गोरे गात गुराई न रैहै।
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गुराउ  : पुं०=गोरापन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुराब  : पुं० [देश०] १. तोप लादने की गाड़ी। २. वह नाव जिसमें एक ही मस्तूल हो। वि० [सं० गुरु] १. बहुमूल्य। उदाहरण–सुनि सौमेन बधाइ दिय, है गै चीर गुराब।–चंदवरदाई। २. बड़ा या भारी। पुं०=गुराई। पुं० [हिं० गुरिया] १. चारा काटने का काम। २. चारा काटने का गँड़ासा।
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गुरायसु  : स्त्री० [सं० गुरु+हिं० आयसु] गुरुओं या बड़े लोगों की आज्ञा या आदेश।
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गुरि  : स्त्री०=गुर (युक्ति)।
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गुरिग  : स्त्री०=गोरी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरिंद  : पुं० [फा० गुर्ज] गदा। (क्व०)
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गुरिंदा  : पुं० [फा० गोयंदा] जासूस। भेदिया।
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गुरिय  : स्त्री०=गोरी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरिया  : स्त्री० [सं०, गुटिका] १. धातु, लकड़ी, शीशे आदि का वह छोटा छेददार दाना जिसे माला में पिरोते हैं। मनका। २. किसी वस्तु का छोटा अंश। टुकड़ा। ३. मछली के मांस का टुकड़ा। स्त्री० [देश०] १. दरी बुनने के करघे की वह बड़ी लकड़ी जिसमें बै का बाँस लगा रहता है। झिल्लन। २. पाटे या हेंगे की वह रस्सी जो बैलों की गरदन के पास जूए के बीच में बाँधी जाती है।
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गुरिल्ला  : पुं०=गोरिल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरीरा  : वि० [हिं० गुड़+ईरा (प्रत्यय)] १. जिसमें गुड़ की-सी मिठास हो। २. उत्तम। बढ़िया।
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गुरु  : वि० [सं०√गृ (उपदेश देना) +कु] १. (वस्तु) जो तौल या भार में अधिक हो। वजनी। जैसे–गुरु भार। २. अधिक लंबाई-चौड़ाई या विस्तारवाला। ३. (शब्द या स्वर) जिसके उच्चारण या निर्वहण में किसी नियत मान से दूना समय लगता हो। जैसे–गुरु अक्षर, गुरु मात्रा। ४. महत्वपूर्ण। जैसे–गुरु अर्थ। ५. बल, बुद्धि, वय, विद्या आदि में बड़ा और फलतः आदरणीय या वंदनीय। जैसे–गुरु-जन। ६. कठिन। मुश्किल। जैसे–गुरु-कार्य। ७. कठिनता से अथवा देर में पकने या पचनेवाला। जैसे–गुरु पाक। पुं० [स्त्री० गुरुआनी] १.विद्या पढाने या कला आदि की शिक्षा देनेवाला आचार्य। शिक्षक। उस्ताद। २. यज्ञोपवीत कराने और गायत्री मंत्र का उपदेश देनेवाला आचार्य। ३. देवताओं के आचार्य और शिक्षक बृहस्पति। ४. बृहस्पति नामक ग्रह। ५. पुष्प नक्षत्र जिसका अधिष्ठाता देवता बृहस्पति ग्रह है। ६. छंदशास्त्र में, दो कलाओं या मात्राओंवाला अक्षर जिसका चिन्ह ऽ है। जैसे–का, दा आदि। ७. संगीत में, वह ताल का वह अंश जिसमें एक दीर्घ या दो लघु मात्रायें होती है और उसका चिन्ह्र ऽ है। ८. ब्रह्मा। ९. विष्णु। १॰. महेश। शिव। ११. परमेश्वर। १२. द्रोणाचार्य। १३. कोई पूज्य और बड़ा व्यक्ति। १४. कुछ हठयोगियों के अनुसार शरीर के अन्दर का एक चक्र या कमल जो अष्टकमल से भिन्न और अतिरिक्त है।
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गुरु-कुंडली  : स्त्री० [ष० त० ] फलित ज्योतिष में वह कुंडली या चक्र जिसके द्वारा जन्म नक्षत्र के अनुसार एक-एक वर्ष के अधिपति ग्रह का निरूपण होता है।
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गुरु-कुल  : पुं० [ष० त० ] १. गुरु का घराना या वंश। २. गुरु, आचार्य या शिक्षक के रहने का वह स्थान जहाँ वह विद्यार्थियों को अपने पास रखकर शिक्षा देता हो। ३. उक्त के अनुकरण पर बननेवाला एक आधुनिक विद्यापीठ जिसमें विद्यार्थियों को प्राचीन सांस्कृतिक ढंग से शिक्षा देने के सिवा उनसे ब्रह्मचर्य आदि का पालन कराया जाता है।
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गुरु-गंधर्व  : पुं० [कर्म० स०] इन्द्रजाल के छः भेदों में से एक।
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गुरु-गम  : वि० [सं०+हिं०] १. गुरु के माध्यम से प्राप्त होनेवाला। जैसे–गुरु गम ज्ञान। २. गुरु का बतलाया हुआ।
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गुरु-ग्रह  : पुं० दे० ‘गुरु कुल’ २. और ३.।
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गुरु-जन  : पुं० [कर्म० स०] माता-पिता,आचार्य आदि पूज्य और बड़े लोग।
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गुरु-तल्प  : पुं० [ष० त०] १. गुरु की शय्या। २. गुरु की पत्नी। ३. गुरु (पूज्य और बड़ी) की स्त्री के साथ किया जाने वाला संभोग जो बहुत बड़ा पाप माना जाता है।
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गुरु-तल्पग  : पुं० [सं० गुरुतल्प√गम् (जाना)+ड] गुरुतल्प नामक पाप करनेवाला व्यक्ति।
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गुरु-ताल  : पुं० [ब० स०]संगीत में एक प्रकार का ताल।
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गुरु-तोमर  : पुं० [कर्म० स०] तोमर छंद का वह रूप जो उसके प्रत्येक चरण के अन्त में दो मात्राएँ बढ़ाने से बनता है।
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गुरु-दक्षिणा  : स्त्री० [मध्य० स० ] प्राचीन भारत में सारी विद्या पढ़ चुकने के उपरान्त गुरु को दी जानेवाली उसकी दक्षिणा।
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गुरु-दैवत  : पुं० [ब० स०] पुष्प नक्षत्र।
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गुरु-पत्रक  : पुं० [ब० स०] राँगा या बंग नामक धातु।
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गुरु-पाक  : वि० [ब० स०] (खाद्य पदार्थ) जो सहज में न पकता या न पचता हो। कठिनता से अथवा देर में पकने या पचनेवाला।
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गुरु-पुष्प  : पुं० [मध्य० स०] बृहस्पति के दिन पुण्य नक्षत्र पड़ने का योग जो शुभ कहा गया है।
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गुरु-पूर्णिमा  : स्त्री० [ष० त० ] आषाढ़ की पूर्णिमा जिस दिन गुरु की पूजा करने का माहात्म्य है।
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गुरु-बला  : स्त्री० [ब० स०] संकीर्ण राग के एक भेद।
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गुरु-मंत्र  : पुं० [मध्य० स० ] १. वह मंत्र जो गुरु के द्वारा शिष्य को दीक्षा देने के समय गुप्त रूप से बतलाया जाता है। २. कोई काम करने की सबसे बड़ी युक्त जो किसी बहुत बड़े अनुभवी ने बतलाई हो।
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गुरु-मार  : वि० [सं० गुरु+हिं० मारना] १. अपने गुरु को दबाकर उसका स्थान स्वयं लेनेवाला ।(व्यक्ति) २. गुरु को भी दबा या परास्त कर सकने वाला (उपाय या साधन)। जैसे–गुरु मार विद्या।
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गुरु-मुख  : वि० [ब० स०] जिसने धार्मिक दृष्टि से किसी गुरु से मंत्र लिया या सीखा हो।
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गुरु-रत्न  : पुं० [कर्म० स०] १. पुष्पराग या पुखराज नामक रत्न। २. गोमेद नामक रत्न।
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गुरु-वर  : पुं० [स० त०] १. बृहस्पति। २. गुरुओं में श्रेष्ठ व्यक्ति।
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गुरु-वासर  : पुं० [ष० त० ] =गुरुवार।
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गुरु-सिंह  : पुं० [ब० स०] एक पर्व जो उस समय लगता है जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि पर आता है।
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गुरुआइन  : स्त्री०=गुरुआनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरुआई  : स्त्री० [सं० गुरु+हिं० आई (प्रत्यय)] १. गुरु का कार्य, धर्म या पद। २. चालाकी। धूर्त्तता।
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गुरुआनी  : स्त्री० [सं० गुरु+हिं० आनी प्रत्यय] १. गुरु की पत्नी। २. विद्या सिखाने अथवा शिक्षा देनेवाली स्त्री। शिक्षिका।
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गुरुइ  : स्त्री०=गुर्वी (गर्भवती)। वि०=गुरु (भारी)। उदाहरण–बिरह गुरुइ खप्पर कै हिया।–जायसी।
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गुरुघ्न  : पुं० [सं० गुरु√हन् (हिंसा)+क] गुरू अथवा किसी गुरूजन को मार डालनेवाला व्यक्ति, अर्थात् बहुत बड़ा पापी।
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गुरुच  : स्त्री० [सं० गुडूची] पेडों पर चढ़नेवाली एक प्रकार की मोटी लता जो बहुत कड़वी होती और प्रायः ज्वर आदि रोगों में दी जाती है। गिलोय।
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गुरुच-खाप  : पुं० [?] एक उपकरण या औजार जिससे बढ़ई लकड़ी छीलकर गोल करते हैं।
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गुरुचांद्री  : वि० [सं० गुरुचंद्रीय] जो गुरु और चन्द्रमा के योग से होता हो। जैसे–गुरुचांद्री योग।
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गुरुडम  : पुं० [सं० गुरु+अं० प्रत्यय० डम] दूसरों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए गुरु बनने का ढोंग रचना।
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गुरुतल्पी(ल्पिन्)  : पुं० [गुरूतल्प+इनि] =गुरू-तल्पग।
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गुरुता  : स्त्री० [सं० गुरु+तल्-टाप्] १. गुरु होने की अवस्था या भाव। २. भारीपन। ३. बड़प्पन। महत्ता।
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गुरुत्व  : पुं० [सं० गुरु+त्व] १. गुरु होने की अवस्था या भाव। २. गुरु का कार्य या पद। ३. भारीपन। ४. बड़प्पन। महत्त्व। ५. पृथ्वी की वह आकर्षण शक्ति जो अधर में के पदार्थों को अपनी ओर अर्थात् नीचे खींचती है। (ग्रेविटी)
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गुरुत्व-केन्द्र  : पुं० [ष० त०] पदार्थ विज्ञान में किसी पदार्थ के बीच का वह बिन्दु जिस पर यदि उस पदार्थ का सारा विस्तार सिमट कर आ जाए तो भी उसके गुरुत्वाकर्षण में कोई अन्तर न पडे। (सेन्टर
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गुरुत्व-लम्ब  : पुं० [ष० त०] किसी पदार्थ के गुरुत्व केन्द्र से सीधे नीचे की ओर खींची जानेवाली रेखा।
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गुरुत्वाकर्षण  : पुं० [सं० गुरुत्व-आकर्षण, ष० त०] भौतिक शास्त्र में, वह शक्ति जिसके द्वारा कोई पिंड किसी दूसरी पिंड को अपनी ओर आकृष्ट करता है अथवा स्वयं उसकी ओर आकृष्ट होता है। पिंड़ों की एक दूसरे को आकृष्ट करने की वृत्ति। (ग्रैविटेशन)
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गुरुद्वारा  : पुं० [सं० गुरु-द्वार] १. आचार्य या गुरु रहने का स्थान। २. सिक्खों का वह पवित्र मंदिर जहाँ लोग ग्रन्थसाहब का पाठ करने जाते हैं।
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गुरुबिनी  : स्त्री० दे० ‘गुर्विणी’।
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गुरुभ  : पुं० [ष० त० ] १. पुष्प नक्षत्र। २. मीन राशि। ३. धनु राशि।
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गुरुभाई  : पुं० [सं० गुरु+हिं० भाई] दो या दो से अधिक ऐसे व्यक्ति जिन्होंने एक ही गुरु से मंत्र लिया या शिक्षा पाई हो। एक ही गुरु के शिष्य।
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गुरुमुखी  : स्त्री०=गुरमुखी (लिपि)।
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गुरुवासी(सिन्)  : पुं० [गुरूवास, स० त० +इनि] गुरु के घर में रहकर शिक्षा प्राप्त करनेवाला शिष्य। अंतेवासी।
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गुरुशिखरी (रिन्)  : पुं० [मध्य० स०+इनि] हिमालय जिसकी चोटी सब पहाड़ो की चोटियों में ऊँची है।
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गुरू  : पुं० [सं० गुरु] १. गुरू। आचार्य। २. बहुत बड़ा धूर्त। चालाक।
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गुरू-घंटाल  : पुं० [हिं० गुरू+घंटा] बहुत बड़ा चालाक या धूर्त।
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गुरू-वार  : पुं० [ष० त०] सप्ताह का पाँचवा दिन जो बुधवार के बाद और शुक्रवार से पहले पड़ता है। बृहस्पतिवार।
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गुरेट  : पुं० [हिं० गुर, गुड़+बेट] एक प्रकार का बेलन जिससे कड़ाहे में पकाया जानेवाला ईख का रस चलाया जाता है।
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गुरेर  : स्त्री० [हिं० गुरेरना] गुरेरने की क्रिया ढंग या भाव। स्त्री०=गुलेल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरेरना  : स० [सं० गुरू=बड़ा+हेरना=ताकना] आँखें फाड़कर और क्रोधपूर्वक किसी की ओर देखना। घूरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरेरा  : पुं० [हिं० गुरेरना] १. किसी को गुरेरने या क्रोधपूर्वक देखने की क्रिया या भाव। पद-गुरेरा=गुरेरी-एक दूसरे को क्रोधपूर्वक देखना। २.आमना-सामना। देखा-देखी।
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गुर्ज  : पुं० [फा०] १. गदा नामक पुराना शस्त्र। २. मोटा डंडा या सोंटा। पुं०=बुर्ज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुर्ज-बरदार  : पुं० [फा०] गदाधारी सैनिक।
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गुर्जमार  : पुं० [फा० गुर्ज+हिं० मार] १. हाथ में लोहे की गदा लेकर चलनेवाले मुसलमान फकीरों का एक संप्रदाय। २. उक्त संप्रदाय का फकीर।
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गुर्जर  : पुं० [सं० गुरु√जृ (जीर्ण होना)+णइच्+अण्] [स्त्री० गुर्जरी] १. गुजरात देश। २. उक्त देश का निवासी। ३. उक्त देश में रहनेवाली एक प्राचीन जाति जो अब गूजर कहलाती है।
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गुर्जराट  : पुं० [सं० गुर्जर-राष्ट्र] गुजरात देश।
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गुर्जरी  : स्त्री० [सं० गुर्जर+ङीष्] १. गुजरात देश की स्त्री। २. गुर्जर या गूजर जाति की स्त्री। ३. एक रागिनी जो भैरव राग की भार्या कही गई है। गूजरी।
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गुर्जी  : पुं० [?] १. एक प्रकार का कुत्ता। स्त्री०१=बुर्जी। २. =झोपड़ी।
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गुर्द  : पुं० [फा०] गुर्दिस्तान का निवासी।
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गुर्दा  : पुं०=गुरदा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुर्दिस्तान  : पुं० [फा०] फारस के उत्तर का एक प्राचीन प्रदेश। आजकल का कुर्दिस्तान।
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गुर्र  : वि० पुं० १.=गुर्रा। २. =गर्रा। स्त्री०=गुर्राहट।
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गुर्रा  : पुं० [अ० गुर्रः] १. मुहर्रम महीने की द्वितीया का चाँद। २. छुट्टी का दिन। ३. काम के बीच में पड़नेवाला नागा। ४. अनशन। उपवास। ५. टाल-मटोल। हीला-हवाला। क्रि० प्र०-बताना। पुं० वि० लाल और सफेद मिला हुआ। पुं० दे० गर्रा।
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गुर्राना  : अ० [अनु० ] १. गुर्र गुर्र शब्द करना। जैसे–कुत्ते का गुर्राना। २. क्रोध में आकर कर्कश स्वर में बोलना। जैसे–आपस में एक दूसरे पर गुर्राना।
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गुर्राहट  : स्त्री० [हिं० गुर्राना] गुर्राने की क्रिया या भाव।
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गुर्री  : स्त्री० [देश०] बुने हुए जौ।
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गुर्वादित्य  : पुं० [सं० गुरु-आदित्य,ब० स०] गुरु अर्थात् बृहस्पति और आदित्य अर्थात् सूर्य का एक साथ एक ही राशि में होनेवाला गमन। इसे एक प्रकार का योग माना गया है।
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गुर्विणी  : स्त्री० [सं० गुरु+इनि-ङीष्] १. गर्भवती स्त्री। २. गुरु की स्त्री। गुरु-पत्नी।
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गुर्वी  : स्त्री० [सं० गुरु+ङीष्]=गुर्विणी।
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