शब्द का अर्थ
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					चरु					 :
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					पुं० [सं०√ चर्+उ] [वि० चरव्य] १. हवन या यज्ञ की आहुति के लिए पकाया हुआ अन्न। हविष्यान्न। हव्यान्न। २. वह पात्र जिसमें उक्त अन्न पकाया जाता है। ३. यज्ञ। ४. ऐसा भात जिससे माँड़ न निकाला गया हो। ५. पशुओं के चरने की जगह। चरी। चरागाह। ६. वह महसूल जो पशुओँ के चरने की जमीन पर लगता है। ७. बादल। मेघ।				 | 
			
			
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					चरु-पात्र					 :
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					पुं० [ष० त०] वह पात्र जिसमें यज्ञ आदि के लिए हविष्यान्न रखा या पकाया जाता है।				 | 
			
			
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					चरु-व्रण					 :
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					पुं० [ष० त०] प्राचीन काल का एक प्रकार का पूआ। (पकवान) जिस पर चित्र बनाये जाते थे।				 | 
			
			
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					चरु-स्थाली					 :
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					स्त्री० [ष० त०]=चरु-पात्र।				 | 
			
			
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					चरुआ					 :
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					पुं० [सं० चरु] [स्त्री० अल्पा० चरुई] चौड़े मुँहवाला मिट्टी का वह बरतन जिसमें प्रसूता स्त्री के लिए औषध मिला जल पकाया जाता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					चरुका					 :
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					स्त्री० [सं० चरु+कन्-टाप्] एक प्रकार का धान। चरक।				 | 
			
			
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					चरुखला					 :
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					पुं० [हिं० चरखा, पं० चरखला] सूत कातने का छोटा चरखा।				 | 
			
			
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					चरुचेली(लिन्)					 :
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					पुं० [सं० चरु-चेल, उपमि० स०+इनि] शिव।				 | 
			
			
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