चोल/chol

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चोल  : पुं० [सं० चुल्(ऊँचाई+घञ्] १. दक्षिण भारत का एक प्राचीन देश जो आधुनिक तंजौर त्रिचनापल्ली आदि के आस-पास और दक्षिणी मैसूर तक विस्तृत था। २. उक्त देश का निवासी। ३. स्क्षियों के पहने की चोली। ४. मंजीठ। ५. कवच। जिरह-बक्तर। ६. छाल। वल्कल। वि० लाल (रंग)।
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चोल-खंड  : पुं० [मध्य० स०] कपड़े का वह टुकड़ा जो प्रायः साड़ियों के साथ (अथवा अलग भी) इसलिए बुना जाता है कि उससे चोली या कुरती बन सके।
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चोल-रंग  : पुं० [सं० चोल=मंजीठ+रंग] मंजीठ का रंग जो पक्का लाल होता है।
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चोल-सुपारी  : स्त्री० [सं० चोल+हिं० सुपारी] चोर देश की बढ़िया सुपारी।
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चोलक  : पुं० [सं० चोल+कन्] चोल।
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चोलकी(किन्)  : पुं० [सं० चोलक+इनि] १. बाँस का कल्ला। २. नारंगी का पेड़। ३. करील का पेड़। ४. हाथ की कलाई या पहुँचा।
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चोलन  : स्त्री० [सं० चोल+क्विप्+ल्यु-अन]=चोलकी।
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चोलना  : स० [?] थोड़ीमात्रा में कोई चीज खाना। मुहावरा–मुँह चोलना नाममात्र के लिए कुछ या थोड़ा-सा खा लेना। पुं०=चोला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चोला  : पुं० [सं० चोड़क, चोलक, प्रा० चोलअ. पा० चोलो; पं० चोल्ला, सि० चोली] [स्त्री० अल्पा० चोली] १. एक प्रकार का बहुत लंबा और घेरदार पहनावा जो प्रायः साधु-संत आदि पहनते हैं। २. वह सिला हुआ नया कपड़ा जो कुछ रसम करने के बाद छोटे बच्चों को पहले-पहल पहनाया जाता है। मुहावरा–चोला पड़ना कुछ धार्मिक और सामाजिक कृत्यों के बाद छोटे बच्चे को पहले-पहल सिला हुआ नया कपड़ा पहनाया जाना। ३. छोटे बच्चे को पहले-पहल सिला हुआ नया कपड़ा पहनाने की रसम या रीति। ४. तन बदन। शरीर। जैसे–चोला मगन रहे (आर्शीवाद)। मुहावरा–चोला छोड़ना दूसरा और नया जन्म या शरीर धारण करने के लिए यह शरीर छोड़ना। जैसे–स्वामी जी ने अस्सी वर्ष की आयु भोग कर चोला छोड़ा था। चोला बदलना (क) एक शरीर छोड़कर दूसरा नया शरीर धारण करना। (ख) एक रूप या वेष छोड़कर दूसरा रूप या वेश धारण करना। जैसे–आज तो आप चोला बदल कर आये हैं।
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चोली  : स्त्री० [सं० चोल+ङीष्,हिं० चोला] १. स्त्रियों का वह मध्य युगीन पहनावा जिससे उनका वक्ष-स्थल ढका रहता था, और जिसमें नीचे की लगी हुई तनियाँ या बंद पीठ की ओर खींचकर बाँधे जाते थे। २. आज-कल उक्त पहनावे का वह हुआ सुधरा रूप जो स्त्रियाँ स्तनों को ढलने से बचाने के लिए कुरती आदि के नीचे पहनती है। ३. अँगरखें आदि का वह ऊपरी भाग जिसमें बंद लगे रहते हैं। पद-चोली दामन का साथ वैसा ही अभिन्न, घनिष्ट और सदा बना रहनेवाला साथ जैसे–अँगरखें के उक्त ऊपरी भाग तथा दामन या नीचे वाले भाग में होता है। जैसे–रिश्तेदारी में तो आपस में चोली दामन का साथ होता है। ४. साधु-संतों आदि के पहनने का कुछ मोटा चोला। स्त्री०[?] तमोंलियों की पान रखने की डलिया या दौरी।
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चोली-मार्ग  : पुं० [मध्य० स०] वाम मार्ग का वह भेद या संप्रदाय जिसमें उपासिकाओं की चोलियाँ एक बरतन में ढककर रख दी जाती हैं, और तब निकालने पर जिस स्त्री की चोली जिस उपासक के हाथ में आती है, उसी के साथ वह संभोग करता है।
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चोल्ला  : पुं०=चोला।
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