| शब्द का अर्थ | 
					
				| जोश					 : | पुं० [फा०] १. आँच या गरमी के कारण द्रव-पदार्थ में आनेवाला उफान। उबाल। क्रि० प्र०–खाना।–देना। २. वह मनोयोग जिसके कारण मनुष्य अकर्मण्यता, आलस्य या तटस्थता छोड़कर किसी कार्य में आवेश, उत्साह या तत्परतापूर्वक अग्रसर या प्रवृत्त होता है। क्रि० प्र०–आना।–दिलाना। पद–खून का जोश-प्रेम का वह वेग जो अपने कुल, परिवार या वंश के किसी मनुष्य के प्रति हो। जैसे–वह उसके खून का जोश ही या जिससे वह अपने लड़के (या भाई) को बचाने के लिए जलते हुए मकान में घुस गया था। जोश-खरोश-बहुत उत्सुकतापूर्ण आवेश या मनोवेग। | 
			
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				| जोशन					 : | पुं० [फा०] १. बाँह पर पहनने का एक प्रकार का गहना। २. कवच। जिरहबक्तर। (क्व०) | 
			
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				| जोशाँदा					 : | पुं० [फा०] १. ओषधियों, जड़ी-बूटियों आदि को उबालकर बनाया हुआ काढ़ा। २. एक में मिली हुई वे सब ओषधियाँ जिनका काढ़ा बनाया जाता है। जैसे–जोशाँदे की पुड़िया। | 
			
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				| जोशी					 : | पुं०=जोषी। | 
			
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				| जोशीला					 : | वि० [फा० जोश+ईला (प्रत्यय)] १. (व्यक्ति) जो जोश में हो अथवा जिसे बहुत जल्दी जोश आ जाता हो। २. जोश में आकर अथवा दूसरों को जोश में लाने के लिए कहा या किया हुआ। जैसे–जोशीला भाषण। | 
			
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