ठहर/thahar

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ठहर  : पुं० [सं० स्थल] १. जगह। स्थान। २. रसोईघर। चौका। ३. रसोईघर को गोबर आदि से लीपने-पोतने का काम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) क्रि० प्र०–देना। ४. अवसर। मौका।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ठहरना  : अ० [हिं० ठहर] १. चलते-चलते किसी स्थान पर रुकना। गति से रहित होकर स्थित होना। जैसे–डाक-गाड़ी इस छोटे स्टेशन पर भी ठहरती है। २. किसी स्थान पर विश्राम करने अथवा थोड़े समय के लिए रुकना। टिकना। जैसे–अगली बार यहाँ आने पर हम लोग आप ही के यहाँ ठहरेंगे। ३. किसी स्थान पर किसी की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करना। जैसे–(क) दूध या दही का ठहरना। (ख) इनका बुखार १००’ पर ठहरा रहता है। ५. किसी विशिष्ट स्थिति में खड़ा रहना, फलतः किसी ओर न झुकना या नीचे न गिरना। जैसे–अधर में योगी या आकाश में पतंग का ठहरना। ६. किसी विशिष्ट आधार पर स्थित होना जैसे–यह छत चारों खंभों पर ठहरी है। ७. किसी प्रकार की क्रिया, चेष्टा या व्यापार से रहित या हीन होना। जैसे–(क) हवा या वर्षा का ठहरना। (ख) खाँसी या बुखार ठहरना। ८. किसी अशांत या उद्दिग्न स्थिति का फिर से प्रसम या शांत होना। जैसे–अब कुछ तबीयत ठहरी है। ९. धुली हुई वस्तु के नीचे बैठ जाने पर पानी का थिराना। १॰. निश्चित या पक्का होना। जैसे–(क) दर, भाव या मूल्य ठहरना। (ख) सौदा ठहरना। ११. गर्भ रहना। १२. किसी विशिष्ट स्थिति में होना। (केवल जोर देने के लिए) जैसे–(क) तुम तो भाई ठहरे। (ख) आप तो रईस ठहरे।
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ठहराई  : स्त्री० [हिं० ठहराना] १. ठहराने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. अधिकार। कब्जा (क्व०)।
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ठहराउ  : पुं०=ठहराव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ठहराऊ  : वि० [हिं० ठहरना] १. ठहरने या ठहराने वाला। २. टिकाऊ।
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ठहराना  : स० [हिं० ठहरना का स०] १. ठहराने में प्रवृत्त करना। २. किसी चलती हुई चीज को रोककर किसी स्थान पर खड़ा या स्थित करना। जैसे–गाड़ी या नाव ठहराना। ३. किसी को किसी आधार पर इस प्रकार खड़ा या स्थित करना कि वह इधर-उधर होने या हिलने न पावे। जैसे–ऊँगली पर छड़ी ठहराना। ४. किसी प्रकार के आधार पर दृढ़तापूर्वक स्थापित करना। जैसे–खंभों पर छत ठहराना। ५. किसी को अतिथि के रूप में अपने यहाँ अथवा और कहीं ठहरने या कुछ समय तक रखने अथवा रहने की व्यवस्था करना। जैसे–(क) मित्र को अपने यहाँ ठहराना। (ख) धर्मशाला में बरात ठहराना। ६. किसी चलते या होते हुए काम को बंद करना या रोकना। ७. कोई काम चीज या बात इस प्रकार निश्चित करना, कराना कि सहसा उसमें कोई परिवर्तन न हो सके। जैसे–(क) लड़की या लड़के का ब्याह ठहराना। (ख) किराये की गाड़ी या मोटर ठहराना। ८. किसी चीज को नीचे गिरने से बचाने के लिए कोई आड़ या टेक लगाना।
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ठहराव  : पुं० [हिं० ठहराव+आव (प्रत्यय)] १. ठहरने, ठहराने या ठहरे हुए होने की अवस्था या भाव। २. वह स्थिति जिसमें किसी प्रकार की अशांति, उपद्रव, चंचलता आदि न हो। स्थिरता। ३. दो पक्षों में क्रय-विक्रय, विवाद आदि निपटाने के संबंध में होनेवाला निश्चय। ४. दे० ‘ठहरौनी’।
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ठहरु  : पुं० ठहर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ठहरुपक  : पुं० [सं० स्थान+रूपक] सात मात्राओं का मृदंग का एक ताल जो आड़ा-चौताल से मिलता-जुलता होता है।
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ठहरौनी  : स्त्री० [हिं० ठहराना] १. दो पक्षों में होनेवाला वह निश्चय जिसके अनुसार एक पक्ष दूसरे पक्ष को निश्चित धन आदि समय-समय पर देता है। २. विवाह के अवसर पर दहेज आदि का लेन-देन का करार या निश्चय। ३.=ठहराव।
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