तक्ष/taksh

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तक्ष  : पुं० [सं०√तक्ष् (काटना, छीलना)+घञ्] १. पतला करने की क्रिया या भाव। २. रामचन्द्र के भाई भरत का बड़ा पुत्र जिसने तक्षशिला नामकी नगरी बसाई थी।
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तक्ष-शिला  : स्त्री० [ब० स०] भरत के पुत्र तक्ष की बसाई हुई नगरी और बाद में पूर्वी गान्धार की राजधानी जिसके खँडहर रावलपिंडी के पास खोदकर निकाले गये हैं।
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तक्षक  : पुं० [सं०√तक्ष+ण्वुल्-अक] १. पुराणानुसार पाताल के आठ नागों में से एक जो कश्यप का पुत्र था और कद्रु के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। राजा परीक्षित की मृत्यु इसी के काटने से हुई थी। २. सर्प। साँप। ३. विश्वकर्मा। ४. बढ़ई। ५. सूत्रधार। ६. नाग नामक वायु जो दस वायुओं में से एक है। ७. एक प्रकार का पेड़। ८. प्राचीन काल की एक संकर जाति जिसकी उत्पत्ति सूत्रिक पिता और ब्रह्मणी माता से कही गई है। वि० १. तक्षण करनेवाला। २. काटने या छेदनेवाला।
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तक्षण  : पुं० [सं०√तक्ष्+ल्युट–अन] १. लकड़ी काट, छील या रँदकर ठीक और सुडौल करने का काम। २. उक्त काम करनेवाला कारीगर। बढई। ३. पत्थर, लकड़ी आदि में बेल-बूटे या उनसे मूर्तियाँ बनाने का काम।
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तक्षणी  : स्त्री० [सं० तक्षण+ङीप्] बढ़इयो का रंदा नाम का औजार।
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तक्षा(क्षन्)  : पुं० [सं०√तक्ष्+कनिन्] बढ़ई।
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