शब्द का अर्थ
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दह :
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पुं० [सं० ह्रद (आद्यंत विपर्यय)] १. नदी में वह स्थान जहाँ पानी गहरा हो। नदी के अंदर का गहरा गड्ढा। पाल। जैसे—कालीदह। २. पानी का कुंड। हौज। स्त्री०=दाह (जलन)। वि० [सं० दश से फा०] नौ और एक। दस। |
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दह-सनी :
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स्त्री० [फा० दह=दस+सन्=संवत्] ऐसा खाता या बही जिसमें दस-दस सनों (अर्थात् संवतो) के लेखे या हिसाब अलग-अलग लिखे हों या लिखे जाते हों। |
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दहक :
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स्त्री० [हिं० दहकना] १. दहकने की क्रिया या भाव। २. आग की लपट। धधक। ३. जलन। दाह। ४. पश्चात्ताप या उसके कारण होनेवाली लज्जा। |
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दहकन :
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स्त्री० [हिं० दहकना] दहकने की क्रिया या भाव। दहक। |
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दहकना :
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अ० [सं० दहन] १. आग का इस प्रकार जलना कि लपट ऊपर उठने लगे। धधकना। २. तापमान के अत्यधिक बढ़ने के कारण शरीर का जलने लगना। तपना। ३. दुःखी या संतप्त होना। |
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दहकान :
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पुं० [फा०] १. देहात या गाँव का रहनेवाला व्यक्ति। २. किसान। ३. मूर्ख व्यक्ति। |
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दहकाना :
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स० [हिं० दहकना] १. आग या और कोई चीज दहकने अर्थात् अच्छी तरह जलने में प्रवृत्त करना। इस प्रकार जलाना कि लपटें निकलने लगें। जैसे—कोयला या लकड़ी दहकाना। २. उत्तेजित करना। भड़काना। संयो० क्रि०—देना। |
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दहकानियत :
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स्त्री० [फा०] दहकान होने की अवस्था या भाव। गँवारपन। |
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दहकानी :
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पुं० [फा०] दहकान। वि० दहकानों या गँवारों की तरह का। |
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दहग्गी :
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स्त्री० [हिं० दाह+आग] गरमी। ताप। |
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दहड़-दहड़ :
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क्रि० वि० [सं० दहन वा अनु०] (आग की लपटों के संबंध में) दहड़-दहड़ शब्द करते हुए। |
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दहदल :
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स्त्री०=दलदल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दहन :
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पुं० [सं०√दह् (जलना,जलाना)+ल्युट्—अन] [वि० दहनीय, दह्ममान] १. जलने की क्रिया या भाव। दाह। जैसे—लंका-दहन। २. [√दह+ल्यु—अन] अग्नि। आग। ३. एक रूद्र का नाम। ४. ज्योतिष में एक योग जो पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती नक्षत्रों में शुक्र, ग्रह के आने पर होती है। ५. उक्त के आधार पर तीन की संख्या। ६. कृत्तिका नक्षत्र। ७. क्रूर, क्रोधी और दुष्ट स्वभाववाला मनुष्य। ८. चित्रक या चीता नामक वृक्ष। ९. भिलावाँ। १॰. कबूतर। वि० १. जलानेवाला २. नष्ट करनेवाला। (यौ० के अंत में) जैसे—त्रिपुरदहन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [फा०] मुँह। मुख। पुं० [सं० दैन्य] दीनता (पूरब)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) उदाहरण—दहन मानै, दोष न जानै...।—विद्यापति। पुं० [?] कंजा नाम की कँटीली झाड़ी या पौधा। |
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दहन-केतन :
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पुं० [ष० त०] धूम। धूआँ। |
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दहन-शील :
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वि० [ब० स०] जो जल्दी या सहज में जलता या जल सकता हो। |
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दहनर्क्ष :
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पुं० [दहन-ऋक्ष, कर्म० स०] कृत्तिका नक्षत्र। |
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दहना :
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स० [सं० दहन] १. दहन करना। जलाना। २. बहुत अधिक दुःखी या संतप्त करना। कुढ़ाना या जलाना। अ० १. दहन होना। जलना। २. बहुत अधिक दुःखी या संतप्त होकर मन ही मन कुढ़ना या जलना। वि०-दाहिना। अ० [हिं० दह] नीचे बैठना। धँसना। वि०=दाहिना। |
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दहनागुरु :
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पुं० [दहन-अगुरू, च० त०] धूप। |
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दहनाराति :
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पुं० [दहन-अराति, ष० त०] पानी। |
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दहनि :
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स्त्री० [हिं० दहना] दहन होने अर्थात् जलने की क्रिया या भाव। २. जलन। ताप। ३. मन ही मन होनेवाला संताप। कुढ़न। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दहनीय :
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वि० [सं०√दह्+अनीयर्] जलने या जलाये जाने के योग्य। जो जलाया जा सके या जलाया जाने को हो। |
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दहनोपल :
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पुं० [दहन-उपल, च० त०] सूर्यकांतमणि। सूर्यमुखी। आतशी शीशा। |
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दहपट :
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वि० [हिं० दह=दहन+पट=समतल] १. गिराकर जमीन के बराबर किया हुआ। ढाया हुआ। ध्वस्त। २. चौपट, नष्ट या बरबाद किया हुआ। ३. कुचला, मसला या रौंदा हुआ। |
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दहपटना :
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स० [हिं० दहपट] १. ध्वस्त करना। ढाना। २. चौपट, नष्ट या बरबाद करना। ३. कुचलना। रौदना। स०=डपटना। (क्व०) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दहबाट :
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वि० [हिं० दह=दस+बाट=रास्ता] छिन्न-भिन्न। तितर-बितर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दहबासी :
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पुं० [फा० दह=दस+बाशी (प्रत्य०)] दस सिपाहियों का नायक। |
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दहर :
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पुं० [सं०√दह्+अर] १. छोटा चूहा। चुहिया। २. छछूंदर। ३. भाई। ४. बालक। लड़का। ५. नरक। ६. वरूण। वि० १. छोटा या हल्का। २. कम। थोड़ा। ३. बारीक। महीन। सूक्ष्म। ४. गहन। दुर्बोध। पुं० [सं० ह्रद (वर्ण-विपर्यय)] १. जलाशय के अंदर का गहरा गड्ढा। दह। २. जल का कुंड। हौज। |
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दहर-दहर :
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क्रि० वि०=दहड़-दहड़। |
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दहरना :
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अ०=दहलना। स०=दहलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दहराकाश :
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पुं० [सं० दहर-आकाश, कर्म० स०] १. चिदाकाश। ईश्वर। २. हठयोग के अनुसार हृदय में स्थिति वह छोटा सा अवकाश या स्थान जिसमें विशुद्ध आकाश व्याप्त है, और जिसमें निरंतर अनाहत नाद होता रहता है। |
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दहरौरा :
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पुं० [हिं० दही+बड़ा] [स्त्री० अल्पा० दहरौरी] १. दही में पड़ा हुआ बड़ा दही-बड़ा। २. एक तरह का गुलगुला। |
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दहल :
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स्त्री० [हिं० दहलना] १. दहलने की क्रिया या भाव। २. किसी बड़े या विकट काम या चीज को देखकर मन में उत्पन्न होनेवाला वह भय जो सहसा उस काम या चीज की ओर बढ़ने न दे। |
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दहलना :
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अ० [सं० दर=डर+हिं० हलना=हिलना] १. किसी बड़े या विकट काम या चीज को देखकर इस प्रकार कुछ डर जाना कि वह काम करने अथवा उस चीज की ओर बढ़ने का साहस न हो। इतना डरना कि आगे बढ़ने की हिम्मत न हो। जैसे—शेर की दहाड़ या हाथी की चिंघाड़ सुनकर जी दहलना। २. भय से स्तंभित होकर रुक जाना। संयो० क्रि०—उठना।—जाना। विशेष—इस क्रिया का प्रयोग स्वयं व्यक्ति के लिए होता है और उसके कलेजे या जी के संबंध में भी। जैसे—सिपाही का दहलना, और सिपाही का कलेजा या जी दहलना। |
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दहला :
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पुं० [फा० दह=दस+ला (प्रत्य०)] ताश या गंजीफे का वह पत्ता जिस पर दस बूटियाँ हों। दस बूटियोंवाला ताश का पत्ता। पुं०=थाँवला। (वृक्ष का) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दहलाना :
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स० [हिं० दहलना का स०] ऐसा काम करना जिससे कोई दहल जाय या डरकर आगे बढ़ने से रुक जाय। संयो० क्रि०—देना। |
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दहली :
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स्त्री०=दहलीज। |
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दहलीज :
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स्त्री० [हिं० देहरी या देहली का उर्दू रूप] द्वार के चौखट के नीचेवाली लकड़ी जो जमीनपर रहती है। देहरी। डेहरी। देहली। |
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दहशत :
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स्त्री० [फा० दहशत] किसी भयंकर या विकट आकृति, कार्य या पदार्थ को देखने पर होनेवाला ऐसा डर या भय जो आदमी का साहस छुड़ा दे। जैसे—शेर या साँप की दहशत बहुत जबरदस्त होती है। |
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दहा :
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पुं० [सं० दश से फा० दह] १. मुहर्रम मास के प्रारम्भिक दस दिन जिनमें मुसलमान ताजिया रखते और मातम करते हैं। २. ताजिया। ३. मुहर्रम का महीना। |
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दहाई :
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स्त्री० [फा० दह+आई (प्रत्य०)] १. गिनती में दस होने की अवस्था, भाव या मान। जैसे—पाँच दहाई पचास। २. गिनती के विचार से लिखे हुए अंको का दाहिनी ओर से (बाई ओर से नहीं) दूसरा स्थान जिस पर लिखे हुए अंक का मान उसकी अपेक्षा ठीक दस गुना अधिक माना जाता है। जैसे—१२६ में का ६ इकाई के स्थान पर, २ दहाई के स्थान पर और १ सैकड़े के स्थान पर है। |
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दहाड़ :
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स्त्री० [अनु०] १. दहाड़ने की क्रिया या भाव। २. शेर के जोर से गरजने का शब्द। ३. जोरों की ऐसी चिल्लाहट जो दूसरों को डरा दे। |
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दहाड़ना :
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अ० [हिं० दहाड़+ना (प्रत्य०)] १. शेर का जोर से शब्द करना। २. इस प्रकार जोर से चिल्लाना कि लोग डर जायँ। |
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दहाना :
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पुं० [फा० दहानः] १. किसी चीज का मुँह विशेषतः चौड़ा और बड़ा मुँह। २. मशक का मुँह। ३. घोड़े की लगाम जो उसके मुँह में रहती है। ४. भिश्ती की मशक का मुँह। ५. पनाला। मोरी। ६. दे० ‘मुहाना’। (नदी का)। |
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दहार :
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पुं० [अ० दयार=प्रदेश] १. प्रांत। प्रदेश। २. गाँव के आस-पास की भूमि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० दहाड़। |
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दहिऔरी :
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स्त्री०=दहरौरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दहिँगल :
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पुं० [देश०] कीड़े-मकोड़े खानेवाली एक छोटी चिड़िया जिसके परों पर सफेद और काली लकीरे होती हैं। यह रह-रहकर अपनी पूँछ ऊपर उठाया करती है। |
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दहिजरा :
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वि० १.=दारी-जार। २.=दाढ़ी-जार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दहिजार :
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वि० १.=दारी-जार। २.=दाढ़ी-जार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दहिना :
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वि०=दाहिना। |
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दहिनावर्त्त :
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वि०=दक्षिणावर्त्त। |
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दहिने :
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अव्य०=दाहिने। |
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दहियक :
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पुं० [फा० दह=दस] दशमांस। दसवाँ भाग या हिस्सा। |
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दहियल :
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पुं०=दहला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दही :
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पुं० [सं० दधि] दूध में जामन लगाकर जमाये जाने पर उसका तैयार होनेवाला रूप जो थक्के की तरह होता है। पद—दही का तोड़=दही का वह पानी जो उसे कपड़े में बाँधकर रखने पर निकलता है। मुहावरा=दही-दही करना=कोई चीज देने या बेचने के लिए चारों ओर घूम-घूमकर लोगों से उसे लेने के लिए कहते फिरना। |
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दहीला :
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वि० [सं० दाह] [स्त्री० दहीली] १. जला या जलाया हुआ। २. परम दुःखित। संतप्त। उदाहरण—तातै नहिन काम-दहीली।—सूर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दहुँ :
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अव्य० [सं० अथवा] १. अथवा। या। किवा। २. कदाचित। शायद। वि० [सं० दश] पुं० हिं० दह (दस) का समष्टि-वाचक रूप। दसों। उदाहरण—बिनु चरनन कौ दहुँ दिसि धावै बिनु लोचन जग सूझै।—कबीर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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दहेंगर :
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पुं० [हिं० दही+घड़ा] दही रखने का घड़ा या मटका। |
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दहेज :
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पुं० [अ० दहेज] कन्या-पक्ष की ओर से विवाह के अवसर पर कन्या को दिया जानेवाला धन और वस्तुएँ जो वह अपने साथ ससुराल ले जाती है। दायजा। |
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दहेंड़ी :
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स्त्री० [हिं० दही+हाँड़ी] दही रखने की हाँड़ी। उदाहरण—अहै दहेंड़ी जनि धरै, जनि तू लेहि उतार।—बिहारी। |
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दहेला :
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वि० [हिं० दहना+एला (प्रत्य०)] [स्त्री० दहेली] १. जला हुआ। दग्ध। २. दुःखी। संतप्त। दहीला। वि० [?] १. भींगा हुआ। आर्द्र। २. ठिठुरा या सिकुड़ा हुआ। ३. जिसने किसी रस का अनुभव या भोग किया हो। उदाहरण—जिनकी मति की देह दहेली।—केशव। |
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दहोतरसो :
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पुं० [सं० दशोत्तरशत्] एक सौ से दस ऊपर अर्थात् एक सौ दस। |
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दह्य :
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वि० [सं० दाह्य] जो जल सकता हो या जलाया जा सकता हो। (कंबसचिबुल) |
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दह्यमान :
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वि० [सं०√दह्+शानच्] जो जल रहा हो। जलता हुआ। |
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दह्यो :
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पुं०=दही।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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