दीप/deep

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दीप  : पुं० [सं०√दीप (चमकना)+क] १. दीया। चिराग। २. दस मात्राओं का एक छंद जिसके अंत में तीन लघु फिर एक गुरु और फिर एक लघु होता है। पुं० द्वीप। (टापू)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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दीप-कलिका  : स्त्री० [ष० त०] दीये की टेम। चिराग की लौ।
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दीप-कली  : स्त्री० [सं० दीपकलिका] चिराग की टेम। दीपशिखा। दीए की लौ।
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दीप-काल  : पुं० [मध्य० स०] दीया जलाने का समय। संध्या।
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दीप-किट्ट  : पुं० [ष० त०] कज्जल। काजल।
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दीप-कूपी  : स्त्री० [सं० ष० त०] दीये की बत्ती।
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दीप-दान  : पुं० [ष० त०] १. देवता के सामने दीपक जलाने का काम जो पूजन का एक अंग है। २. कार्तिक में राधा-दामोदर के उद्देश्य से बहुत से दीपक जलाने का कृत्य। ३. हिंदुओं में एक रसम जिसमें मरणासन्न व्यक्ति के हाथ से जलते हुए दीपक का दान कराया जाता है।
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दीप-ध्वज  : पुं० [ष० त०] काजल।
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दीप-पादप  : पुं० [ष० त०] दीयट।
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दीप-पुष्प  : पुं० [ब० स०] चंपक-वृक्ष। चंपा।
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दीप-माला  : स्त्री० [ष० त०] १. जलते हुए दीपों की पंक्ति। जगमगाते हुए दीयों की श्रेणी। २. आरती या दीपदान के लिये जलाई जानेवाली बत्तियों की पंक्ति या समूह।
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दीप-मालिका  : स्त्री० [ष० त०] १. दीयों की पंक्ति। जलते हुए दीपों की श्रेणी। २. दीवाली का त्योहार जो कार्तिक की अमावस्या को होता है।
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दीप-माली  : स्त्री० [सं० दीपमालिका] दीवाली।
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दीप-वृक्ष  : पुं० [ष० त०] दीअट।
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दीप-शत्रु  : पुं० [ष० त०] पतंग या फतिंगा। (जो दीपक को बुझा देता है)।
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दीप-शिखा  : स्त्री० [ष० त०] १. दीपक की लौ। टेम। २. दीपक से निकलनेवाला धुआँ।
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दीप-सुत  : पुं० [ष० त०] कज्जल। काजल।
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दीप-स्तंभ  : पुं० [ष० त०] १. वह आधार या स्तंभ जिसके ऊपर रखकर दीया जलाया जाता है। दीयट। २. समुद्र में जहाजों को रात के समय रास्ता दिखाने और उन्हें चट्टानों आदि से बचाने के लिए बना हुआ उक्त प्रकार का स्तंभ जिसके ऊपरी भाग में रात को बहुत तेज रोशनी होती है। (लाइट हाउस)
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दीपक  : वि० [सं०√दीप्+णिच्+ण्वुल्—अक] [स्त्री० दीपिका] १. उजाला या प्रकाश करनेवाला। २. कीर्ति, यश आदि बढ़ानेवाला। जैसे—कुल-दीपक। ३. दीप्त करने अर्थात् पाचन-शक्ति बढ़ानेवाला। जैसे—अग्निदीपक-औषध। ४. शरीर में उमंग, ओज, तेज आदि बढ़ानेवाला। पुं० [दीप+कन्] १. चिराग। दीया। २. साहित्य में एक प्रकार का अलंकार जिसमें प्रस्तुत और अप्रस्तुत का एक ही धर्म कहा जाता है। अथवा बहुत ही क्रियाओं का एक ही कारक होता है। ३. संगीत में छः मुख्य रागों में से एक। ४. संगीत में एक प्रकार का ताल। ५. अजवायन, जो अग्नि दीपक होती है। ६. केसर। ७. बाज नामक पक्षी। ८. मोर की चोटी या शिखा। ९. एक प्रकार की आतिशबाजी।
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दीपक-माला  : स्त्री० [ष० त०] १. एक प्रकार के वर्ण-वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में भगण, मगण, जगण और एक गुरु होता है। २. दीपक अलंकार का एक भेद।
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दीपक-वृक्ष  : पुं० [ष० त०] वह बड़ा दीवट जिसमें दीए रखने के लिए कई शाखाएँ इधर-उधर निकलती हों। झाड़।
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दीपक-सुत  : पुं० [ष० त०] कज्जल। काजल।
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दीपंकार  : पुं० [सं०] बुद्ध के अवतारों में से एक।
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दीपकावृत्ति  : स्त्री० [दीपक-आवृत्ति] १. दीपक अलंकार का एक भेद। २. पनशाखा।
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दीपग  : पुं०=दीपक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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दीपगर  : पुं० [सं० दीपगृह] दीयट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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दीपत  : स्त्री० [सं० दीप्त] १. चमक। दीप्ति। २. शोभायुक्त सौंदर्य। ३. कीर्ति। यश।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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दीपता  : वि० [सं० दीप्ति] १. प्रकाशित। चमकीला। २. शोभित। ३. प्रसिद्ध।
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दीपति  : स्त्री०=दीप्ति (प्रकाश)।
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दीपदानी  : स्त्री० [सं० दीप-आधान] पूजा के लिए घी, बत्ती आदि (दीपक जलाने की सामग्री) रखने की डिबिया।
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दीपन  : पुं० [सं० दीप् (प्रकाशित करना)+णिच्+ल्युट्—अन] [वि० दीपनीय, दीपित, दीप्त, दीप्य] १. प्रकाश करने के लिए दीपक या और कोई चीज जलाना। २. जठराग्नि तीव्र और प्रज्वलित करना। पाचन-शक्ति बढ़ाना। ३. किसी प्रकार का मनोवेग उत्तेजित और तीव्र करना। उत्तेजन। ४. [√दीप्+णिच्+ल्यु—अन] एक संस्कार जो मंत्र को जाग्रत और सक्रिय करने के लिए किया जाता है। ५. पारा शोधने के समय किया जानेवाला एक संस्कार। ६. तगर की जड़ या लकड़ी। ७. मयूरशिखा नाम की बूटी। ८. केसर। ९. प्याज। १॰. कसौंधा। कासमर्द। वि० १. अग्नि को प्रज्वलित करनेवाला। आग भड़कानेवाला। २. जठराग्नि तीव्र करने पाचन-शक्ति बढ़ानेवाला।
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दीपन-गण  : पुं० [ष० त०] जठराग्नि को तीव्र करनेवाले पदार्थों का एक गण या वर्ग। भूख लगने वाली औषधियों का वर्ग।
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दीपना  : अ० [सं० दीपन] प्रकाशित होना। चमकाना। जगमगाना। स० तीव्र या प्रज्वलित करना।
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दीपनी  : स्त्री० [सं० दीपन+ङीष्] १. मेथी। २. पाठा। ३. अजवायन।
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दीपनीय  : वि० [सं०√दीप् (दीप्ति)+अनीयर्] १. जो दीपन के लिए उपयुक्त हो। जो जलाया या प्रज्वलित किया जा सके। २. जो उत्तेजित, तीव्र या प्रबल किये जाने के योग्य हो।
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दीपनीय-वर्ग  : पुं० [ष० त०] चक्रदत्त के अनुसार एक ओषधि वर्ग जिसके अंतर्गत जठराग्नि तीव्र करनेवाली ये ओषधियाँ हैं—पिप्पली, पिप्पलामूल, चव्य, चीता और नागर।
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दीपनीयक  : वि० [सं०] दीपन।
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दीपवती  : स्त्री० [सं० दीप+मतुप्—ङीष्] कालिका पुराण के अनुसार एक नदी जो कामाख्या में है और जिसके पूर्व में श्रृंगार नाम का प्रसिद्ध पर्वत है।
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दीपा  : वि० [?] १. मंद। धीमा। २. फीका।
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दीपांकुर  : पुं० [दीप-अंकुर, ष० त०] दीए की लौ।
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दीपाग्नि  : पुं० [दीप-अग्नि, ष० त०] १. दीये की लौ। २. उक्त की आँच या ताप।
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दीपाधार  : पुं० [दीप-आधार, ष० त०] वह आधार या स्तंभ जिस पर रखकर दीये जलाये जायँ। दीयट।
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दीपान्विता  : स्त्री० [दीप-अन्विता, तृ० त०] कार्तिक मास की अमावास्या। दीवाली की रात।
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दीपाराधन  : पुं० [दीप-आराधन, ष० त०] दीप जलाकर तथा उन्हें किसी के सम्मुख घुमाते हुए आराधन करना। आरती करना।
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दीपालि, दीपाली  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. दीपमाला। २. दीपावली। दीवाली।
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दीपावती  : स्त्री० [सं० दीप+मतुप्—ङीष् (दीर्घ)] एक रागिनी जो दीपक और सरस्वती रागों के योग से बनी है।
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दीपावली  : स्त्री० [दीप-आवली, ष० त०] १. दीप-श्रेणी। दीयों की पंक्ति। २. दीवाली।
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दीपिका  : स्त्री० [सं० दीप+क—टाप्, इत्व] १. छोटा दीया। २. [√दीप्+णिच्+ण्वुल्—अक, टाप्, इत्व] चाँदनी। ३. संध्या के समय गाई जानेवाली एक रागिनी जो हिंडोल राग की पत्नी कही गई है। ४. किसी कठिन ग्रंथ का सरल आशय बतानेवाली टीका या पुस्तक। वि० स्त्री० [हिं० दीपक का स्त्री०] समस्त पदों के अंत में, दीपन अर्थात् उजाला या प्रकाश करनेवाली।
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दीपिका-तैल  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का आयुर्वेदोक्त तेल जो कान की पीड़ा दूर करता है।
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दीपित  : भू० कृ० [सं०√दीप्+णिच्+क्त] १. दीप्त किया अर्थात् जलाया हुआ। २. दीपों से युक्त। ३. उजाले या प्रकाश से युक्त किया हुआ। प्रकाशित। प्रज्वलित। ४. चमकता या जगमगाता हुआ। ५. जिसे उत्तेजना दी गई हो या मिली हो। उत्तेजित।
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दीपी (पिन्)  : वि० [सं० उत्तरपद में] १. जलता हुआ। २. चमकता हुआ। ३. दीपन करनेवाला।
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दीपोत्सव  : पुं० [दीप-उत्सव, ष० त०] १. दीप जलाकर मनाया जानेवाला उत्सव। २. दीवाली।
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दीप्त  : वि० [सं०√दीप्+क्त] [स्त्री० दीप्ता] १. जलता हुआ। प्रज्वलित। २. चमकता या जगमगाता हुआ। प्रकाशित। पुं० १. सोना। स्वर्ण। २. हींग। ३. नींबू। ४. सिंह। शेर। ५. एक रोग जिसमें नाक में जलन होती है तथा उसमें से गरम हवा निकलती है।
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दीप्त-किरण  : पुं० [ब० स०] १. सूर्य। २. आक। मदार।
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दीप्त-कीर्ति  : पुं० [ब० स०] कार्तिकेय।
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दीप्त-केतु  : पुं० [ब० स०] दक्ष सावर्णि मनु के एक पुत्र का नाम। (भागवत)
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दीप्त-जिह्वा  : स्त्री० [ब० स०] १. मादा गीदड़। सियारिन। २. लाक्षणिक अर्थ में, झगड़ालू स्त्री।
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दीप्त-पिंगल  : पुं० [उपमि० स०] सिंह।
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दीप्त-रस  : पुं० [ब० स०] केंचुआ।
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दीप्त-रोमा (मन्)  : पुं० [ब० स०] एक विश्वदेव का नाम। (महाभारत)
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दीप्त-लोचन  : पुं० [ब० स०] बिल्ला।
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दीप्त-लौह  : पुं० [कर्म० स०] काँसा।
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दीप्त-वर्ण  : वि० [ब० स०] चमकते या दमकते हुए वर्णमाला। पुं० कार्तिकेय।
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दीप्त-शक्ति  : पुं० [ब० स०] कार्तिकेय।
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दीप्तक  : पुं० [सं० दीप्त+क (स्वार्थे)] १. सोना। सुवर्ण। २. दे० ‘दीप्त’ (नाक का रोग)।
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दीप्ता  : वि० स्त्री० [सं० दीप्त+टाप्] चमकती हुई। प्रकाशमान। जैसे—सूर्य के प्रकाश से दीप्ता दिशा। स्त्री० १. ज्योतिष्मती। मालकंगनी। २. कलियारी। ३. सातला (थूहर)।
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दीप्ताक्ष  : वि० [दीप्त-अक्षि, ब० स० (षच् समा०)] चमकती हुई आँखोंवाला। पुं० बिल्ला। बिड़ाल।
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दीप्तांग  : वि० [दीप्त-अंग, ब० स०] जिसका शरीर चमकता हो। पुं० मोर पक्षी। मयूर।
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दीप्ताग्नि  : वि० [दीप्त-अग्नि, ब० स०] १. जिसकी जटराग्नि बहुत तीव्र हो। जिसकी पाचन-शक्ति अत्यंत प्रबल हो। २. जिसे बहुत भूख लगी हो। भूखा। पुं० अगस्त्य मुनि जो वातापि राक्षस को खाकर पचा गये थे और समुद्र का सारा जल पी गये। स्त्री० प्रज्वलित अग्नि।
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दीप्तांशु  : पुं० [दीप-अंशु, ब० स०] १. सूर्य। २. आक। मदार।
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दीप्ति  : स्त्री० [सं०√दीप्+क्तिन्] १. दीप्त होने की अवस्था या भाव। प्रकाश। उजाला। रोशनी। २. आभा। चमक। ३. छवि। शोभा। ४. योग में ज्ञान का प्रकाश जिससे हृदय का अंधकार दूर होता है। ५. लाक्षा। लाख। ६. काँसा। ७. थूहर। ८. एक विश्व-देव का नाम।
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दीप्तिक  : पुं० [सं० दीप्ति√कै (मालूम पड़ना)+क] शिरशोला। दुग्धपाषाण वृक्ष।
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दीप्तिमान् (मत्)  : वि० [सं० दीप्ति+मतुप्] [स्त्री० दीप्तिमती] १. दीप्तयुक्त। प्रकाशित। चमकता हुआ। २. कांति या शोभा से युक्त। पुं० श्रीकृष्ण के एक पुत्र, जो सत्यभामा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।
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दीप्तोद  : पुं० [दीप्त-उदक, ब० स० उद आदेश] एक प्राचीन तीर्थ-क्षेत्र जिसमें बहनेवाली वसूधर नामक नदी में स्नान करके परशुराम ने अपना खोया हुआ तेज फिर से प्राप्त किया था। इसी क्षेत्र में महर्षि भृगु ने भी कठोर तपस्या की थी।
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दीप्तोपल  : पुं० [सं० दीप्त-उपल, कर्म० स०] सूर्यकांत मणि।
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दीप्य  : वि० [सं० दीप+यत्] १. जो जलाया जाने को हो। प्रज्वलित किया जानेवाला। २. जो जलाकर प्रकाश से युक्त किया जा सके। ३. जठराग्नि अर्थात् भूख बढानेवाला। पुं० १. अजवायन। २. जीरा। ३. मयूर- शिखा। ४. रुद्र-जटा।
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दीप्यक  : पुं० [सं० दीप्य+कन्] १. अजवायन। २. अजमोदा। ३. मयूरशिखा। ४. रुद्रजटा।
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दीप्यमान  : वि० [सं० दीप (चमकना)+शानच् (यक्)] चमकता हुआ। दीप्त।
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दीप्या  : स्त्री० [सं० दीप्य+टाप्] पिंड खजूर।
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दीप्र  : वि० [सं०√दीप्+र] दीप्तिमान।
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