शब्द का अर्थ
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दूध :
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पुं० [सं० दुग्ध] १. सफेद या हल्के पीले रंग का वह पौष्टिक तरल पदार्थ जो मादा स्तनपायी जीवों के स्तनों में शिशु के जन्म लेने पर उत्पन्न होता है, तथा जिसे वे नवजात शिशुओं को पिलाकर उनका पालन-पोषण करती है। मुहा०—दूध उतरना=संतान होने के समय मादा के स्तन में दूध का आर्विभाव होना। (किसी के मुँह से) दूद की बू आना=अवस्था या वय के विचार से दूध पीनेवाले बच्चों से कुछ ही बड़ा होना। अल्पवयस्क होना। दूध चढ़ना=दुहते समय गाय, भैंस आदि का अपने दूध को स्तनों में ऊपर की ओर खींच ले जाना जिससे दुहनेवाला उसको खींचकर बाहर न निकाल सके। (बच्चे का दूध) छुड़ाना=बच्चे को दूध पीने की प्रवृत्ति इस प्रकार धीरे-धीरे कम करना कि वह माता का दूध पीना छोड़ दे। (बच्चे का) दूध टूटना=स्तनों से निकलनेवाले दूध की मात्रा कम होना। दूध डालना=बच्चे का दूध पीते ही उसे उगलकर बाहर निकाल देना। जैसे—दो तीन दिन से यह बच्चा दूध डाल रहा है। (मादा का) दूध दुहना=स्तनों को बार बार दबाते हुए उनमें से दूध बाहर निकालना। दूध बढ़ाना=दे० ‘दूध छुड़ाना’। (देखें ऊपर) पद—दूध का बच्चा=वह छोटा बच्चा जो केवल दूध पीकर रहता हो। दूध के दाँत=छोटे बच्चे के वे दाँत जो पहले-पहल दूध पीने की अवस्था में निकलते हैं और छः सात वर्ष की अवस्था में जिनके गिरजाने पर दूसरे नये दाँत निकलते हैं। दूध-पीता बच्चा=गोद में रहनेवाला वह छोटा बच्चा जिसका आहार कभी केवल दूध हो। दूधों नहाओं, पूतों फलो=धन-संपत्ति और संतान की ओर से खूब सुखी रहो। (आशीष) २. गाय, बकरी, भैंस आदि के थनों को दूहकर निकाला जानेवाला उक्त तरल पदार्थ। मुहा०—दूध उछालना=खौलते हुए दूध को ठंढा करने के लिए कहाड़ी आदि में से निकालकर बार-बार ऊपर से नीचे गिराना। (किसी को) दूध की मक्खी की तरह निकालना या निकाल देना=किसी मनुष्य को परम अनावश्यक और तुच्छ अथवा हानिकारक समझकर अपने साथ या किसी कार्य से बिलकुल अलग कर देना। दूध तोड़ना=गरम दूध खूब हिलाकर ठंढ़ा करना। (किसी चीज का) दूध पीना=बहुत ही सुरक्षित अवस्था में बने रहना। जैसे—आपके रूपए दूध पीते हैं, जब चाहें तब ले लें। दूध फटना=दूध में किसी प्रकार का रासायनिक विकार होने अथवा विकार उत्पन्न किये जाने पर जलीय अंश का उसके सार भाग से अलग होना। दूध फाड़ना=खटाई आदि डालकर ऐसी क्रिया करना जिससे दूध का जलीय अंश और सार भाग अलग हो जाय। पद—दूध का दूध और पानी का पानी=ऐसा ठीक और पूरा न्याय जिसमें उचित और अनुचित बातें एक दूसरे से बिलकुल अलग होकर स्पष्ट रूप से सामने आ जायँ। ठीक उसी तरह का न्याय जिस तरह पानी मिले हुए दूध में से दूध का अंश अलग और पानी का अंश अलग हो जाता है। दूध का-सा उबाल=उसी प्रकार का कोई क्षणिक आवेग, आवेश या मनोविकार जो उबलते हुए दूध के उबाल की तरह बहुत थोड़ी देर में धीमा पड़ जाता या शांत हो जाता हो। ३. कई प्रकार के पत्तो, फलों, बीजों आदि में से निकलनेवाला गाढ़ा सफेद रस। जैसे—गेहूँ, बरगद या मदार का दूध। मुहा०—(किसी चीज में) दूध आना या पड़ना=उक्त प्रकार से रस का आविर्भाव होना जो दानों, बीजों आदि के तैयार होने या पकने का सूचक होता है। ४. रासायनिक क्रिया से दूध का बना हुआ सूखा चूर्ण जो प्रायः डिब्बों में बंद किया हुआ मिलता है। |
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दूध भाई :
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पुं० [हिं० दूध+भाई] [स्त्री० दूध-बहन] ऐसे दो बालकों में से कोई एक जो किसी एक स्त्री के स्तन का दूध पीकर पलें हों फिर भी जो अलग-अलग माता-पिता से उत्पन्न हुए हों। |
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दूध-चढ़ी :
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वि० [हिं० दूध+चढ़ना] जो बहुत अधिक दूध देती हो। |
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दूध-पिलाई :
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स्त्री० [हिं० दूध+पिलाना] १. दूध पिलानेवाली दाई। २. दूसरे के बच्चे को अपने स्तन का दूध पिलाने के बदले में मिलनेवाला धन। ३. विवाह के समय की एक रसम जिसमें वर की माँ उसे (वर को) दूध पिलाने की-सी मुद्रा करती है। ४. उक्त रसम के समय माता को मिलनेवाला नेग। |
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दूध-पूत :
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पुं० [हिं० दूध+पूत=पुत्र] धन और संतत्ति। |
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दूध-फेनी :
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स्त्री० [सं० दुग्धफेनी] एक प्रकार का पौधा जो दवा के काम आता है। स्त्री० [हिं० दूध+फेनी] दूध में भिगोई या पकाई हुई फेनी। |
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दूध-बहन :
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स्त्री०=दूध-भाई का स्त्री० (दे० ‘दूध-भाई’)। |
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दूध-मलाई :
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स्त्री० [हिं०] पुरानी चाल की एक प्रकार की बूटीदार मलमल। |
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दूध-मसहरी :
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स्त्री० [हिं० दूध+मसहरी] एक तरह का रेशमी कपड़ा। |
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दूध-सार :
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पुं० [हिं० दूध+सं० सार] १. एक प्रकार का बढिया केला। २. रासायनिक क्रियाओं से बनाया हुआ दूध का सत जो सूखे चूर्ण के रूप में बाजारों में बिकता है। |
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दूध-हंडी :
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स्त्री० [हिं० दूध+हंडी] वह हाँड़ी जिसमें दूध गरमाया अथवा रखा जाता है। |
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दूधमुख :
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वि०=दुध-मुँहाँ। |
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दूधमुँहाँ :
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वि०=दुध-मुँहाँ। |
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दूधराज :
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पुं० [देश०] १. एक प्रकार की बुलबुल जो भारत, अफगानिस्तान और तुर्किस्तान में पाई जाती है। इसे शाह बुलबुल भी कहते हैं। २. बहुत बड़े फनवाला एक प्रकार का साँप। |
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दूधा :
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पुं० [हिं० दूध] १. एक प्रकार का धान जो अगहन में तैयार होता है और जिसका चावल वर्षों तक रह सकता है। २. अन्न के कच्चे दानों में से निकलनेवाला दूध की तरह का सफेद रस। |
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दूधा-भाती :
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स्त्री० [हिं० दूध+भात] विवाह के उपरांत की एक रसम जिसमें वर और कन्या एक दूसरे को दूध और भात खिलाते हैं। |
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दूधाधारी :
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वि०=दूधाहारी। |
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दूधाहारी :
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वि० [हिं० दूध+आहारी] जो केवल दूध पीकर निर्वाह करता हो, अन्न, फल आदि न खाता हो। |
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दूधिया :
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वि० [हिं० दूध+इया (प्रत्य०)] १. जिसमें दूध मिला हो अथवा जो दूध के योग से बना हो। जैसे—दूधिया भाँग, दूधिया हलुआ २. जिसमें दूध होता हो। जैसे—दूधिया सिंघाड़ा। ३. जो दूध के रूप में हो। जैसे—दूधिया निर्यास। ४. दूध के रंग का। ५. ऐसा सफेद जिसमें कुछ नीली झलक हो। (मिल्की) पुं० १. एक तरह का सोहन हलुआ जो दूध के योग से बनता है। २. एक प्रकार का सफेद रत्न। ३. एक प्रकार का सफेद तथा मुलायम पत्थर। ४. ऐसा सफ़ेद रंग जिसमें नीली झलक हो। ५. एक तरह का बढ़िया आम। स्त्री० [सं० दुग्धिका] १. दुद्धी नाम का घास। २. एक प्रकार की चरी या ज्वार। ३. खडि़या या खड़ी नामक सफेद खनिज मिट्टी। ४. एक प्रकार की चिड़िया जिसे लटोरा भी कहते हैं। |
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दूधिया-कंजई :
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पुं० [हिं०] एक प्रकार का रंग जो नीलापन लिये हुए भूरा अर्थात् कंजे के रंग से कुछ खुलता हो। वि० उक्त प्रकार के रंग का। |
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दूधिया-खाकी :
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वि० [हिं० दूधिया+खाकी] सफेद राख के से रंगवाला। पुं० उक्त प्रकार का रंग। |
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दूधिया-पत्थर :
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पुं० [हिं० दूधिया+पत्थर] १. एक प्रकार का मुलायम सफेद पत्थर जिससे कटोरियाँ, प्याले आदि बनते हैं। २. एक प्रकार का बहुत चमकीला और चिकना बड़ा पत्थर जिसकी गिनती रत्नों में होती है। |
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दूधिया-विष :
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पुं० [हिं० दूधिया+विष] कलियारी की जाति का एक विष जिसके सुन्दर पौधे काश्मीर तथा हिमालय के पश्चिमी भाग में मिलते हैं। इसे ‘तेलिया विष’ और ‘मीठा जहर’ भी कहते हैं। |
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दूधी :
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स्त्री०=दुद्धी। |
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