पंचांग/panchaang

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पंचांग  : वि० [पंचन्-अंग, ब० स०] पाँच अंगोंवाला। पुं० १. किसी चीज के पाँच अंग। २. पाँच अंगांवाली चीज या वस्तु। ३. वह पंजी या पुस्तिका जिसमें आकाशस्थ ग्रह-नक्षत्रों की दैनिक स्थिति बतलाई गई हो। ४. वह पंजी या पुस्तिका जिसमें प्रत्येक मास या वर्ष के वारों, तिथियों, नक्षत्रों, योगों और करणों का समुचित निरूपण या विवेचन होता हो। जंत्री। पत्रा। ५. प्रणाम करने का वह प्रकार, जिसमें दोनों घुटने, दोनों हाथ और मस्तक पृथ्वी पर टेककर प्रणम्य की ओर देखते हुए मुँह में प्रणाम सूचक शब्द कहा जाता है। ६. वनस्पतियों, वृक्षों आदि के पाँच अंग—जड़, छाल, पत्ती, फूल और फल। ७. तंत्र में जप, होम, तर्पण, अभिषेक और ब्राह्मण-भोजन जो पुरश्चरण के समय आवश्यक होते हैं। ८. तांत्रिक उपासना में किसी इष्टदेव का कवच, स्रोत्र, पद्धति, पटल और सहस्रनाम। ९. राजनीति-शास्त्र के अन्तर्गत सहाय, साधन, उपाय, देश, काल, भेद और विषद् प्रतीकार—ये पाँच मुख्य कार्य। १॰. पंच-कल्याण। घोड़ा। ११. कच्छप या कछुआ जो अपने चारों पैर और सिर खींचकर अन्दर छिपा लेता है।
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पंचांग-मास  : पुं० [मध्य० स०] पहली से अन्तिम तिथि या तारीख तक का वह पूरा महीना जो पंचाग में प्रत्येक महीने के अन्तर्गत दिखलाया जाता है। (केलेंडर मन्थ)
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पंचांग-वर्ष  : पुं० [मध्य० स०] किसी पंचांग में दिखाया हुआ आदि से अन्त तक कोई सम्पूर्ण या पूरा वर्ष (संवत् या सन्) (केलेंडर ईयर)
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पंचांग-शुद्धि  : स्त्री० [ष० त०] पंचांग के पाँचों अंगों (तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण) का शुद्ध निरूपण।
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पंचांगिक  : वि० [सं० पंचांग+ठन्—इक] जिसके या जिसमें पाँच अंग हों।
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पंचांगी  : वि० [सं० पंचांग] पाँच अंगोंवाला। स्त्री० [पंचांग+ङीष्] हाथी की कमर में बाँधने का रस्सा।
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पंचांगुल  : वि० [पंच-अंगुलि, ब० स०, अच्] १. (हाथ या पैर) जिसमें पाँच उँगलियाँ हों। २. जो पाँच अंगुल लम्बा हो। पुं० १. अंडी या रेंड का वृक्ष। २. तेज-पत्ता। ३. भूसा बटोरने का पाँचा नामक उपकरण।
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पंचांगुलि  : वि० [ब० स०] जिसे पाँच उँगलियाँ हों।
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