बात/baat

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बात  : स्त्री० [सं० वार्ता] १. किसी से अथवा किसी विषय में कहा जानेवाला कोई सार्थक वाक्य। कथन। वचन। वाणी। जैसे—तुम तो मुँह से बात भी नहीं निकालने देते। क्रि० प्र०—कहना।—निकालना। मुहावरा—(मुँह से) बात न निकलना=मुँह से शब्द तक न निकलना। चुप या मौन हो जाना। (मुँह से) बात छूटना=मुँह से बात या शब्द निकलना। २. किसी विशिष्ट उद्देश्य से या अपने मन का भाव प्रकट करने के लिए किया जानेवाला कथन। पद—बात कहते=उतनी थोड़ी देर में जितनी में मुँह से कोई बात निकलती है। पल भर में। चटपट। तुरन्त। बात का कच्चा या हेठा=वह जिसके कथन या बात का सहसा विश्वास न किया जा सकता हो। प्रतिज्ञा, वचन आदि का ध्यान न रखनेवाला। बात का धनी, पक्का या पूरा=वह जो अपने कथन, प्रतिज्ञा वचन आदि का पूरी तरह से पालन करता हो। बात का बतंगड़=साधारण सी बात को व्यर्थ बहुत बढ़ा-चढ़ाकर झंझट या झगड़े-बखेड़े का दिया जानेवाला रूप। बात की बात में=बहुत थोड़ी देर में। क्षणभर में। बात बात पर=(क) प्रत्येक प्रसंग पर। थोड़ा सा भी कुछ होने पर। हर काम में। (ख) दे० ‘बात बात में’। बात बात में=(क) जो कुछ कहा जाता हो प्रायः उन सब में। प्रायः हर बात में। जैसे—वह बात बात में झूठ बोलता है। (ख) बार बार। हर बार। (ग) दे० ‘बात बात पर’। बात है=कथन मात्र है। सत्य नहीं है। ठीक नहीं है। जैसे—वे निराहार रहते हैं, यह तो बात है। बातों का धनी=वह जो बातें तो बहुत-सी कह जाता हो, पर करता-धरता कुछ भी न हो। (व्यंग्य) मुहा०—(किसी की) बात उठाना=(क) किसी के आदेश, कथन आदि की अवज्ञा करना अथवा उसका पालन न करना। बात न मानना। (ख) किसी की कठोर बातें सहना। (अपनी) बात उलटना=एक बार कुछ कहकर फिर दूसरी बार कुछ और कहना। बात पलटना। (किसी की) बात उलटना=किसी की कही हुई बात के उत्तर में उसके विरुद्ध बात कहना। किसी की बात का आशालीनता या उद्दंडतापूर्वक उत्तर देना। (किसी की) बात काटना=(क) किसी के बोलते समय बीच में बोल उठना। बात में दखल देना। (ख) किसी के कथन या मत का खंडन या विरोध करना। बात खाली जाना=अनुरोध, आग्रह, प्रार्थना आदि का माना न जाना अथवा निष्फल सिद्ध होना। बात गढ़ना=झूठ बात कहना। मिथ्या प्रसंग की उद्भावना करना। बात बनाना। बात घूँटना या घूँट जाना=दे० नीचे ‘बात पी जाना।’ बात चबा जाना=(क) कुछ कहते कहते रुक जाना। (ख) एक बार कही हुई बात को छिपाने या दबाने के लिए किसी दूसरे या बदले हुए रूप में कहना। (मन में कोई) बात जमना या बैठना=अच्छी तरह समझ में आ जाना कि जो कुछ हमसे कहा गया है, वह ठीक है। बात टलना=कथन का अन्यथा सिद्ध होना। जैसे कहा गया हो, वैसा न होना। (किसी की) बात टालना=(क) पूछी हुई बात का ठीक जवाब न देकर इधर-उधर की और बात कहना। सुनी-अनसुनी करना। (ख) किसी के आदेश, कथन आदि की अवज्ञा करते हुए उसका पालन न करना। (किसी की) बात डालना=कहना न मानना। कथन का पालन न करना। जैसे—उनकी बात इस तरह टाली नहीं जा सकती। (किसी की) बात दोहराना=किसी की कही हुई बात का उलटकर जवाब देना। जैसे—बड़ों की बात दोहराते हो ! (किसी से) बात न करना=(क) घमंड के मारे किसी से बात-चीत करने को भी तैयार न होना। (ख) किसी को इतना तुच्छ या हीन समझना कि उससे बातें करने में भी अपना अपमान प्रतीत होता हो। (किसी की) बात नीचे डालना किसी बात पर ध्यान न देकर उसकी अवज्ञा करना। (किसी की) बात पकड़ना=किसी के कथन में पारस्परिक विरोध या दोष दिखना। किसी के कथन को उसी के कथन द्वारा अयुक्त सिद्ध करना। (किसी की) बात या (बातों) पर जाना=(क) बात का खयाल करना। बात पर ध्यान देना। जैसे—तुम भी लड़कों की बात पर जाते हो। (ख) किसी के कहने के अनुसार या भरोसे पर कोई काम करना। बात पलटना=दे० नीचे ‘बात बदलना’। बात पी जाना=(क) कोई अनुचित या अप्रिय घटना होने पर भी या इस प्रकार की कोई बात सुनकर भी उस पर ध्यान न देना। (ख) किसी कारण-वश कोई सुनी हुई बात अपने मन में ही रखना, दूसरों पर प्रकट न करना। (किसी पर) बात फेंकना=व्यंग्यपूर्ण बात कहना। बोली बोलना। बात फेरना=(क) चलते हुए प्रसंग को बीच में उड़ाकर कोई और बात छेड़ना। बात पलटना। (ख) किसी बात का समर्थन करते हुए उसकी प्रामाणिकता या महत्त्व बढ़ाना। बात बढ़ाना=साधारण सी बात का ऐसा रूप धारण करना कि झगड़ा-तकरार होने लगे। किसी बात का उग्र या विकट रूप धारण करना। (किसी की) बात बढ़ाना=किसी के कथन की पुष्टि या समर्थन करना अथवा उसका महत्त्व बढ़ना। (कोई) बात बढ़ाना=किसी घटना, प्रसंग, या विषय का व्यर्थ विस्तार करके उसे अनावश्यक तथा अनुचित रूप से उग्र या विकट रूप देना। फजूल का तूल देना। बात बदलना=गड़कर एक बार कोई बात कहना, और तब उससे मुकरने के लिए और बात कहना। बात बनाना=किसी कही हुई बात से अनी हानि होते देखकर उसे बदलने और अपने अनुकूल करने के लिए कोई नई बात कहना। बात (या बातें) मारना=(क) असल बात छिपाने के लिए इधर-उधर की बातें करना। (किसी पर) बात मारना=व्यंग्यपूर्ण बात कहना। बोली बोलना। बात मुँह पर लाना=चार आदमियों के सामने कोई बात कहना। बात में बात निकालना=बाल की खाल निकालना। किसी के कथन में यों ही व्यर्थ के दोष निकालना। (अपनी) बात रखना=(क) अपने कहे अनुसार करना। जैसा कहा हो, वैसा करना। प्रतिज्ञा या वचन का पालन करना। (ख) अपने कथन या बात के सम्बन्ध में अनुचित आग्रह या हठ करना। (किसी की) बात रखना=(क) कथन या आदेश का पालन करना। कहना मानना। (ख) किसी का आग्रह, प्रार्थना आदि मानकर उसकी इच्छा पूरी करना। बातें छाँटना या बघारना=(क) व्यर्थ तरह तरह की बातें कहना। (ख) बढ़-बढ़कर बातें करना। डींग हाँकना। बातें बनाना=(क) झूठ-मूठ इधर-उधर की बातें कहना। (ख) बहानेबाजी या हीला-हवाली करना। (ग) किसी को अनुरक्त या प्रसन्न करने के लिए चापलूसी की बातें कहना। बातें मिलाना=(क) किसी को प्रसन्न करने के लिए उसकी हाँ में हाँ मिलाना। (ख) अपना दोष या भूल छिपाने के लिए इधर-उधर की बातें करना। (किसी की) बातें सुनना=कठोर वचन या डाँट-फटकार सुनना। जैसे—यदि तुम ठीक तरह से रहते तो आज तुम्हें इतना बातें न सुननी पड़तीं। (किसी को) बातें सुनाना=ऊँची-नीची या खरी-खोटी बातें कहना। कठोरतापूर्वक डाँटना-फटकारना। बातों में उड़ाना=(क) इधर-उधर की या व्यर्थ बातें कहकर असल बात दबाने का प्रयत्न करना। (ख) हँसी उड़ाते या तुच्छ ठहराते हुए टाल-मटोल करना। बातों में फुसलाना या बहलाना=किसी को केवल झूठा आश्वासन देकर उसका ध्यान किसी दूसरी ओर ले जाना। ३. दो या अधिक आदमियों में किसी विषय पर होनेवाला कथोपकथन। वार्तालाप। जैसे—आज तो बातों ही में दो घंटे बीत गये। पद—बात-चीत। (देखें) बातों बातों में=बात-चीत करते हुए। कथोपकथन के प्रसंग में। जैसे—बातों ही बातों में वह बिगड़ खड़ा हुआ। ४. किसी के साथ कोई व्यवहार सम्पन्न करने अथवा कोई संबंध स्थापित या स्थिर करने के लिए चलनेवाला कथोपकथन, प्रसंग या वार्तालाप। जैसे—(क) काम-धन्धे या रोजगार की बात। (ख) ब्याह-शादी की बात। मुहा०—बात ठहरना=किसी विषय में यह स्थिर होना कि ऐसा होगा। मामला तै होना। बात डालना=प्रस्ताव के रूप में किसी के सामने कोई विषय उपस्थित करना। मामला पेश करना। जैसे—चार भले आदमियों के बीच में यह बात डालकर निपटा लो। (अपनी) बात पर आना या रहना=अपने कहे हुए वचन के अनुसार ही काम करने के लिए प्रस्तुत होना या रहना। यह आग्रह या हठ करना कि जैसा मैंने कहा, वैसा ही हो। बात लगाना=विवाह संबंध स्थिर करने के लिए कहीं कहना, सुनना या प्रस्ताव रखना। बात हारना=ऐसी स्थिति में होना कि अपनी कही हुई बात या दिये हुए वचन का पालन करना आवश्यक हो जाय। जैंसे—मैं तो उनसे बात हार चुका हूँ, अब इधर-उधर नहीं हो सकता। ५. सामान्य रूप से होनेवाली किसी विषय की चर्चा। जिक्र। क्रि० प्र०—आना।—उठना।—चलना।—छिड़ना।—पड़ना। मुहा०—बात चलाना, छेड़ना या निकालना=ऐसा प्रसंग उपस्थित करना कि किसी विषय या व्यक्ति के संबंध में कुथ बातें हों। चर्चा या जिक्र चलना। बात पड़ना=किसी विषय का प्रसंग प्राप्त होना। चर्चा आरंभ होना। जैसे—बात पड़ी, इसलिए मैंने कहा, नहीं तो मुझ से क्या मतलब ? बात मुँह पर लाना=(किसी विषय की) चर्चा कर बैठना। जैसे—किसी के सामने ऐसी बात मुँह पर नहीं लानी चाहिए। ६. कोई ऐसा कार्य या घटना जिसकी लोगों में विशेष चर्चा हो। लोक में प्रचलित कोई प्रसंग। मुहा०—बात उड़ना या फैलना=चारों ओर या बहुत से लोगों में चर्चा होना। बात नाचना=बात चारों ओर प्रसिद्ध होना या बहुत अच्छी तरह फैलना। विशेष प्रसिद्ध होना। उदा०—मेरे ख्याल परौ जनि कोऊ बात दसों दिसि नाची।—हितहरिवंश। बात बहना=किसी बात की चर्चा चारों ओर फैलना। उदा०—जो हम सुनति रहीं सो नाहीं, ऐसी ही यह बात बहानी।—सूर। ७. ऐसा कथन या कार्य जो ठीक या प्रामाणिक माना जा सकता हो अथवा सभी दृष्टियों में उचित समझा जा सकता हो। जैसे—भला यह भी कोई बात है। ८. विशेष महत्त्व का कोई कथन अथवा दृढ़, निश्चत या प्रामाणिक मत, विचार या सिद्धान्त। मुहा०—बात (किसी के) कान में पड़ना=बात का किसी के द्वारा इस प्रकार सुना जाना कि वह उसके भेद समझ जाय और उससे अनुचित लाभ उठा सके। जैसे—जहाँ यह बात किसी के कान में पड़ी, तहाँ सारा काम बिगड़ जायगा। ९. किसी विषय में किसी की कोई आज्ञा, आदेश, या उपदेश। नसीहत। सीख। जैसे—बड़ों की बात माननी चाहिए। मुहा०—(किसी की) बात आँचल या गाँठ में बाँधना=अच्छी तरह और सदा के लिए अपने ध्यान या मन में बैठाना। उपभोग या व्यवहार में लाने के लिए अच्छी तरह याद रखना। जैसे—हमारी यह नसीहत गाँठ में बाँध रखो, नहीं तो किसी समय बहुत पछताओगे। १॰. किसी काम या चीज में होनेवाला कोई विशिष्ट गुण या तत्त्व। जैसे—उसमें अगर कुछ बुरी बातें हैं तो कई अच्छी बातें भी हैं। ११. उक्ति, कथन या कार्य जिसमें कुछ विशिष्ट कौशल या चमत्कार हो, अथवा जिससे प्रभावित होकर लोग प्रशंसा करें। जैसे—(क) उनकी हर बात में एक बात होती है। (ख) वे साधारण कामों में भी एक नई बात पैदा कर देते हैं। (ग) तुम भी इन्हीं की तरह काम करके दिखलाओ, तब बात है। (घ) उसे हराना कोई बड़ी बात नहीं है। उदा०—कितक बात यह धनुष रुद्र को सकल विश्व कर लैहों।—सूर। पद—क्या बात है !=बहुत प्रशंसनीय काम या बात है। (साधारण रूप में भी और व्यंग्य के रूप में भी) जैसे—(क) क्या बात है ! बहुत सुन्दर चित्र बनाया है। (ख) आप बहुत बहादुर हैं, क्या बात है ! १२. कोई ऐसा कार्य या घटना जिससे कोई विशेष महत्त्व का प्रयोजन सिद्ध होता हो। जैसे—(क) ये सब झगड़ा छोड़ो, काम (या मतलब) की बात करो। क्रि० प्र०—करना।—कहना।—बनना।—बनाना।—बिगड़ना।—बिगाड़ना।—होना। १३. किसी के कथन, वचन, व्यवहार आदि की प्रामाणिकता। प्रतीति। साख। जैसे—(क) बाजार में उनकी बड़ी बात है। (ख) अब तुम बहुत झूठ बोलने लगे हो, इससे मित्र-मंडली में तुम्हारी बात नहीं रह गई। क्रि० प्र०—खोना।—गँवाना।—बनना।—बनाना। मुहा०—(किसी की) बात जाना=बात की प्रामाणिकता नष्ट हो जाना। एतबार या विश्वास न रह जाना। बात हेठी होना=बात की प्रामाणिकता या साख न रह जाना। विश्वास उठ जाने के कारण प्रतिष्ठा या मान में बहुत कमी होना। १४. किसी के गुण, महत्त्व आदि के विचार से उसके प्रति मन में उत्पन्न होनेवाला आदर-भाव। मुहा०—बात न पूछना=अवज्ञा के कारण ध्यान न देना। तुच्छ समझकर बात तक न करना। कुछ भी कदर न करना। जैसे—तुम्हारी यही चाल रही तो मारे-मारे फिरोगे, कोई बात न पूछेगा। उदा०—सिर हेठ ऊपर चरन संकट, बात नहिं पूछै कोऊ।—तुलसी। बात न पूछना=दशा पर ध्यान न देना। खयाल न करना। परवाह न करना। उदा०—मीन वियोग न सहि सकै नीर न पूछै बात।—सूर। बात पूछना=(क) खोज रखना। खबर लेना। सुख या दुःख है, इसका ध्यान रखना। (ख) आदर या कदर करना। १५. लोक या समाज में होनेवाली प्रतिष्ठा या मान-मर्यादा। धाक। जैसे—बिरादरी (या शहर) में उनकी बड़ी बात है। क्रि० प्र०—खोना।—गँवाना।—जाना।—बनना।—बनाना।—बिगड़ना।—बिगाड़ना।—रखना।—रहना। १६. मन में छिपा हुआ अभिप्राय या आशय। मन का गूढ़ भाव या विचार। जैसे—तुम्हारे मन की बात कोई कैसे जाने। मुहा०—(मन में कोई) बात खौलना=किसी अभिप्राय या उद्देश्य के सिद्ध न हो सकने पर मन ही मन उसके सम्बन्ध में उद्वेग बना रहना। (मन में कोई) बात रखना=अपना अभिप्राय या उद्देश्य किसी पर प्रकट न होने देना। १७. कोई गुप्त या रहस्यमय तत्त्व या तथ्य। भेद या मर्म का प्रसंग या विषय। जैसे—(क) उसका आना मतलब से खाली नहीं है, जरूर इसमें कोई बात है। (ख) उसने मुझे ऐसी बात बतलाई कि मेरी आँखें खुल गईं। मुहा०—बात खुलना या फूटना=भेद, मर्म या रहस्य प्रकट होना। बात (या बात की तह) तक पहुँचना=दे० नीचे ‘बात पाना’। बात पाना=असल मतलब या गूढ़ तत्त्व समझ जाना। १८. कोई ऐसा अनुचित कथन या कार्य जिससे किसी पर कोई दोष या लांछन लगता या लग सकता हो। मुहा०—(किसी पर) बात आना=ऐसी स्थिति होना कि किसी पर कोई दोष या लांछन लग सकता हो। (किसी पर कोई) बात रखना, लगाना या लाना=किसी को दोषी सिद्ध करने का प्रयत्न करना। कलंक या दोष की बात किसी के सिर पर मढ़ना। १९. कोई ऐसा कथन या बात जो किसी को धोखा देकर अपना कोई दुष्ट उद्देश्य सिद्ध करने के लिए की जाय। जैसे—उनकी बातों में मत आना, नहीं तो पछताओगे। मुहा०—बातें बनाना=किसी को कौशलपूर्वक अपने अनुकूल करने के लिए तरह-तरह की झूठी या बनावटी बातें कहना। (किसी की) बात (या बातों) पर जाना=(किसी की) बात (या बातें में आना। (किसी की) बात या बातों में आना=किसी की बातों पर विश्वास करके उनके अनुसार आचरण या व्यवहार करना। बात लगाना=किसी को हानि पहुँचाने के उद्देश्य से किसी दूसरे से उसकी कोई बात कहना। बातों में लगाना=किसी का ध्यान बाँटने या उसे किसी ओर प्रवृत्त होने से रोकने के लिए छलपूर्वक उससे इधर-उधर की बातें छेड़ना। जैसे—इधर तो उसने मुझे बातों में लगा रखा, और उधर अपना आदमी भेजकर अपना काम करा लिया। २॰. ऐसा झूठा या बनावटी कथन जो किसी को धोखा देने के लिए हो या जिसमें कोई बहानेबाजी हो। जैसे—यह सब उसकी बात (या बातें) हैं। २१. अपनी हैसियत, योग्यता, गुण, सामर्थ्य, आदि के संबंध में बढ़ा-चढ़ाकर किया जानेवाला उल्लेख। जैसे—अब तो वह बहुत लंबी-चौड़ी बातें करता है। पुं०=बात।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बात-चीत  : स्त्री० [हिं० बात+सं० चिंतन ?] १. दो या अधिक व्यक्तियों पक्षों आदि में परस्पर होनेवाली औपचारिक तथा मौखिक बातें। वार्तालाप। २. लेन-देन समझौता संधि आदि करने के उद्देश्य से होनेवाली मौखिक बातें या लिखा-पढ़ी। जैसे—ठेके की बात-चीत चल रही है।
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बात-फरोश  : पुं० [हिं० बात+फा० फ़रोश] [भाव० बात फरोशी] वह जो केवल उटपटाँग या व्यर्थ की बातें गढ़-गढ़कर सुनाता और उन्हीं के भरोसे अपने सब काम चलाता हो।
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बात-बनाऊ  : वि० [हिं० बात+बनाना] १. झूठ-मूठ व्यर्थ की बातें बनानेवाला। २. दूसरों का काम पूरा करनेवाला।
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बातड़  : वि० [सं० वातुल] १. वायु-युक्त। वायुवला। २. बात का प्रकोप उत्पन्न करनेवाला।
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बातप  : पुं० [सं० वाताप] हिरन (अनेकार्थ०)
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बातर  : पुं० [देश०] पंजाब में दान बोने का एक प्रकार।
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बातला  : पुं० [सं० बात०] एक प्रकार का योनि रोग जिसमें सूई चुभाने की सी पीड़ा होती है।
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बाताबी  : पुं० [बटेविया देश०] चकोतरा।
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बातासा  : पुं० [ष० त०] हवा। वायु। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बातिन  : पुं० [अ०] [वि० बातिनी] १. किसी चीज का भीतरी भाग। २. अन्तःकरण।
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बातिनी  : वि० [अ०] १. भीतरी। २. अन्तःकरण का।
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बातिल  : वि० [अ०] १. जो सत्य न हो। झूठ। मिथ्या। २. निकम्मा। रद्दी। व्यर्थ। ३. नियम-विरुद्ध।
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बाती  : स्त्री० [सं० वर्ती] १. वह लकड़ी जो पान के खेत के ऊपर बिछाकर छप्पर छाते हैं। २. दे० ‘बत्ती’। स्त्री०=बात। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बातुल  : वि० [सं० वातुल] पागल। सनकी। वि० [हिं० बात] १. बहुत बातें करनेवाला। बकवादी। २. बहुत बातें बनानेवाला। बातूनी।
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बातूनिया  : वि०=बातूनी।
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बातूनी  : वि० [हिं० बात+ऊनी (प्रत्यय)] १. जिसे बातें करने का चस्का हो। २. बहुत बढ़-चढ़कर और व्यर्थ की बातें करनेवाला।
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