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			| शब्द का अर्थ |  
				| भाव-वाच्य					 : | पुं० [सं० तृ० त०] व्याकरण में वह तत्त्व जो अकर्मक क्रिया पद की उस स्थिति का सूचक होता है जब वह कर्ता का व्यापार सूचित न कर के क्रिया के व्यापार का ही बोध कराता है। उक्त अवस्था में क्रिया पद के साथ कर्ता प्रथमा विभक्ति से युक्त न हो कर तृतीया विभक्ति से युक्त होता है। जैसे—अब हाथ से कलम उठने लगी है। |  
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं |  |