शब्द का अर्थ
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मध :
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पुं० [सं०√मंध् (गति)+अच्, पृषो० सिद्धि] १. एक प्राचीन द्वीप का नाम। २. एक प्राचीन देश। ३. आनंद। ४. दे० ‘मधा’। ५. धन। ६. पुरस्कार। ७. एक पौधा और उसका फूल। |
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समानार्थी शब्द-
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मध :
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पुं० १.=मध्य। २.=मद्य। ३. मधु। अव्य० [सं० मध्य] में।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मधई :
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वि० [सं० मद्य+हिं० ई (प्रत्य०)] शराब पीनेवाला। शराबी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मधथ :
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पुं०=मध्यस्थ। उदा०—दुहु दिश मधथ दिवाकर भले।—विद्यापति। |
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मधप-तृण :
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पुं० [कर्म० स०] ईख। |
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मधपायी (यिन्) :
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पुं० [सं० मधु√पा (पीना)+णिनि, युक्] भौंरा। वि० मधु पीनेवाला। |
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मधवा (वन्) :
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पुं० [सं० मह् (पूज्य)+क्वनिन्, ह—घ] १. इंद्र। २. सातवें द्वापर के व्यास। ३. उल्लू। |
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मधवाजित् :
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पुं० [सं० मधवजित्] इन्द्र। (डिं०) |
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मधवाप्रस्थ :
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पुं० [सं० मधवप्रस्थ] इन्द्रप्रस्थ (नगर)। |
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मधवारिपु :
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पुं० [सं० मधवरिपु] इन्द्र का शत्रु। मेघनाद। |
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मधव्य :
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पुं० [सं० मधु+यत्] वैशाख मास। |
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मधा :
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स्त्री० [सं०√मह्+घ+टाप्] १. २७ नक्षत्रों में से दसवाँ नक्षत्र जो पाँच तारों का है। (हिं० में यह प्रायः पुल्लिंग की तरह प्रयुक्त होता है) २. छोटा पीपल। |
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मधा-त्रयोदशी :
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स्त्री० [मध्य० स०] भाद्र कृष्ण त्रयोदशी। |
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मधाना :
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पुं० [देश०] एक प्रकार की बरसाती घास। मकड़ा। (देखें।) |
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मधाना :
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पुं० [देश०] एक प्रकार की घास। मकड़ा। |
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मधाभव :
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पुं० [सं० मधा√भू (होना)+अच्] शुक्र (ग्रह)। |
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मधारना :
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स० [हिं० माघ+आरना (प्रत्य०)] आगामी वर्षा ऋतु में धान बोने के लिए माघ के महीने में हल चलाना। |
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मधि :
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स्त्री० [सं० मध्य०] १. मध्य में होने की अवस्था या भाव। २. सुख-दुःख, स्वर्ग-नरक आदि को समान भाव से देखने की अवस्था, क्रिया या भाव। अव्य० मध्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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मधिम :
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वि० १.=मद्धिम। २.=मध्यम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मधियाती :
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वि० [सं० मध्यवर्ती] बीच में रहने या होनेवाला। बीच का। उदा०—जेते मधियाती सब तिन सौं मिलाय छूट्यौ—सेनापति। |
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मधु :
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पुं० [सं०√मन् (जानना)+नु, धु—आदेश] १. शहद। २. जल। पानी। ३. मदिरा। ४. फूलों का रस। मकरंद। ५. वसंत ऋतु। ६. चैत का महीना। ७. दूध। ८. मिसरी। ९. मक्खन। १॰. घी। ११. अशोक वृक्ष। १२. महुआ। १३. मुलेठी। १४. अमृत। १५. शिव का एक नाम। १६. एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में दो लघु अक्षर होते हैं। १७. संगीत में एक राग जो भैरव राग का पुत्र माना जाता है। १८. एक दैत्य जिसे विष्णु ने मारा था और जिसके कारण उनका नाम ‘मधुसूदन’ पड़ा था। वि० १. मीठा। २. मधुर। ३. स्वादिष्ट। स्त्री० जीवंती का पेड़। |
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मधु-ऋतु :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] वसंत ऋतु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मधु-कंठ :
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वि० [ब० स०] जिसके गले में मिठास हो। पुं० कोकिल। कोयल। |
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मधु-कर :
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पुं० [ष० त०] १. भौंरा। २. कामुक व्यक्ति। ३. भँगरा। |
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मधु-कर्कटिका :
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स्त्री० [उपमि० स०] १. बिजौरा नींबू। २. |
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मधु-कर्कटी :
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स्त्री० [उपमि० स०] १. बिजौरा नीबू २ खजूर का फल। |
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मधु-कुल्या :
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स्त्री० [ष० त०] कुश द्वीप की एक नदी। पुराण। |
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मधु-कृत :
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पुं० [सं० मधु√कृ+क्विप्, तुक्] १. भौंरा। २. मधुमक्खी। |
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मधु-कैटभ :
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पुं० [द्वं० स०] मधु और कैटभ नामक दो दैत्य जो विष्णु के कान की मैल से उत्पन्न हुए माने गये हैं। (पुराण) |
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मधु-कोष :
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पुं० [ष० त०] शहद की मक्खी का छत्ता। मधु-चक्र। |
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मधु-क्षीर :
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पुं० [ब० स०] खजूर का पेड़। |
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मधु-गंध :
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पुं० [ब० स०] १. अर्जुन (वृक्ष)। २. मौलसिरी। |
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मधु-गायन :
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पुं० [ब० स०] कोयल। |
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मधु-गुंजन :
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पुं० [ब० स०] सहिंजन का वृक्ष। |
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मधु-घोष :
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पुं० [ब० स०] कोकिल। कोयल। |
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मधु-चक्र :
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पुं० [ष० त०] शहद की मक्खियों का छत्ता। |
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मधु-चंद्र :
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पुं० [सं० मधु-चन्द्र] नव-विवाहित वर और वधू का वह समय जो वे सब काम-धन्दों से छुट्टी लेकर और किसी रमणीक स्थान में प्रायः घर के लोगों से अलग रहकर आनन्द-भोग में बिताते हैं (हनीमून)। विशेष—यह शब्द अँग्रेजी के ‘हनीमून’ का तदर्थीय है, जिसका मूल अर्थ था—विवाह के बाद का पहला महीना, परन्तु जो आजकल इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है और जो ऊपर ‘मधु-चंद्र’ का बतलाया गया है। |
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मधु-जीवन :
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पुं० [ब० स०] बहेड़ा (वृक्ष)। |
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मधु-त्रय :
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पुं० [ष० त०] शहद, घी और चीनी का समाहार। |
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मधु-दीप :
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पुं० [सं० मधु√दीप् (चमकना)+क] कामदेव। |
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मधु-दूत :
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पुं० [ष० त०] आम का पेड़। |
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मधु-दूती :
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पुं० [ष० त०] पाटला। |
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मधु-द्रव :
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पुं० [ब० स०] लाल सहिंजन का वृक्ष। |
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मधु-द्रुम :
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पुं० [मध्य० स०] १. महुए का पेड़। २. आम का पेड़। |
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मधु-धूलि :
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स्त्री० [ष० त०] खाँड़। शक्कर। |
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मधु-धेनु :
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स्त्री० [मध्य० स०] दान के लिए कल्पित शहद की गाय। |
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मधु-पटल :
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पुं० [ष० त०] शहद की मक्खियों का छत्ता। |
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मधु-पति :
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पुं० [ष० त०] श्रीकृष्ण। |
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मधु-पर्क :
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पुं० [ब० स०] १. दही, घी, जल, शहद और चीनी का समाहार जिसका भोग देवता को लगाया जाता है। २. तंत्र के अनुसार घी, दही और मधु का समूह जिसका उपयोग तांत्रिक पूजन में होता है। |
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मधु-पर्क्य :
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वि० [सं० मधुपर्क+य] जिसके सामने मधुपर्क रखा जा सके। मधुपर्क का अधिकारी या पात्र। |
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मधु-पर्णी :
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स्त्री० [ब० स०,+ङीष्] १. गुरुच। २. गंभारी नाम का पेड़। ३. नीली नाम का पौधा। |
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मधु-पीलु :
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पुं० [कर्म० स०] अखरोट (वृक्ष)। |
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मधु-पुर :
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पुं० [ष० त०] मथुरा (नगरी)। |
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मधु-पुष्प :
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पुं० [ब० स०] १. महुआ। २. अशोकवृक्ष। ३. सिरिस नामक वृक्ष। ४. मौलसिरी। |
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मधु-पुष्पा :
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स्त्री० [सं० मधुपुष्प+टाप्] १. नागदंती। २. धौ का पेड़। |
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मधु-प्रमेह :
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पुं०=मधु-मेह। |
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मधु-प्रिय :
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पुं० [ब० स०] १. बलराम। २. भुँइ जामुन। |
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मधु-फल :
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पुं० [ब० स०] मीठा नारियल। |
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मधु-बहुल :
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पुं० [ब० स०] १. वासंती लता। २. सफेद जूही। |
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मधु-बीज :
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पुं० [ब० स०] अनार। |
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मधु-मक्खी :
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स्त्री० [सं० मधुमक्षिका] मक्खी की तरह का एक छोटा पतिंगा जो फूलों पर मँडराता और उनका रस चूसता है। यह समूहो में तथा छत्ता बनाकर रहता है और उसमें शहद एकत्र करता है। यह प्राणियों को डंक भी मारता है। |
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मधु-मक्षिका :
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स्त्री० [मध्य० स०] मधुमक्खी। |
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मधु-मज्जन :
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पुं० [ब० स०] अखरोट (वृक्ष)। |
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मधु-मल्ली :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] मालती। |
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मधु-मस्तक :
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पुं० [सं० स०] प्राचीन काल का एक तरह का मैदे का पकवान जो मधु में डुबोकर खाया जाता था। |
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मधु-माधव :
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पुं० [द्व० स०] १. मालश्री, कल्याण और मल्लार के मेल से बना हुआ एक शंकर राग। २. बसंत के दो मास—चैत्र और बैसाख। |
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मधु-माधवी :
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स्त्री० [मध्य० स०] १. संगीत में, एक रागिनी जो भैरव राग की सहचरी मानी जाती है। २. वासंती लता। ३. एक प्रकार की पुरानी शराब। |
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मधु-माध्वीक :
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पुं० [मध्य० स०] शराब। |
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मधु-मारक :
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पुं० [ष० त०] भौंरा। |
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मधु-यष्टि :
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स्त्री० [कर्म० स०] १. जेठी मधु। मुलेठी। २. ईख। ऊख। |
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मधु-यष्टिका :
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स्त्री० [सं० मधुयष्टि+ङीष्] मुलेठी। |
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मधु-यष्टी :
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स्त्री० [सं० मधुयष्टि+ङीष्] मुलेठी। |
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मधु-रस :
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पुं० [ब,० स०] ईख। |
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मधु-रसिक :
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पुं० [ष० त०] भौंरा। |
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मधु-रिपु :
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पुं० [ष० त०] मधुराक्षस के शत्रु, विष्णु। |
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मधु-रीछ :
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पुं० [हिं० मधु-रीछ] दक्षिणी अमेरिका का रीछ की तरह का एक जंगली जंतु जो ऊँचाई में कुत्ते के बराबर होता है। यह प्रायः वृक्षों पर चढ़कर मधुमक्खियों के छत्ते का रस चूसता है, इसी से इसका यह नाम पड़ा है। |
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मधु-लोलुप :
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पुं० [सं० स० त०] भौंरा। |
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मधु-वन :
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स्त्री० [सं० ब० स०, ङीष्] १. मथुरा के पास युमना के किनारे का एक वन जहाँ सत्रुघ्न ने लवण नामक दैत्य को मारकर मधुपुरी स्थापित की थी। २. ब्रज में यमुना तट पर स्थित एक वन। २. किष्किन्धा में स्थित एक वन। ४. वह वन जहाँ प्रेमी और प्रेमिका मिलते हों। ५. कोयल। |
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मधु-वल्ली :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] १. मुलेठी। २. करेला। |
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मधु-वार :
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पुं० [ष० त०] १. मद्य या शराब पीने का दिन। २. बार-बार शराब पीने का क्रम। शराब का दौर। ३. मद्य। शराब। |
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मधु-वाही (हिन्) :
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पुं० [सं० मधु√वह (ढोना)+णिनि, उप, स०] महाभारत के अनुसार एक प्राचीन नद। |
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मधु-व्रत :
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पुं०[ब० स०] भौंरा। |
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मधु-शर्करा :
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स्त्री० [मध्य० स०] १. शहद से बनाई हुई शक्कर। २. सेम। लोबिया। |
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समानार्थी शब्द-
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मधु-शाक :
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पुं० [ब० स०] महुए का वृक्ष। |
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मधु-शिग्नु :
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पुं० [मध्य० स०] सोभांजन। सहिजन। |
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मधु-शिष्ट :
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पुं० [ष० त०] मोम। |
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मधु-शेष :
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पुं० [ब० स०] मोम। |
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मधु-श्रावणी :
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स्त्री० [सं०] १. मिथिला का एक पर्व जो सावन शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। इसमें नव विवाहिता वधू को जलती बत्ती से दागते हैं। यदि फफोले अच्छे पड़ें तो समझा जाता है कि इसका सुहाग बहुत दिनों तक बना रहेगा। |
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मधु-सख :
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पुं० [ब० स०] कामदेव। |
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मधु-संभव :
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पुं० [ब० स०] १. मोम। २. दाख। |
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मधु-सहाय :
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पुं० [ब० स०] कामदेव। |
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मधु-सारथि :
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पुं० [ब० स०] कामदेव। |
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मधु-सिक्थक :
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पुं० [ब० स०+कप्] १. एक प्रकार का विष। २. मोम। |
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मधु-सुहृद :
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पुं० [ष० त०] कामदेव। |
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मधु-स्थान :
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पुं० [ष० त०] मधुमक्खियों का छत्ता। |
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मधु-स्रव :
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पुं० [ब० स०] १. महुए का वृक्ष। २. पिंडखजूर का पेड़। |
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मधु-स्रवा :
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स्त्री० [सं० मधुस्रव+टाप्] १. संजीवनी बूंटी। २. मुलेठी। ३. मूर्वा लता। ४. हंसपदी लता। |
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मधु-स्राव :
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पुं० [ब० स०] महुए का वृक्ष। |
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मधु-स्वर :
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पुं० [ब० स०] कोयल। |
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मधु-हंता (तृ) :
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पुं० [ष० त०] मधुसूदन (दे०)। |
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मधुआ :
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पुं० [?] आम के बौर में होनेवाला एक प्रकार का रोग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मधुक :
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पुं० [सं० मधु+कन् वा मधु√कै+क] १. महुए का पेड़। २. महुए का फल। ३. मुलेठी। |
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मधुकरी :
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स्त्री० [सं० मधुकर+ङीष्] १. मधुकर की मादा। भौरी। २. साधु-संन्यासियों की वह भिक्षा जो केवल पके हुए अन्न (चावल-दाल, रोटी आदि) के रूप में होती है। क्रि० प्र०—माँगना। ३. संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। ४. आटे के पेड़ की पकाई हुई रोटी। बाटी। भौंरिया। लिट्टी। |
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मधुकरी (रिन्) :
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पुं० [सं०√कृ+णिनि, उप० स०] मधुमक्खी। पुं० [हि० मधुकरी] वह संन्यासी जो मधुकरी माँगता या ग्रहण करता हो। |
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मधुका :
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स्त्री० [सं० मधु+कन्+टाप्] १. मुलेठी। २. मधुर। शहद। ३. कृष्णपणीं लता। |
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समानार्थी शब्द-
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मधुकार :
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पुं० [सं० मधु√कृ (करना)+अण्] १. मधुमक्खी। २. मधुपर्णी। |
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समानार्थी शब्द-
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मधुच्छिष्ट :
|
पुं० [मधु-उच्छिष्ट, ष० त०] मोम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुज :
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वि० [सं० मधु√जन् (उत्पत्ति)+ड] मधु से उत्पन्न। पुं० मोम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुजा :
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स्त्री० [सं० मधुज+टाप्] १. मिश्री। २. पृथ्वी। |
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समानार्थी शब्द-
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मधुजित् :
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पुं० [सं० मधु√जि (जीतना)+क्विप्, तुक्] विष्णु। |
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समानार्थी शब्द-
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मधुत्व :
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पुं० [सं० मधु+त्व] मधु का भाव। शहद की मिठास। |
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समानार्थी शब्द-
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मधुद्र :
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पुं० [सं० मधु√द्रा (जाना)+क] भौंरा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुप :
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पुं० [सं० मधु√पा (पीना)+क] १. भौंरा। २. शहद की मक्खी ३. उद्धव का एक नाम। वि० मधु पीनेवाला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुफलिका :
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स्त्री० [सं० मधुफल+कन्+टाप्, इत्व] मीठी खजूर। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुबन :
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पुं० [सं० मधुवन] १. ब्रजभूमि का एक बन। २. सुग्रीव के उपवन का नाम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुभाजन :
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पुं० [ष० त०] मध्य या शराब पीने का प्याला। चषक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुभार :
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पुं० [सं०] एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं और अंत में जगण होता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुमती :
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स्त्री० [सं० मधु+मतुप्+ङीष्] १. योग साधन में, समाधि की वह अवस्था जो रज और तम के नष्ट होने तथा सत् का पूर्ण प्रकाश होने पर प्राप्त होती है। २. एक प्रकार का वर्ण-वृत्त जिसका प्रत्येक चरण दो नगण और एक गुरु होता है। ३. मधु दैत्य की कन्या और इक्ष्वाकु के पुत्र हर्यश्व की पत्नी का नाम। ४. तांत्रिकों के अनुसार एक प्रकार की नायिका जिसका उपासना और सिद्धि से मनुष्य जहाँ चाहे आ-जा सकता है। ५. एक प्राचीन नदी जो नर्मदा की शाखा थी। ६. गंगा नदी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुमथन :
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पुं० [सं० मधु√मथ्+ल्यु—अन] मधु नामक दैत्य को मारनेवाले, विष्णु। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुमाखी :
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स्त्री०=मधु-मक्खी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुमात :
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पुं० [सं०] संगीत में एक राग जो भैरव राग का सहचर माना जाता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुमात सारंग :
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पुं० [सं०] संगीत में मधुमात और सारंग के योग से बना हुआ एक संकर राग जिसके गाने का समय दिन में १७ दंड से २0 दंड तक माना जाता है। |
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समानार्थी शब्द-
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मधुमाधव सारंग :
|
पुं० [सं० मध्यम० स०] १. मधुमाधव और सारंग के योग से बना हुआ ओड़व जाति का एक संकर राज जिसमें धैवत और गांधार वर्जित है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुमान (मत्) :
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वि० [सं० मधुमत्] [स्त्री० मधुमती] १. जिसमें मधु या शहद वर्तमान हो अथवा मिलाया हुआ हो। २. मधुर। मीठा। ३. मन को प्रसन्न, संतुष्ट या सुखी करनेवाला। प्रिय और सुखद। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुमालती :
|
स्त्री० [मध्य० स०] मालती (लता)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुमासी :
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स्त्री०=मधुमक्खी। उदा०—कुल कुटुंबी आन बैठे मनहु मधुमासी।—मीराँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुमूल :
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पुं० [कर्म० स०] रतालु नामक कंद। |
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समानार्थी शब्द-
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मधुमेह :
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पुं० [ब० स०] एक प्रसिद्ध राग जो अगन्याशय में मधुसूदनी (देखें) के कम बनने के कारण होता है और जिसमें मूत्र अधिक शर्करा युक्त होकर प्रायः धीरे-धीरे और अधिक मात्रा में या अधिक देर तक होता है (डायबटीज)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधुमेही (हिन्) :
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पुं० [सं० मधुमेह+इनि] वह जिसे मधुमेह रोग हो। |
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मधुर :
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वि० [सं० मधु√रा (देना)+क] [स्त्री० मधुरा] १. जिसका स्वाद मधु के समान हो। मीठा। २. जो सब प्रकार की कटुताओं से रहित, और मधु के समान मीठा जान पड़े। जैसे—मधुर वचन। ३. जो कठोरता, कर्कशता आदि से रहित होने के कारण बहुत भला जान पड़ता हो। जैसे—वीणा का मधुर स्वर। उदा०—मधुर मधुर गरजत घन घोरा।—तुलसी। ४. जो अपनी मनोहरता, सुन्दरता आदि के कारण प्रिय और भला लगता हो। जैसे—मधुर मूर्ति। ५. जो गति या चाल के विचार से धीमा या मन्द हो। जैसे—मधुर-गति। ६. धीर और शांत। ७. जो काम करने में बहुत मट्ठर या सुस्त हो। जैसे—मधुर पशु। पुं० १. किसी मीठी चीज का या किसी प्रकार का मीठा रस। २. लाल रंग की ईख। लाल ऊख। ३. गुड़। ४. बादाम। ५. जीवक। वृक्ष। ६. जंगली बेर। ७. महुआ। ८. मटर। ९. धान। १॰. काकोली। ११. लोहा। १२. जहर। विष। |
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मधुर ज्वर :
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पुं० [कर्म० स०] मंद-ज्वर। |
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मधुर-कंटक :
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पुं० [ब० स०] एक प्रकार की मछली जिसे कजली कहते हैं। |
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मधुर-कर्कटी :
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स्त्री० [कर्म० स०] मीठा नीबू। |
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मधुर-जंबीर :
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पुं० [कर्म० स०] मीठी जंबीरी नींबू। |
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मधुर-त्रय :
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पुं० [ष० त०] शहद, घी और चीनी, तीनों का समाहार। |
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मधुर-त्रिफला :
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स्त्री० [कर्म० स०] दाख (या किशमिश), गंभारी और खजूर इन तीनों का समाहार। |
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मधुर-त्वच् :
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पुं० [ब० स०] धौ का पेड़। |
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मधुर-फला :
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स्त्री० [सं० मधुरफल+टाप्] मीठा नींबू। |
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मधुर-श्रवा :
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स्त्री० [ब० स०, टाप्] पिंडखजूर। |
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मधुर-स्वर :
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पुं० [ब० स०] गंधर्व। |
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मधुरई :
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स्त्री०=मधुरता (माधुर्य)। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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मधुरक :
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पुं० [सं० मधुर+कन्] जीवक वृक्ष। |
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मधुरता :
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स्त्री० [सं० मधुर+तल्+टाप्] मधुर होने की अवस्था, गुण या भाव। माधुर्य। |
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मधुरत्व :
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पुं० [सं० मधुर+त्व] मधुरता। |
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मधुरसा :
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स्त्री० [सं० मधुरस+टाप्] १. मूर्वालता। २. दाख। ३. गंभारी। ४. दूधिया घास। ५. शतपुष्पी। ६. गंधप्रसारिणी लता। |
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मधुरा :
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स्त्री० [सं० मधुर+टाप्] १. मथुरा नगरी। २. मदरास प्रांत का एक प्राचीन नगर जो अब मदुरा कहलाता है। २. मीस्र नींबू। ३. मुलेठी। ४. मीठी खजूर। ५. शतावर। ६. महामेदा। ७. मेदा। ८. शतपुष्पी। ९. पालक का साग। १॰. सेम। ११. काकोली। १२. केले का पेड़। १३. सौंफ। १४. मसूर। |
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मधुरा :
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वि० [सं० मधुर] [स्त्री० मधुरी] मधुर। उदा०—लंबा टीका मधुरी बानी। दगाबाज की यही निशानी (कहा०)। स्त्री० साहित्य में वह शब्द-योजना जिससे रचना में माधुर्य या मिठास आती है। स्त्री० १.=मदुरा। २. मथुरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मधुराई :
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स्त्री०=मधुरता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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मधुराकर :
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पुं० [मधुर-आकर, ष० त०] ईख। ऊख। |
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मधुराज :
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पुं० [सं० ष० त०] भौंरा। |
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मधुराना :
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अ० [सं० मधुर+हिं० आना (प्रत्य०)] १. मधुर होना। २. फलों तथा खाद्य वस्तुओं के संबंध में, मिठास से युक्त होना मीठा होना। स० मधुर बनाना। |
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मधुरान्न :
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पुं० [मधुर-अन्न, कर्म० स०] १. मीठा अन्न। २. मिठाई मिष्ठान्न। |
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मधुराम्लक :
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पुं० [मधुर-अम्लक, कर्म० स०] अमड़ा। |
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मधुरालापा :
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स्त्री० [मधुर-आलाप, ब० स०+टाप्] मैना पक्षी। |
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मधुरिका :
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स्त्री० [सं० मधुर+कन्+टाप्, इत्व] सौंफ। |
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मधुरित :
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भू० क० [सं० मधुर+इतच्] १. मिठास से युक्त किया हुआ २. मधुर रूप में लाया हुआ। |
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मधुरिन :
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पुं० [सं० मधुर से] ग्लिसरीन (तरल पदार्थ)। |
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मधुरिमा :
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स्त्री० [सं० मधुर+इमनिच्] मधुर होने की अवस्था या भाव। मधुरता। वि०=मधुर। |
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मधुरी :
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स्त्री० [सं० मधुर] मुँह से फूँककर बजाया जानेवाला एक तरह का पुराना बाजा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)स्त्री० [सं० माधुरी] १. मधुरता। २. शराब। |
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मधुरोदक :
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पुं० [मधुर-उदक, कर्म० स०] १. मधु मिश्रित जल। २. (ब० स०] पुराणानुसार सात समुद्रों में से अंतिम समुद्र जो मीठे जल का और पुष्कर द्वीप के निकट चारों ओर स्थित कहा गया है। |
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मधुल :
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पुं० [सं० मधु√ला (लेना)+क] मदिरा। वि०=मधर। |
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मधुलिका :
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स्त्री० [सं० मधुल+कन्+टाप्, इत्व] १. प्राचीन काल में मधुली नामक गेहूँ के पास से तैयार की जानेवाली मदिरा। २. राई। ३. फूलों का पराग। ४. कार्तिकेय की एक मातृका। |
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मधुली :
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पुं० [सं० मधुलिका] भाव प्रकाश के अनुसार एक प्रकार का गेहूँ। |
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मधुवटी :
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स्त्री० [सं० ब० स० ङीष् ?] एक प्राचीन स्थान (महा०)। |
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मधुवंती :
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स्त्री० [सं० मधुवती] संगीत में टोढ़ी ठाट की एक रागिनी। |
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मधुष्ठील :
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पुं० [सं० मधु√ष्ठीव् (फेंकना)+क, पृषो० लत्व] महुए का वृक्ष। |
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मधुसूदन :
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पुं० [सं० मधु√सूद्+णिच्+ल्यु—अन] १. मधु नामक दैत्य को मारनेवाले, विष्णु। २. भौंरा। |
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मधुसूदनी :
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स्त्री० [सं० मधूसूदन+ङीष्] १. पालक का साग। २. आज-कल शरीर के अन्दर अग्नाशय में बननेवाला वह तत्त्व जिसके अभाव या कमी के कारण शरीर में शर्करा का ठीक समवर्त्तन नहीं होने पाता, रक्त विषाक्त होने लगता है और मूत्र सम्बन्धी अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होने लगते हैं। २. उक्त तत्त्व से बनाई जानेवाली एक प्रसिद्ध दवा (इन्स्युलिन)। |
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समानार्थी शब्द-
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मधूक :
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पुं० [सं०√मद्+ऊक, नि० सिद्धि] १. महुए का पेड़, फूल और फल। २. मुलेठी। ३. भ्रमर। |
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मधूक-पर्णा :
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स्त्री० [सं० ब० स०,+टाप्] अमड़ा। |
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समानार्थी शब्द-
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मधूक-शर्करा :
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स्त्री० [ष० त०] वह शक्कर जो महुए के रस से बनाई गई हो। |
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समानार्थी शब्द-
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मधूकरी :
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स्त्री०=मधुकरी। |
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समानार्थी शब्द-
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मधूख :
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पुं०=मधूक। |
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समानार्थी शब्द-
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मधूत्थ :
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पुं० [सं० मधु+उत्√स्था (ठहरना)+क] मोम। |
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मधूपन्ना :
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स्त्री० [मधु-उत्पन्ना, ब० स०] १. चैत्र की पूर्णिमा। २. [ष० त०] वसंतोत्सव। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधूल :
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पुं० [सं० मधु√उर् (प्राप्त होना)+क, र—ल] जल-महुआ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधूलक :
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पुं० [सं० मधूल+कन्] १. जल-महु्आ। २. मद्य। शराब। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधूलिका :
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स्त्री० [सं० मधूल+कन्+टाप्, इत्व] १. मूर्वा (लता)। २. मुलेठी। ३. एक प्रकार की घास। मधुली नामक गेहूँ। ५. उक्त गेहूँ से बनाई जानेवाली मदिरा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधूली :
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पुं० [सं० मधूल+ङीष्] १. आम का पेड़। २. जल में उत्पन्न होनेवाली मुलेठी। ३. मध्यदेश में होनेवाला एक प्रकार का गेहूँ। मधुली। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधूस्थित :
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पुं० [मधूस्थि, पं० त०] मोम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधोना :
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पुं०=[स्त्री० मधोनी] मधवा (इन्द्र)। पुं०=मेघौना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मधोनी :
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स्त्री० [सं० मधवन्+ङीष्] मघवा अर्थात् इन्द्र की पत्नी। इन्द्राणी। शची। |
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उपलब्ध नहीं |
मध्य :
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पुं० [सं०√मन्+यक्, नि० सिद्धि] १. किसी चीज के बीच का भाग। २. शरीर का मध्यभाग। कटि। कमर। ३. वह जो किसी विशिष्ट दल या पक्ष में न हो। तटस्थ। निष्पक्ष। उदा०—बूझि मित्र और मध्य गति तस तब करिहिउँ आइ।—तुलसी। ४. संगीत में, तीन सप्तकों में से बीचवाला सप्तक जिसके स्वरों का उच्चारण स्थान वक्षस्थल और कंठ का भीतरी भाग कहा गया है। विशेष—साधारणतः गाना-बजाना इसी सप्तक से आरंभ होता है। जब स्वर ऊँचे होकर और आगे बढ़ते हैं, तब वे ‘तार’ नामक सप्तक में पहुँचते हैं। और जब स्वर इस सप्तक से नीचे होकर उतरने लगते हैं, तब ‘मंद्र’ नामक सप्तक में पहुँच जाते हैं। ५. नृत्य में वह गति जो न बहुत तेज हो और न बहुत धीमी। ६. सुश्रुत के अनुसार १६ वर्ष से ७0 वर्ष तक की अवस्था। ७. आपस में होनेवाला अन्तर। दूरी या फरक। ८. पश्चिम दिशा। ९. विश्राम। १॰. दस अरब की संख्या की संज्ञा। वि० १. बीच में रहने या होनेवाला। बीच का। २. जो बहुत अच्छा भी न हो और बहुत बुरा भी न हो, फलतः काम चलाने लायक। ३. अधम। नीच। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य पद-लोपी :
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पुं०=मध्य पद-लोपी (समास)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य-कुरु :
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पुं० [मध्य से] उत्तर कुरु और दक्षिण कुरु के मध्य में स्थित एक प्राचीन देश। |
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समानार्थी शब्द-
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मध्य-खंड :
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पुं० [मध्य० स०] ज्योतिष में, पृथ्वी का वह भाग जो उत्तरी क्रांतिवृत्त और दक्षिणी क्रांतिवृत्त के बीच में पड़ता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य-गंध :
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पुं० [ब० स०] आम का वृक्ष। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य-जीवकल्प :
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पुं० [कर्म० स०] भू-विज्ञान के अनुसार इस पृथ्वी की रचना के इतिहास में, पाँच कल्पों में से चौथा कल्प जो पुरा कल्प के बाद और आज से प्रायः बारह से बीस करोड़ वर्ष पहले था और जिसमें अनेक प्रकार के विशाल काय जन्तुओं तथा पक्षियों की सृष्टि हुई थी (मेसोडोइक एरा)। विशेष—शेष चार कल्प ये हैं—आदि कल्प, उत्तर कल्प, पुरा कल्प और नव कल्प। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य-तापिनी :
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स्त्री० [सं०] एक उपनिषद् का नाम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य-देह :
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पुं० [सं० कर्म० स०] उदर। पेट। |
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समानार्थी शब्द-
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मध्य-पात :
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पुं [सं०] १. ज्योतिष में एक प्रकार का पात। २. परिचय करानेवाली बात या लक्षण। पहचान। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य-पूर्व :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. यूरोप वालों की दृष्टि से एशिया या दक्षिण पश्चिमी तथा अफ्रीका का उत्तर-पूर्वी भाग (मिडिल ईस्ट)। २. उक्त भाग में स्थित राज्यों का समाहार। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य-प्रत्यय :
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वि० [सं० ब० स०] किसी के बीच या मध्य में बैठाया या लगाया हुआ। पुं० व्याकरण में कोई ऐसा अक्षर या शब्द जो प्रत्यय के रूप में किसी दूसरे शब्द के बीच में लगकर उसके अर्थ में कोई विशेषता उत्पन्न करता हो। मर्सग। (इन्फिक्स)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य-यव :
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पुं० [सं० कर्म० स०] प्राचीन काल का एक परिमाण जो पीली सरसों के छः दानों की तौल के बराबर होता था। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य-युग :
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पुं० [सं० कर्म० स०] [वि० मध्ययुगीन] १. प्राचीन युग और आधुनिक युग के बीच का युग या समय। २. एशिया युरोप आदि के इतिहास में, ईसवी छठी से पन्दहवीं शताब्दी तक का काल या समय (मिडिल एजेज़)। ३. आधुनिक भारतीय इतिहास में, मुसलमानी शासन काल का समय। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य-रेखा :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] ज्योतिष और भूगोल में वह रेखा जिसकी कल्पना देशांतर निकालने के लिए की जाती है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य-लोक :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. पृथ्वी। २. जैनों के अनुसार वह मध्यवर्ती लोक जो मेरु पर्वत पर १000४0 योजन की ऊँचाई पर है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्य-स्थल :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. मध्यप्रदेश। कमर। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यक :
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वि० [सं० मध्य से] १. मध्य या बीच में रहने या होनेवाला। २. जो न बहुत बड़ा हो और न बहुत छोटा हो। मझोले आकार का। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यका :
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स्त्री० [सं० मध्य से] दे० ‘माध्यिक’। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यग :
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वि० [मध्य√गम् (जाना)+ड] बीच में पड़ने या स्थित होनेवाला पुं० दलाल। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यगत :
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भू० कृ० [द्वि० त०] मध्य में आया या लाया हुआ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यगति :
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स्त्री० [मध्य० स०] तटस्थता की वह नीति या स्थिति जिसमें किसी से न तो विशेष मित्रता ही होती है और न लडाई या झगड़ा बखेड़ा ही। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यता :
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स्त्री० [सं० मध्य+तल्+टाप्] मध्य होने की अवस्था, धर्म या भाव। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यदेश :
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पुं० [मध्य० स०] १. किसी चीज का बीचवाला भाग। २. शरीर का मध्य भाग। कटि। ३. प्राचीन भारत का यह विस्तृत मध्य भाग जिसके उत्तर में हिमालय, पूर्व में बंगाल, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में पंजाब और सिंध, तथा पश्चिम-दक्षिण में गुजरात था। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यम :
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वि० [सं० मध्य+म] १. जो विपरीत कोणों, दिशाओं या सीमाओं के बीच में हो। मध्य का। बीच का। २. न बहुत बड़ा और न बहुत छोटा। वि०=मद्धिम। पुं० १. संगीत के सात स्वरों में से चौथा स्वर जिसका मूल स्थान नासिका, अंतः स्थान कंठ और शरीर में उत्पत्ति स्थान वक्षस्थल माना गया है २. वह उपपति जो नायिका की चेष्टाओं से ही उसके मन का भाव जान ले और उसके क्रोध दिखलाने पर अनुराग न प्रकट करे। यह साहित्य में तीन प्रकार के नायकों में से एक है। ३. एक प्रकार का हिरन। ४. संगीत में एक प्रकार का राग। ५. दे० ‘मध्य देश’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यम पद-लोपी (पिन्) :
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[सं० मध्यम-पद, कर्म० स०, मध्यम्पद] व्याकरण में एक प्रकार का समास जिसमें पहले पद से दूसरे पद का संबंध बतलानेवाला शब्द अध्याहृत लुप्त रहता है। लुप्त पद-समास। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यम-पुरुष :
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पुं० [सं० कर्म० स०] व्याकरण में वक्ता की दृष्टि में उस व्यक्ति का वाचक सर्वनाम जिससे वह कुछ कह रहा हो। (सेकेंड पर्सन)। जैसे—तू, तुम, आप। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यम-मार्ग :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. दो चरम सीमाओं या परस्पर विरोधी मार्गों अथवा साधनों के बीच का ऐसा मार्ग या साधन जिसमें दोनों पक्षों या विचार-धाराओं का उचित समाधान या सामंजस्य होता हो। बीच का रास्ता (वाया-मीडिया)। २. महात्मा बुद्ध द्वारा प्रतिपादित एक प्रसिद्ध मत या सिद्धांत। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यम-राजा (जन्) :
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पुं० [सं० कर्म० स०] वह राजा जो कई परमात्मा विरोधी राजाओं के मध्य में हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यम-लोक :
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पुं० [सं० कर्म० स०] पृथ्वी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यम-वर्ग :
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पुं० [सं० कर्म० स०] मनुष्य समाज के आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से विभाजित वर्गों (उच्च, मध्यम और निम्न) में से हुद्धि प्रधान एक वर्ग जो सामान्य आर्थिक स्थित तथा सामाजिक स्थितिवाला समझा जाता है और उच्च वर्ग (धनी वर्ग) और निम्नवर्ग (श्रमिक वर्ग) के बीच में माना जाता है (मिडिल क्लास)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यम-संग्रह :
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पुं० [सं० कर्म० स०] पर-स्त्री को फुसलाने तथा अपने वश में करने के विचार से उसे गहने-कपड़े आदि भेजना (मिताक्षरा) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यम-साहस :
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पुं० [सं० कर्म० स०] मनु के अनुसार पाँच सौ पणोतक का अर्थ-दंड या जुरमाना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यमता :
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स्त्री० [सं० मध्यम+तल्+टाप्] मध्यम होने की अवस्था या भाव। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यमा :
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स्त्री० [सं० मध्यम+टाप्] १. हाथ की बीचवाली उँगली। २. साहित्य में वह नायिका जो अपने प्रिय के द्वारा हित अथवा अहित का व्यवहार देखकर उसके प्रति वैसा ही हित अथवा अहित का व्यवहार करती हो। ३. २४. हाथ लंबी, १२ हाथ चौड़ी और ८ हाथ ऊँची नाव (युक्तिकल्पतरु)। ४. रजस्वला स्त्री। ५. कनियारी। ६. छोटा जामुन। ७. काकोली। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यमागम :
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पुं० [सं० मध्यम-आगम, कर्म० स०] बौद्धों के चार प्रकार के आगमों में से एक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यमान :
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पुं० [सं०] [वि० मध्य-मानिक] १. लेखे या हिसाब में बराबर का। औसत। पड़ता। मध्यक। २. परस्पर विपरीत दिशाओं में स्थित दो बिंदुओं या संख्याओं के ठीक बीचोबीच में स्थित बिन्दु या संख्या। (मीन) जैसे—यदि कहीं का तापमान घटकर ९५ अंश तक और बढ़कर १0५ अंश तक पहुँच जाता हो तो वहाँ के ताप-मान का मध्यमान १00 अंश होगा। वि० १. दे० ‘मध्यक’। २. दे० ‘मध्या’। ३. संगीत में, एक प्रकार का ताल जिसमें ८ ह्रस्व अथवा ४ दीर्घ मात्राएँ होती हैं और ३ आघात और १ खाली होता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यमाहरण :
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पुं० [सं०] बीज गणित की वह क्रिया जिसके अनुसार कोई आयत्त-मान माना जाता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यमिका :
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स्त्री० [सं० मध्यम+कन् टाप्, इत्व] रजस्वला स्त्री०। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यमीय :
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वि० [सं० मध्यम+छ—ईय] मध्यम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्ययुगीन :
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वि० [सं० मध्ययुग+ख—ईन] मध्ययुग-सम्बन्धी। मध्ययुग का (मेडीवल) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यवर्ती (तिन्) :
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वि० [सं० मध्य√वृत् (बरतना)+णिनि] १. जो मध्य में वर्तमान या स्थित हो। बीच का। २. जो दो पक्षों के बीच में रहकर उनमें से सम्बन्ध स्थापित करता हो (इन्टरमिडिअरी)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यविवरण :
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पुं० [सं० ष० त०] बृहत्संहिता के अनुसार सूर्य या चन्द्रग्रहण के मोक्ष का एक प्रकार जिसमें सूर्य या चन्द्रमा का मध्य भाग पहले प्रकाशित होता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यसर्ग :
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पुं०=मध्य-प्रत्यय। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यसूत्र :
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पुं०=मध्यरेखा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
मध्यस्थ :
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वि० [सं० मध्य√स्था (ठहरना)+क] [भाव० मध्यस्थता] जो बीच या मध्य में स्थित हो। बीच का। पुं० १. वह जो दो विरोधी पक्षों या व्यक्तियों के बीच में पड़कर उनका झगड़ा या विवाह निपटाता हो। आपस में मेल या समझौता करानेवाला व्यक्ति (मीडियेटर)। २. वह जो दो दलों या पक्षों के बीच में रहकर उनके पारस्परिक व्यवहार या लेन-देन में कुछ सुभीते उत्पन्न करके स्वयं भी कुछ लाभ उठाता हो (मिडिलमैन)। जैसे—उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच में व्यापारी, अथवा राज्य और कृषकों के बीच में जमींदार आदि। ३. वह जो दोनों विरोधी पक्षों में से किसी पक्ष में न हो। उदासीन। ४. वह जो अपनी हानि न करता हुआ दूसरों का उपकार करता हो। |
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समानार्थी शब्द-
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मध्यस्थता :
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स्त्री० [सं० मध्यस्थ+तल्—टाप्] मध्यस्थ होने की अवस्था या भाव (मीडिएशन)। २. मध्यस्थ का काम और पद। |
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मध्या :
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स्त्री० [सं० मध्य+टाप्] १. साहित्य में स्वकीया नायिका के तीन भेदों में से एक जिसमें काम और लज्जा की समान स्थिति मानी गई है। स्वकीया के अन्य दो भेद हैं—मुग्धा और प्रगल्भा। २. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में तीन अक्षर होते हैं। इसके आठ भेद हैं। ३. बीच की उँगली। मध्यमा। |
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मध्यांतर :
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पुं० [सं० मध्य+अंतर] १. दो घटनाओं वस्तुओं आदि के मध्य या बीच के अंतर। २. उक्त प्रकार के अंतर के कारण बीतनेवाला समय। ३. किसी काम या बात के बीच में सुस्ताने आदि के लिए निकाला या नियत किया हुआ थोड़ा-सा समय (इन्टर्वल)। |
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मध्यान :
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पुं०=मध्याह्न।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मध्यालु :
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पुं० [सं० मधु-आलु, कर्म० स०] एक प्रकार के पौधे की जड़ जो खाई जाती है। |
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मध्यावकाश :
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पुं० [सं० मध्य+अवकाश]=मध्यांतर। |
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मध्याह्न :
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पुं० [सं० मध्य-अहन्, एकदेशि त० स०] १. दिन के ठीक बीच का वह समय जब सूर्य सबसे ऊपर आ जाता है। २. उक्त समय के बाद का थोड़ी देर तक का समय। |
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मध्याह्नोतर :
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पुं० [सं० मध्य अहन-उत्तर, ष० त०] मध्याह्न के ठीक बादवाला समय। तीसरा पहर। |
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मध्ये :
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अव्य०=मद्धे (देखें)। |
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मध्व :
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पुं० दे० ‘मध्वाचार्य’। पुं०=मधु। |
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मध्वक :
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पुं० [सं० मध्व+कन्] मधुमक्खी। |
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मध्वल् :
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पुं० [सं० मधु√अल् (पर्याप्त)+अण्] बार-बार और बहुत शराब पीना। |
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मध्वाचार्य्य :
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पुं० [सं० मध्व-आचार्य, कर्म० स०] दक्षिण भारत के एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य जिन्होंने माध्व या मध्वाचारि नामक संप्रदाय का प्रावर्तन किया था। इनका समय ईसवी बारहवीं शताब्दी के लगभग माना जाता है। |
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मध्वाधार :
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पुं० [सं० मधु-आधार, ष० त०] मधुमक्खियों का छत्ता। |
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मध्वावास :
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पुं० [सं० मधु-आवास, ष० त०] आम का पेड़। |
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मध्वासव :
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पुं० [सं० मधू-आसाब, तृ० त०] महुए के रस के पाँस से बनाई जानेवाली मदिरा। |
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मध्वासवनिक :
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पुं० [सं० मध्वासवन+ठन्—इक] शराब बनाने तथा बेचनेवाला। कलवार। |
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मध्विजा :
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स्त्री० [सं० मधु√ईज् (प्राप्त होना)+क, पृषो० ह्रस्व,+टाप्] मद्य। |
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