शब्द का अर्थ
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मुंड :
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पुं० [सं०√मुंड (काटना)+घञ्+अच्] १. सिर। २. कटा हुआ सिर। पद—मुंड-माला। ३. एक दैत्य जो राजा बलि का सेनापति था। (पुराण)। ४. राहु ग्रह। ५. नाई। हज्जाम। ६. वृक्ष का ठूँठ। ७. बोल नामक गन्ध द्रव्य। ८. मंडूर। ९. एक उपनिषद् का नाम। १॰. गौओं का झुंड। वि० १. मूँड़ा या मुंड़ा हुआ। २. जिस पर बाल न हो। ३. अधम। नीच। |
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मुंड-चिरा :
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वि० [हिं० मूँड़+चिरना] जिसका सिरा या ऊपरी भाग चिरा हुआ हो। पुं० =मुंड-चीरा। |
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मुंड-चीरा :
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पुं० [हिं० मुंड+चीरना] १. एक प्रकार के मुसलमान फकीर जो भीख न मिलने पर धारदार या नुकीले हथियार से अपनी आँख, सिर या और कोई अंग चीरकर उसमें से खून निकालने लगते हैं। २. ऐसा व्यक्ति जो बहुत ही घृणित तथा वीभत्स रूप से लड़-झगड़कर अपना काम निकालता हो। उदाहरण—लड़-भिड़कर जो काम चलावे, मुंडचीरा है।—मैथिलीशरण। ३. वह जो लेन-देन में बहुत अधिक हुज्जत करता हो। |
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मुंड-फल :
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पुं० [सं० ब० स०] नारियल। |
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मुंड-मंडली :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. अशिक्षित सेना। २. अशिक्षितों का दल। |
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मुंड-माल :
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पुं० =मुंडमाला। |
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मुंड-माला :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. काटे हुए सिरों की माला जो शिव या काली देवी के गले में होती है। २. बंगाल की एक नदी। |
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मुंडक :
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पुं० [सं० मुंड+कन्] १. सिर। २. नाई। हज्जाम। ३. एक उपनिषद्। वि० मुंडन करने या मूँड़नेवाला। |
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मुंडकरी :
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स्त्री० [हिं० मूँड़+करी (प्रत्यय)] वह स्थिति जिसमें कोई घुटनों में सिर रखकर बैठता है। क्रि०प्र, -मारना। |
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मुंडकारी :
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स्त्री०=मुँड़करी। |
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मुंडचिरापन :
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पुं० [हिं० मुँडचिरा+पन (प्रत्यय)] मुंडचिरा या मुंडचीरा होने की अवस्था या भाव। |
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मुंडन :
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पुं० [सं०√मुंड (खंड करना)+ल्युट-अन] १. सिर के बाल उस्तरे से मूँड़ने की क्रिया। २. एक संस्कार जिसमें बालक के बाल पहली बार उस्तरे से मूँड़े जाते हैं। ३. उक्त समय पर होनेवाला उत्सव या सामारोह। |
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मुंडनक :
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पुं० [सं० मुंडन+कन्] १. बोरो धान। २. बड़ का पेड़। वि० मुंडन करनेवाला। |
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मुंडना :
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अ० [सं० मुंडन] १. सिर या किसी अंग का मूँड़ा जाना। मुंडन होना। २. बुरी तरह से ठगा या लूटा जाना। विशेषतः आर्थिक हानि सहना। संयो० क्रि०—जाना। |
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मुंडमालिनी :
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स्त्री० [सं० मुंडमालिन्+ङीष्] काली देवी। |
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मुंडमाली (लिन्) :
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वि० [सं० मुंडमाला+इनि] शिव। |
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मुंडा :
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वि० [सं० मुंडित] [स्त्री० मुंडी] १. जिसके सिर पर बाल न हो। २. जिसका सिर मुँड़ा हुआ हो। पुं० १. वह जो सिर मुँड़ाकर किली साधु या संन्यासी का शिष्य हो गया हो। २. ऐसा पशु जिसके सींग होने चाहिए, पर न हों। जैसे—मुंडा बैल। ३. वह जिसके ऊपर या इधर-उधर फैलनेवाले अंग न हों। जैसे—मुंडा पेड़। ४. बालक। लड़का। (पश्चिम)। ५. कोठीवाली महाजनी लिपि जिसके अक्षरों पर शीर्ष-रेखा तथा आगे-पीछे मात्राएँ नहीं होती। ६. एक प्रकार का देशी जूता जिसमें आगे की ओर नोक नहीं होती। ७. कराँकल से कुछ बड़ा एक प्रकार का पक्षी जिसका सिर और गरदन काली तथा बिना बालों की होती है। यह धान के खेतों में मेढ़कों की तलाश में किसानों के हल के इतने पास चलता है वे परिहास में इसे ‘हर जोता’ भी कहते हैं। पुं० [?] एक प्राचीन अनार्य जन-जाति जिसके वंशज अब तक पलामू, राँची, हजारीबाग आदि स्थानों में पाये जाते हैं। स्त्री० भाषा-विज्ञान के अनुसार कुछ विशिष्ट अनार्य बोलियों का एक वर्ग जिसके अन्तर्गत पंजाब के उत्तरी भाग से न्यूजीलैंड और मैडागास्कर द्वीप तक बोली जानेवाली कई बोलियाँ आती हैं। इनमें भारतीय क्षेत्र की उराँव, निषाद, शबर आदि बोलियाँ प्रमुख हैं। स्त्री० [सं० मुंड+टाप्] गोरखमुंडी। |
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मुँड़ा-हिरन :
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पुं० [हिं० मुंडा+हिरन] पाठी मृग। |
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मुँड़ाई :
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स्त्री० [हिं० मूँड़ना+आई (प्रत्यय)] १. मूँडने या मुँड़ाने की क्रिया या भाव। २. मूंड़ने का पारिश्रमिक या मजदूरी। |
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मुँड़ाना :
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स० [हिं० मूँड़ना का प्रे०] मूँड़ने का काम किसी दूसरे से कराना। मुंडन कराना। |
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मुँड़ासा :
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पुं० [हिं० मुंड़=सिर+आसा (प्रत्यय)] सिर पर बाँधने का साफा। क्रि० प्र०—कसना।—बाँधना। स्त्री०=मुंडा (महाजनी लिपि)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मुँड़ासाबंद :
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पुं० [हिं० मुंड़ासा+बंद (प्रत्यय)] दस्तारबंद। |
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मुँड़िआ :
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वि० [हिं० मूँड़ना] जिसका सिर मूँड़ा हुआ हो। पुं० १. वह जो सिर मुँड़ाकर विरक्त, संन्यासी या साधु हो गया हो। २. करघे में का वह हत्था जिससे राछ चलाते हैं। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मुँड़िका :
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स्त्री० [सं० मुंडा़+कन्, टाप्, ह्रस्व, इत्व] १. छोटा मुंड। २. मुंडी। सिर। ३. संख्या के विचार से व्यक्तिवाचक शब्द। जैसे—वहाँ चार मुंडिकाएँ बैठी थी, अर्थात् चार आदमी बैठे थे। |
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मुंडित :
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पुं० [सं०√मुंड+क्त] लोहा। भू० कृ० १. जिसका मुंडन हुआ हो। २. जो मूँड़ा गया हो। जैसे—मुंडित मस्तक। |
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मुंडितिका :
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स्त्री० [सं० मुंडित+कन्+टाप्, इत्व] गोरखमुंडी। |
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मुँड़िया :
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स्त्री०=मूँड़ (सिर)। पुं० =मुँड़िआ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मुंडी (डिन्) :
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पुं० [सं० मुंड+इनि] १. वह जिसका मुंडन हुआ हो। २. संन्यासी या साधु। ३. [√मुंड+णिच्+णिनि] नाई। नापित। हज्जाम। स्त्री० [हिं० मुंडा का स्त्री] १. वह स्त्री जिसका सिर मुँड़ा हो। २. विधवा (गाली के रूप में) ३. एक प्रकार की बिना नोकवाली जूती। स्त्री०=मूँड़ी (सिर)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मुँड़ीरिका :
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स्त्री० [सं०√मुंड+ईच्+कन्+टाप्, इत्व] गोरखमुंडी। |
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मुँडेर :
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स्त्री० [हिं० मुँडेरा] १. मुँड़ेरा। २. खेत की मेंड़। क्रि० प्र०—बँधना।—बाँधना। |
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मुँडेरा :
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पुं० [हिं० मूँड़=सिर+एरा (प्रत्यय)] १. दीवार का वह ऊपरी भाग जो ऊपर की छत के चारों ओर कुछ उठा होता है। २. किसी प्रकार का बाँधा हुआ पुश्ता। |
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मुँडेरी :
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स्त्री०=मुँडेर। |
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मुंडो :
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स्त्री० [हिं० मुँड़ना=ओ (प्रत्यय)] १. वह स्त्री जिसका सिर मूँड़ा गया हो। २. विधवा। राँड़। ३. स्त्रियों के लिए उपेक्षासूचक सम्बोधन जिसका प्रयोग प्राय गाली के रूप में होता है। जैसे—घर में दिया न बाती, मुंडो फिरे इतराती। (कहा०) |
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