मुक्त/mukt

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मुक्त  : भू० कृ० [सं०√मुज्+क्त] १. जो किसी प्रकार के बंधन से छूट गया हो। छूटा हुआ। २. धार्मिक क्षेत्र में, जो सांसारिक बंधनों और आवागमन आदि से छूट गया हो। जिसे मुक्ति मिली हो। ३. जो किसी प्रकार के नियम, विधान आदि के पालन से अलग कर दिया गया हो ४. जिसने किसी प्रकार की मर्यादा आदि का परित्याग कर दिया हो। जैसे—मुक्त लज्ज, मुक्त वमन। ५. खुला या छूटा हुआ। जैसे—मुक्त वेणी। ६. जो किसी प्रकार के बंधन की चिंता या परवाह न करता हो। खुला हुआ। जैसे—मुक्त-कंठ, मुक्त हस्त। ७. चलने के लिए छूटा हुआ। जैसे—बाण का मुक्त होना। पुं० पुराणानुसार एक ऋषि का नाम। पुं० मुक्ता (मोती) उदाहरण—हेम हीर हार मुक्त चीर चारु साजि कै।—केशव। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मुक्त-कच्छ  : पुं० [सं० ब० स०] एक बौद्ध का नाम। वि० जिसका कच्छ खुला हो।
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मुक्त-चक्षु (स्)  : पुं० [सं० ब० स०] शेर। सिंह।
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मुक्त-चंदन  : पुं० [सं० मध्य० स०] लाल चंदन।
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मुक्त-चेता (तस्)  : वि० [सं० ब० स०] जिसमें मोक्ष प्राप्त करने की बुद्धि आ गयी हो।
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मुक्त-छंद (स्)  : पुं० [सं० ब० स०] आज-कल की ऐसी कविता जिसमें चरणो, मात्राओं, अनुप्रास आदि का बन्धन न माना जाता हो, केवल लय का ध्यान रखा जाता हो। (ब्लैक वर्स)।
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मुक्त-निम्र्मोक  : वि० [सं० ब० स०] (सांप) जिसने अभी हाल में केंचुली छोड़ी हो।
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मुक्त-पद-ग्राह्य  : पुं० [सं०] साहित्य में, यमक अलंकार का सिंहावलोकन नामक प्रकार या भेद (दे० ‘सिंहावलोकन’)।
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मुक्त-पुरुष  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह जिसने मोक्ष प्राप्त कर लिया हो।
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मुक्त-बंधना  : स्त्री० [सं० ब० स० टाप्] १. एक प्रकार का मोतिया। २. बेला।
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मुक्त-वसन  : वि० [सं० ब० स०] जिसके शरीर पर कोई वस्त्र न हो। नंगा। पुं० एक प्रकार का साधु जैन जो सदा नंगे रहते हैं।
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मुक्त-वाणिज्य  : पुं० =मुक्त-व्यापार।
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मुक्त-वेणी  : स्त्री० [सं० ब० स०] १. द्रौपदी का एक नाम। २. प्रयाग का त्रिवेणी संगम।
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मुक्त-व्यापार  : वि० [सं० ब० स०] जो सांसारिक कार्यों से रहित हो गया हो। संसार-त्यागी। पुं० [सं० कर्म० स०] आधुनिक राजनीति में, व्यापार की वह व्यवस्था जिसमें विदेशों से होनेवाले आयात-निर्यात आदि पर कोई विशेष बन्धन न लगाया जाता हो। (फ्री ट्रेंड)।
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मुक्त-श्रृंग  : पुं० [सं० ब० स०] रोहू मछली।
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मुक्त-संग  : वि० [सं० ब० स०] जो विषय-वासना से रहित हो गया हो। पुं० परिव्राजक।
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मुक्त-सार  : पुं० [सं० ब० स०] केले का पेड़।
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मुक्त-हस्त  : वि० [सं० ब० स०] १. जो उदारतापूर्वक तथा अधिक मात्रा में दान, व्यय आदि करता हो। २. खुले हाथों देनेवाला।
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मुक्तक  : पुं० [सं० मु्क्त+कन्] १. प्राचीन काल का एक अस्त्र जो फेंककर मारा जाता था। २. शस्त्र। हथियार। ३. ऐसा सरल और सीधा गद्य जिसमें छोटे-छोटे वाक्य हों। ४. काव्य का वह प्रकार या भेद (प्रबन्ध-काव्य से भिन्न) जिसमें वर्णित बातों का कोई पूर्वापर सम्बन्ध न हो, अर्थात् एक ही छंद में कोई पूरी बात या विषय आ गया हो, आगे या पीछे के दूसरे छंदो से उसका कोई सम्बन्ध न हो। जैसे—बिहारी सतसई मुक्तक काव्य है। ५. छंद शास्त्र में कवित्त का वह प्रकार या भेद जिसमें गणों का कोई बन्धन नही होता, केवल अक्षरों की संख्या और कहीं-कहीं गुरु-लघु का कुछ ध्यान रखा जाता है।
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मुक्तक-ऋण  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह ऋण जिसके सम्बन्ध में कुछ लिखा-पढ़ी न हो। जबानी बातचीत पर दिया या लिया हुआ ऋण।
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मुक्तकंठ  : वि० [सं० ब० स०] १. जोर में बोलनेवाला २. बेधड़क बोलनेवाला। ३. जो बोलने में बन्धन या सीमा न मानता हो। जैसे—मुक्त कंठ होकर प्रशंसा करना।
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मुक्तता  : स्त्री० [सं० मुक्त+तल्-टाप्] मुक्त होने की अवस्था या भाव। मुक्ति।
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मुक्ता  : स्त्री० [सं० मुक्ता+टाप्] [वि० मौक्तिक] १. मोती। २. रासना।
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मुक्ता-पुष्प  : पुं० [सं० ब० स०] कुंद (पौधा और फूल)।
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मुक्ता-प्रसू  : पुं० [सं० ष० त०] सीप।
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मुक्ता-फल  : पुं० [सं० उपमि० स०] १. मोती। २. कपूर। ३. लवनी फल। ४. एक प्रकार का छोटा लसोढ़ा।
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मुक्ता-मणि  : पुं० [सं० मयू० स०] मोती।
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मुक्ता-मोदक  : पुं० [सं०] मोतीचूर का लडडू।
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मुक्ता-लता  : स्त्री० [सं० तृ० त०] मोतियों की लड़ी या माला।
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मुक्ता-स्फोट  : पुं० [सं० च० त०] सीप।
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मुक्तागार  : पुं० [सं० मुक्ता-आगार, ष० त०] सीप।
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मुक्तात्मा (त्मन्)  : वि० [सं० मुक्त-आत्मन्, ब० स०] १. जो सांसारिक आसक्तियों या बन्धनों से रहित हो गया हो। २. जिसने मोक्ष प्राप्त कर लिया हो।
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मुक्तादाम (न्)  : पुं० [सं० ष० त०] मोतियों की लड़ी।
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मुक्तावली  : स्त्री० [सं० मुक्ता-आवली, ष० त०] मोतियों की लड़ी।
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मुक्तांशक  : पुं० [सं० मुक्ता-अंशक, मध्य० स०] प्राचीन भारत में एक प्रकार का कपड़ा जिसकी बनावट में या तो मोतियों का काम होता था या जिसमें मोतियों की झालर अथवा झुब्बे टँके होते थे।
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मुक्ताहल  : पुं० =मुक्ताफल (मोती)। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मुक्ति  : स्त्री० [सं०√मुच्+क्तिन्] १. मुक्त करने या होने की अवस्था क्रिया या भाव २. किसी प्रकार के जंजाल, झंझट, पाश, बंधन आदि से छुटकारा मिलना। ३. धार्मिक क्षेत्र में, वह स्थिति जिसमें वह समझा जाता है कि परमात्मा में मिल जाने के कारण जीव आवागमन या जन्म-मरण के बंधन से छूट जाता है। मोक्ष। (इमैन्सिपेशन)। ४. मृत्यु के फलस्वरूप सांसारिक कष्ट-भोगों की होनेवाली समाप्ति अथवा उनसे मिलनेवाला छुटकारा। ५. दायित्व, देन आदि से छूटने की अवस्था या भाव। स्त्री०=मोती। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मुक्ति-तीर्थ  : पुं० [सं० ष० त०] १. वह तीर्थ जहाँ प्राणी को मुक्ति मिलती हो। २. काशी। ३. विष्णु।
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मुक्ति-पद  : पुं० [सं० ष० त०] हरा मूँग। वि० मुक्ति देनेवाला।
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मुक्ति-फौज  : स्त्री०=मुक्ति-सेना।
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मुक्ति-मंडप  : पुं० [सं० ष० त०] काशी क्षेत्र में विश्वनाथ का मंदिर।
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मुक्ति-मुक्त  : पुं० [सं० तृ० त०] शिलारस।
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मुक्ति-सेना  : स्त्री० [सं० ष० त०] ईसाई त्यागियों या विरक्तों का एक संघटक जिसका उद्देश्य लोगों में ईसाई धर्म और नीति का प्रचार करना तथा लोक-सेवा के दूसरे अनेक काम करता है। (सैल्वेशन अर्मी)।
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मुक्ति-स्नान  : पुं० [सं० स० त०] ग्रहण आदि का मोक्ष हो जाने पर किया जानेवाला स्नान।
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मुक्तिका  : स्त्री० [सं० मुक्ता+कन्+टाप्, ह्रस्व, इत्व] मोती।
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मुक्तिक्षेत्र  : पुं० [सं० ष० त०] १. काशी या वाराणसी जो प्राणियों को मुक्ति देनेवाली कही गयी है। २. कावेरी नदी के तट पर का वकुलारण्य नामक तीर्थ।
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मुक्तिधाम (न्)  : पुं० [सं० ष० त०] १. तीर्थ-स्थान। २. स्वर्ग। ३. परलोक।
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