शब्द का अर्थ
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मूत :
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पुं० [सं० मूत्र] १. पेशाब। मूत्र। मुहावरा—(किसी के आगे) मूत निकल पड़ना=भय से त्रस्त होना। मूत से निकल कर गू में पड़ना=पहले की अपेक्षा और भी अधिक बुरी दशा में जाना या पड़ना। २. औलाद। संतान। (बाजारू)। |
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मूतना :
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अ० [सं० मूत+ना (प्रत्यय)] पेशाब करना। मुहावरा—(किसी चीज पर) मूतना=बहुत ही तुच्छ या हेय और फलतः अग्राह्य या अस्पृश्य समझना। |
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मूतरी :
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पुं० [देश] एक प्रकार का जंगली कौआ। महताब। महालत। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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मूत्र :
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पुं० [सं०√मूत्र (मूतना)+घञ्] प्राणियों के उपस्थ मार्ग या जनर्नेद्रिय से निकलनेवाला वह दुर्गन्धमय तरल पदार्थ जिसमें शरीर के अनेक निकृष्ट विषाक्त अंश मिले रहते हैं। पेशाब। मूत। |
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मूत्र-कृच्छ् :
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पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का रोग जिसमें मूत्र थोड़ा-थोड़ा कुछ रुक-रुककर और प्रायः कुछ कष्ट सा होता है। (स्ट्रैगुरी) |
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मूत्र-क्षय :
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पुं० [सं० ष० त०] मूत्राघात रोग का एक भेद। |
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मूत्र-ग्रन्थि :
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पुं० [सं० ष० त०] मूत्राघात रोग का एक भेद। |
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मूत्र-दशक :
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पुं० [सं० ष० त०] हाथी, मेढ़े, ऊंट, गाय बकरे, घोड़े, भैंसे, गधे, पुरुष और स्त्री के मूत्रों का समूह। |
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मूत्र-दोष :
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पुं० [सं० ब० स०] मूत्र-सम्बन्धी कोई कष्ट या विकार। |
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मूत्र-नाली :
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स्त्री० [सं० ष० त०] उपस्थ के ऊपर या अन्दर की वह नाली जिसके द्वारा शरीर से मूत्र निकलता है। |
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मूत्र-पतन :
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पुं० [सं० ब० स०] १. मूत्र गिरने की अवस्था या भाव। २. गन्ध-बिलाव जिसका मूत्र प्रायः गिरता रहता है। |
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मूत्र-पथ :
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पुं० [सं० ष० त०] मूत्र-नाली। |
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मूत्र-परीक्षा :
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स्त्री० [सं० ष० त०] चिकित्साशास्त्र में, रोगी के मूत्र की वह वैज्ञानिक जाँच जिससे यह पता चलता है कि शरीर में किस प्रकार के कीटाणु या विकार है। (यूरिन एग्जामिनेशन)। |
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मूत्र-प्रसेक :
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पुं० [सं० ष० त०] मूत्र-नाली। |
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मूत्र-फला :
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स्त्री० [सं० ब० स०+टाप्] ककड़ी। |
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मूत्र-मार्ग :
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पुं० [सं०] मूत्राशय के साथ लगी हुई वह नली या सुरंगिका जिससे होकर मूत्र आगे बढ़कर निकलने के लिए जननेंद्रिय के ऊपरी भाग तक पहुँचता है। (यूरेथ्रा)। |
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मूत्र-रोध :
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पुं० [सं० ष० त०] वह अवस्था जिसमें किसी प्रकार के शारीरिक विकार के फलस्वरूप पेशाब होना बंद हो जाता है। पेशाब बन्द होने का रोग। |
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मूत्र-वृद्धि :
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स्त्री० [सं० ष० त०] अधिक बार तथा अपेक्षाकृत अधिक परिमाण में पेशाब होना। |
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मूत्र-स्रोत :
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पुं० [सं० ष० त०] दे० ‘मूत्र-मार्ग’। |
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मूत्रल :
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वि० [सं० मूत्र√ला (लेना)+क] [स्त्री० मूत्रला] अधिक और अनेक बार मूत्र लानेवाला। (औषध या पदार्थ)। |
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मूत्रला :
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स्त्री० [सं० मूत्रल+टाप्] ककड़ी। वि० सं० ‘मूत्रल’ का स्त्री। |
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मूत्राघात :
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पुं० [सं० मूत्र-आघात, ब० स०] एक प्रकार का रोग जिसमें शरीर के अन्दर कुछ समय के लिए मूत्र का बनना बन्द हो जाता है। |
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मूत्राशय :
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पुं० [सं०] नाभि के नीचे की वह थैली जिसमें मूत्र-संचित होता है। मसाना। (यूरिनरी ब्लेडर)। |
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मूत्रित :
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भू० कृ० [सं० मूत्र+इतच्] १. मूत्र के रूप में निकला हुआ। २. जो पेशाब के स्पर्श के कारण गंदा हो गया हो। |
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