शब्द का अर्थ
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					वृत्य					 :
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					वि० [सं०√वृत्+क्यप्] १. जो घेरा जाने को हो। २. जिसकी वृत्ति लगने को हो।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					वृत्यनुप्रास					 :
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					पुं० [सं० मध्यम० स०] एक प्रकार का शब्दालंकार जो उस समय माना है जब किसी चरण या पद में वृत्ति के अनुकूल वर्णों की आवृत्ति होती है। यह अनुप्रास का एक भेद है। विशेष—वृत्तियाँ तीन है-उपनागिरा या वैदर्भी गौड़ी और कोमला या पांचाली। इस प्रकार वृत्यनुप्रास के भी तीन भेद किये गये है-उपनागिरा, वृत्यनुप्रास, परुषानुप्रास और कोमला वृत्यनुप्रास।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 |