शब्द का अर्थ
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					संवेदन					 :
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					पुं० [सं० सम्√विद्+ल्युट्-अन] [वि० संवेदनीय, संवेद्य, भू० कृ० संवेदित] १. मन में सुख दुःख आदि की होने वाली अनुभूति या प्रतीति। २. किसी प्रकार के प्रभाव, स्पर्शं आदि के कारण शरीर के अंगों या स्नायुओं में प्राकृतिक रूप से होने वाला वह स्पन्दन जिससे मन को उसकी अनुभूति होती है। उदा०—मनु का मन था बिकल हो उठा समवेदन से खाकर चोट।—प्रसाद। ३. किसी को किसी बात का ज्ञान या बोध कराना। ४. नक-छिकनी नाम की घास।				 | 
			
			
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					संवेदन-सूत्र					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] प्रणियों के सारे शरीर में जल के रूप में फैली हुई बहुत ही सूक्ष्म नसों में से प्रत्येक नस। (नर्व) विशेष दे० ‘तंत्रिका’।				 | 
			
			
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					संवेदनहारी					 :
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					वि० दे० ‘निश्चेतक’।				 | 
			
			
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					संवेदना					 :
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					स्त्री० [सं० संवेदन+टाप्] १. मन में होने वाला अनुभव या बोध। अनुभूति। २. किसी को कष्ट में देखकर मन में होने वाला दुःख। किसी की वेदना देखकर स्वयं भी बहुत कुछ उसी प्रकार की वेदना का अनुभव करना। सहानुभूति। (सिम्पेथी) ३. उक्त प्रकार का दुःख या सहानुभूति प्रकट करने की क्रिया या भाव। (कन्डोलेंस)				 | 
			
			
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					संवेदनीय					 :
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					वि० [सम्√विद (जानना)+अनीयर्] जिसमें या जिसे संवेदन का ज्ञान हो सकता हो। २. जतलाया या बतलाया जा सकता हो।				 | 
			
			
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