शब्द का अर्थ
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					सखुन					 :
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					पुं० [फा० सखुन] १. बात-चीत। वार्तालाप। २. उक्ति कथन। मुहा०—सखुन डालना=किसी से (क) कुछ कहना या माँगना। (ख) प्रश्न करना। पूछना। ३.कविता। काव्य। ४.किसी को दिया दाने वाल वचन। वादा। क्रि० प्र०—देना।—मिलना।				 | 
			
			
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					सखुन-परवर					 :
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					पुं० [फा०] [भाव० सखुनपरवी] १. वह जो अपनी कही हुई बात का सदा पालन करता हो। जवान या बात का धनी। २. वह जो अपनी बात पर अड़ा रहता हो। हठी।				 | 
			
			
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					सखुन-शनास					 :
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					पुं० [फा०] [भाव० शखुनशनासी] १. वह जो सखुन या काव्य भली-भाँति समझता हो। काव्य का मर्मज्ञ। २. वह जो बात चीत का अर्त ठीक तरह से समझता हो।				 | 
			
			
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					सखुन-संज					 :
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					पं० [फा०] १. वह जो बात-चीत अच्छी तरह समझता हो। २. काव्य का मर्मज्ञ।				 | 
			
			
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					सखुन-साज					 :
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					पुं० [फा०] [भाव० सखुन-साजी] १. वह जो सखुन कहता हो। काव्य रचना करने वाला। कवि। शायर। २. वह जो प्रायः झूठी नमगढ़ंत हातें कहा करता हो।				 | 
			
			
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					सखुनचीन					 :
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					वि० [फा०] [भाव० सखुनचीनी] इधर की बात उधर लगाने वाला। चुगलखोर।				 | 
			
			
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					सखुनतकिया					 :
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					पुं० [फा० शकुन-तकियः] वह शब्द जो वाक्यांश कुछ लोगो की जवान पर ऐसा चढ़ जाता है कि बात-चीत करने में प्रायः मुँह से निकला करता है। तकिया कलाम। जैसे—क्या नाम, जो है सो, राम आसरे आदि।				 | 
			
			
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					सखुनदाँ					 :
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					[फा०] १. वह जो सखुन अर्थात काव्य अच्छी तरह समझता हो। काव्य रसिक। २. वह जो बात चीत का आशय अच्छी तरह समझता हो।				 | 
			
			
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					सखुनदानी					 :
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					स्त्री० [फा०] सखुनदाँ होने की अवस्था, गुण या भाव।				 | 
			
			
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