शब्द का अर्थ
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					सतर					 :
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					पुं० [अं०] १. छिपाव। २. मनुष्य का वह अंग जो ढका रखा जाता है और जिसके न ढके रहने पर उसे लज्जा आती है। गुह्य इन्द्रिय। पद-बे-सतर= (क) नंगा। नग्न। (ख) बुरी तरह से अपमानित किया हुआ। ३. आड़। ओट। परदा। स्त्री० [अं०] १. लकीर। रेखा। क्रि० प्र०—खींचना। २. अवली। कतार। पक्ति। वि० १. टेढ़ा। वक्र। २. कुपित। क्रुद्ध। अव्य० [सं० सत्वर] जल्दी या तेजी से।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सतरकी					 :
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					स्त्री०=स्त्री०=सत्रहीं (मृतक की क्रिया)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सतरंगा					 :
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					वि० [हिं० सात+सं० रंग][स्त्री० सत-रंगी] जिसमें सात रंग हो। सात रंगों वाला। जैसा—सतरंगा साफा, सतरंगी साड़ी। पुं० इन्द्र धनुष।				 | 
			
			
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					सतरंज					 :
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					स्त्री०=शतरंज।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सतरंजी					 :
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					स्त्री०=शतरंजी।				 | 
			
			
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					सतराई					 :
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					स्त्री० [सं० शत्रु+हिं० आई (प्रत्य०)] दुश्मनी। शत्रुता।				 | 
			
			
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					सतराना					 :
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					अ० [हिं० सतर या सं० सतर्जन] १. क्रोध करना। कोप करना। २. कुढ़ना। चिढ़ना। सयो० क्रि०—जाना। ३. चोचला, दुलार या नखरा दिखाते हुए धृष्टतापूर्ण आचरण करना। सं० १. क्रोध चढ़ाना। २. चिढ़ाना।				 | 
			
			
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					सतराहट					 :
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					स्त्री० [हिं० सतराना+हट (प्रत्य०)] सतराने की अवस्था, क्रिया या भाव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सतरी					 :
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					स्त्री० [सं० सर्पद्रंष्ट्रा] सर्पद्रंष्ट्रा नामक ओषधि।				 | 
			
			
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					सतरू					 :
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					पुं०=शत्रु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सतरौहाँ					 :
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					वि० [हिं० सतराना] [स्त्री० सतरौही] १. कुपित। क्रोध युक्त। २. सतरानेवाला। सतराहट से युक्त। (फलतः कुढ़ने, चिढ़ने या रूठनेवाला)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सतरौहें					 :
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					अव्य० [हिं० सतराना] सतराते हुए। सतराहट लिए हुए।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सतर्क					 :
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					वि० [सं०] [भाव० सतर्कता] १. जो तर्क करने में कुशल हो। २. (व्यक्ति) जो अपनी तथा दूसरों की आवश्यकताओं, विचारों, भावनाओं का पूरा-पूरा ध्यान रखता हो। (कानसिडरेट)। ३. जो दूसरों के व्यापारों, कार्यो, आदि की थाह पहले से लगा या अनुमान कर लेता हो और इसीलिए चौकन्ना रहता हो। सावधान।				 | 
			
			
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					सतर्कता					 :
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					स्त्री० [सं० सतर्क+तल्-टाप्] १. सतर्क होने की अवस्था, गुण या भाव। २. सावधानी। होशियारी।				 | 
			
			
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					सतर्पना					 :
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					स० [सं० संतपर्ण] भली-भांति तृप्त या संतुष्ट करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सतर्ष					 :
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					वि० [सं० अव्य० स०] तृषित। प्यासा।				 | 
			
			
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