शब्द का अर्थ
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					सहज					 :
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					वि० [सं०] [स्त्री० सहजा, भाव० सहजता] १. गुण, तत्त्व, पदार्थ या प्राणी जो किसी के साथ उत्पन्न हुआ हो। जैसा—सहज कर्त्तव्य, सहज ज्ञान आदि। २. प्राकृतिक। स्वाभाविक। ३. जो सभी दृष्टियों से ठीक और पूरा हो। पूरी तरह और निर्विवाद रूप से ठीक और आदर्श। उदाहरण—मिलहि सो बर सहज सुन्दर साँवरो।—तुलसीदास। ४. जिसके प्रतिपादन या संपादन में कोई कठिनता न हो। सरल। सुगम। ५. जन्म से प्रकृति से साथ उत्पन्न होने अथवा अपने साधारण रूप में रहनेवाला। प्रकृत। (नार्मल)। ६. मामूली। साधारण। पुं० १. सगा भाई। सहोदर। २. प्रकृति। स्वभाव। ३. बौद्धों के अनुसार वह मानसिक स्थिति जो प्रज्ञा और उपाय के योग से उत्पन्न होती है। ४. फलित ज्योतिष में जन्म-लग्न से तृतीय स्थान जिसमें भाइयों, बहनों आदि का विचार किया जाता है। ५. दे० ‘सहज-ज्ञान’।				 | 
			
			
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					सहज-ज्ञान					 :
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					पुं० [सं०] १. ऐसा ज्ञान जो जीव या प्राणी के जन्म से साथ ही उत्पन्न हुआ हो। प्रकृति-दत्त ज्ञान। सहज बुद्धि। (देखें) २. वह ज्ञान या चेतना शक्ति जिससे आत्मा सदा आनन्द और शांति से सम्पन्न रहती है।				 | 
			
			
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					सहज-ध्यान					 :
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					पुं० [सं०] सहज समाधि (दे०)।				 | 
			
			
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					सहज-बुद्धि					 :
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					स्त्री० [सं०] वह बुद्धि या समझ जो जीवों या प्राणियों में जन्म-जात होती है, और जिसके फलस्वरूप वे विशिष्ट अवस्थाओं में आप ही आप कुछ विशिष्ट प्रकार के आचरण और व्यवहार करते हैं। (इंस्टिक्ट) जैसा—स्तनपायी जंतुओं का अपने बच्चों को दूध पिलाना चिड़ियों का घोंसला बनाना आदि।				 | 
			
			
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					सहज-मार्ग					 :
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					पुं० [सं०] सहजयान वाली साधना का प्रकार।				 | 
			
			
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					सहज-मित्र					 :
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					पुं० [सं० कर्म० स०] ऐसे व्यक्ति जो प्रायः तथा स्वभावतः मित्रता का भाव रखते हों और जिनसे किसी प्रकार के अनिष्ट की आशंका न की जाती हो। विशेष—हमारे शास्त्रों में भानजा मौसेरा भाई और फुफेरा भाई सहज-मित्र और वैमात्रेय तथा चचेरे भाई सहज-शत्रु कहे गये हैं।				 | 
			
			
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					सहज-यान					 :
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					पुं० [सं०] एक बौद्ध संप्रदाय जो हठयोग के कुछ सिद्धान्तों के अनुसार धार्मिक साधना करता था।				 | 
			
			
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					सहज-यानी					 :
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					वि० [सं० सहज-यान] सहज-यान संबंधी। सहज यान का। पुं० वह जो सहज-यान संप्रदाय का अनुयायी हो।				 | 
			
			
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					सहज-योग					 :
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					पुं० [सं०] ईश्वर के नाम के जप के रूप में की जानेवाली साधना जिसमें हठयोग आदि की कष्टदायक क्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती।				 | 
			
			
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					सहज-शत्रु					 :
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					पुं० [सं० कर्म० स०] सौतेला या चचेरा भाई जो संपत्ति के लिए प्रायः झगड़ा करता है। (शास्त्र)				 | 
			
			
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					सहज-शून्य					 :
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					पुं० [सं०] ऐसी स्थिति जिसमें किसी प्रकार का परिज्ञान, भावना या विकार नाम को भी न रह जाय।				 | 
			
			
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					सहज-समाधि					 :
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					स्त्री० [सं०] १. बौद्ध तांत्रिकों और हठयोगियों के अनुसार वह स्थिति जिसमें मनुष्य समस्त ब्रह्मा आडंबरों से रहित होकर सरलतापूर्वक जीवन निर्वाह करता है। २. वह अवस्था जिसमें मनुष्य बिना समाधि लगाये जीते जी ईश्वर का साक्षात्कार करता है। जीवन्मुक्ति।				 | 
			
			
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					सहज-सुदंरी					 :
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					स्त्री० [सं०] बौद्ध तन्त्र शास्त्र में चांडाली या सुषुम्ना नाड़ी का वह रूप जो उसे अपनी ऊर्ध्व गति से डोम्बी में पहुँचने पर प्राप्त होता है।				 | 
			
			
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					सहजता					 :
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					स्त्री० [सं० सहज+तल्-टाप्] १. सहज होने की अवस्था, गुण या भाव। २. सरलता। आसानी।				 | 
			
			
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					सहजधारी (धारिन्)					 :
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					पुं० [सं०] सिक्ख संप्रदाय में वह व्यक्ति जो सिर और दाढ़ी के बाल न बढ़ाता हो पर फिर भी गुरु ग्रंथ साहब का अनुयायी समझा जाता हो।				 | 
			
			
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					सहजन					 :
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					पुं०=सहिजन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सहजन्मा (न्मन्)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)					 :
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					वि० [सं०] १. किसी के साथ एक ही गर्भ से उत्पन्न। सहोदर। सदा (भाई आदि)। २. यमज। (सन्तान)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सहजपंथ					 :
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					पुं० [हि० सहज+पंथ] पूर्वी भारत में प्रचलित एक गोड़ीय वैष्णव संप्रदाय जो बौद्ध तथा हिन्दू तांत्रिकों से प्रभावित है। विशेष—यह संप्रदाय मूलतः बौद्धों के सहजयान का एक विकृत रूप है।				 | 
			
			
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					सहजवदी					 :
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					वि० [सं०] सहजवाद सम्बन्धी। सहजवाद का। पुं० वह जो सहजवाद का अनुयायी हो।				 | 
			
			
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					सहजवाद					 :
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					पुं० [सं०] सहज पंथ या मत या सिद्धान्त।				 | 
			
			
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					सहजस्थान					 :
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					पुं० [सं०] जन्म-कुंडली में का तीसरा घर, जिससे इस बात का विचार होता है कि किसी के कितने भाई या बहनें होगीं।				 | 
			
			
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					सहजात					 :
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					वि० [सं०] १. जो किसी के साथ उत्पन्न हुआ हो। २. परस्पर वे जो एक ही माता-पिता से उत्पन्न हुए हों। (कान्जेनिटल)। ३. यमज। पुं० सगा भाई। सहोदर।				 | 
			
			
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					सहजाधिनाथ					 :
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					पुं० [सं०] जन्म-कुंडली के सहज स्थान (तीसरे घर) का अधिपति ग्रह।				 | 
			
			
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					सहजानंद					 :
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					पुं० [सं० सहज+आनन्द] वह आनन्द या सुख जो योगियों को सहजावस्था में पहुँच जाने पर मिलता है।				 | 
			
			
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					सहजानि					 :
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					स्त्री० [सं०] पत्नी। भार्या। जोरू।				 | 
			
			
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					सहजारि					 :
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					पुं० [सं०]=सहज शत्रु।				 | 
			
			
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					सहजार्श					 :
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					पुं० [सं०] ऐसा अर्श या बवासीर (रोग) जिसके मस्से कठोर पीले रंग के और अंदर की ओर मुँहवाले हों (वैद्यक)।				 | 
			
			
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					सहजावस्था					 :
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					स्त्री० [सं० सहज+अवस्था] योग-साधना में मन की वह अवस्था जिसमें वह पूर्ण रूप से सहज-शून्य (देखें) या इच्छा ज्ञान, विकार आदि से बिलकुल रहित हो जाता है।				 | 
			
			
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					सहजिया					 :
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					पुं० दे० ‘सहजपंथी’।				 | 
			
			
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					सहजीवन					 :
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					पुं० [सं०] १. सह देशों और राष्ट्रों के लोगों का आपस में मिल-जुलकर शांतिपूर्वक रहना और युद्ध आदि से बचना। (को-एग्जिस्टेन्स)। २. वनस्पति विज्ञान में अलग-अलग प्रकार के दो पेड़-पौधों (या एक पौधे और एक जीव) का इस प्रकार सटकर या एक दूसरे पर आश्रित और स्थित होकर रहना कि दोनों का एक दूसरे से पोषण हो (सिम्बायोसिस)। जैसा—मूंगा और उसके साथ रहनेवाला समुद्री जीव।				 | 
			
			
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					सहजीवी (विन्)					 :
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					वि० [सं०] किसी के साथ रहकर जीवन बितानेवाला विशेष दे० ‘सहजीवन’।				 | 
			
			
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					सहजेंद्र					 :
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					पुं० [सं०] ‘सहजाधिनाथ’ (दे०)।				 | 
			
			
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					सहजै					 :
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					अव्य० [हि० सहज] बहुत सहज में। आसानी से। अनायास।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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