शब्द का अर्थ
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					सिद्धा					 :
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					स्त्री० [सं० सिद्ध-टाप्] १. सिद्ध की स्त्री। देवांगना। २. एक योगिनी। ३. चन्द्रशेखर के मत से आर्याछन्द का १ ५वाँ भेद जिसमें १ ३गुरु और ३१ लघु होते हैं। ४. ऋद्धि नामक औषधि।				 | 
			
			
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					सिद्धाई					 :
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					स्त्री० [सं० सिद्ध+हिं० आई] सिद्ध होने की अवस्था, गुण या भाव। सिद्धता।				 | 
			
			
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					सिद्धांगना					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] सिद्ध नामक देवताओं की स्त्रियाँ।				 | 
			
			
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					सिद्धाग्नि					 :
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					[सं० सिद्ध+अग्नि] १. खूब जलती हुई अग्नि। २. ऐसी पवित्र अग्नि जो दूसरों को भी पवित्र और शुद्ध कर दे।				 | 
			
			
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					सिद्धांजन					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का कल्पित अंजन जिसके विषय में यह माना जाता है कि इसे आँख में लगा लेने से भूमि के नीचे की वस्तुएँ (गड़े खजाने आदि) भी दिखाई देने लगती हैं।				 | 
			
			
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					सिद्धांत					 :
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					पुं० [सं० सिद्ध+अंत, ब० स०] १. किसी विषय का वह अंत अर्थात अंतिम निर्णय या निश्चय जो पूरी तरह से ठीक सिद्ध या प्रमाणित हो चुका हो और इसलिए जिसमें किसी प्रकार के परिवर्तन के लिए अवकाश न रह गया हो। २. किसी विषय में तर्क-वितर्क, विचार-विमर्श आदि के उपरांत निश्चित किया हुआ ऐसा मत जो सभी दृष्टियों से ठीक माना जाता हो। असूल। उसूल। (प्रिंसिपुल) ३. कला, विज्ञान, शास्त्र आदि के संबंध में ऐसी कोई मूल बात या मत जो किसी विद्वान द्वारा प्रतिपादित या स्थापित हो और जिसे बहुत से लोग ठीक मानते हैं। उपपत्ति। (थिअरी) ४. धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि क्षेत्रों में वे सुविचारित तत्त्व जिनका प्रचलन किसी विशिष्ट वर्ग में प्रायः सर्वमान्य होता है। मत। (डाक्ट्रिन) ५. कोई ऐसा ग्रन्थ जिसमें उक्त प्रकार की बातें या मत निरूपित हों। जैसे—सूर्य-सिद्धांत। ६. साधारण बोलचाल में किसी बात या विषय का तत्वार्थ या साराँश। मतलब की या सारभूत बात।				 | 
			
			
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					सिद्धांत-वाद					 :
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					पुं० [सं० सिद्धांत√वद् (बोलना)+घञ्] यह विचार प्रणाली कि अपने सिद्धांत का दृढ़तापूर्वक पालन करना चाहिए।				 | 
			
			
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					सिद्धांत-वादी (दिन्)					 :
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					वि० [सं० सिद्धांत√वद् (कहना)+णिनि] सिद्धांतवाद संबंधी। पुं० वह जो अपने मान्य सिद्धांतों के अनुसार चलता हो।				 | 
			
			
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					सिद्धांतज्ञ					 :
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					वि० [सं० सिद्धांत√ज्ञा (जानना)+क] सिद्धांत की बात जानने वाला। तत्वज्ञ। विद्वान। २. दे० ‘सिद्धांतवादी’।				 | 
			
			
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					सिद्धांताचार					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] तांत्रिको का आचार अर्थात एकाग्र चित्त से शक्ति की उपासना करना।				 | 
			
			
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					सिद्धांतित					 :
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					भू० कृ० [सं० सिद्धांत+इतच्] तर्क आदि के द्वारा प्रमाणित। साबित।				 | 
			
			
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					सिद्धांती					 :
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					वि० [सं० सिद्धांत] १. शास्त्रों आदि के सिद्धांत जानने वाला। २. अपने सिद्धांत पर दृढ़ रहने वाला। पं० तर्क शास्त्र का ज्ञाता या पंडित।				 | 
			
			
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					सिद्धांतीय					 :
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					वि० [सं० सिद्धांत+छ+ईय] सिद्धांत-संबंधी।				 | 
			
			
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					सिद्धान्न					 :
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					पुं० [सं० कर्म० स०] पकाया हुआ अन्न। जैसा—भात, रोटी आदि।				 | 
			
			
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					सिद्धापगा					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] १. आकाशगंगा। २. गंगा नदी।				 | 
			
			
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					सिद्धापिका					 :
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					स्त्री० [सं०] जैनों की चौबीस देवियों में से एक जो अर्हता का आदेश कार्यान्वित करती है।				 | 
			
			
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					सिद्धांबा					 :
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					स्त्री० [सं० कर्म० स०] दुर्गा।				 | 
			
			
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					सिद्धारि					 :
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					पु० [सं० ब० स०] एक प्रकार का मंत्र।				 | 
			
			
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					सिद्धार्थ					 :
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					वि० [सं० ब० स०] जिसका अर्थ अर्थात उद्देश्य या कामनाएँ पूर्ण हो चुकी हों। सफल मनोरथ। पूर्णकाम। पुं० १. गौतम बुद्ध का एक नाम। २. स्कंद का कार्तिकेय का एक अनुचर। ३. ज्योतिष में, साठ संवत्सरों में से एक। ४. महावीर स्वामी के पिता। (जैन)				 | 
			
			
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					सिद्धार्थक					 :
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					पुं० [सं० सिद्धार्थ+कन्] १. श्वेत सर्षप। सफेद सरसों। २. एक प्रकार का मरहम।				 | 
			
			
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					सिद्धार्था					 :
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					स्त्री० [सं० सिद्धार्थ-टाप्] १. जैनों के चौथे अर्हत की माता का नाम। २. सफेद सरसों।				 | 
			
			
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					सिद्धासन					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] ८४ आसनों में से एक। (हठ योग)				 | 
			
			
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