शब्द का अर्थ
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					सुषि					 :
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					स्त्री० [सं० सु√सो (विनाश करना)+कि बाहु०√शुष् (सोखना)+इनिश=पृषो० स०] [भाव० सुषित्व] १. छिद्र। छेद। सूराख। २. शरीर अथवा किसी तल पर के वे छोटे—छोटे छेद जिसमें से होकर तरल पदार्थ अन्दर पहुँचते या बाहर निकलते हैं।				 | 
			
			
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					सुषिक					 :
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					पुं० [सं० सुषि+कन्] शीतलता। ठंढक। वि० ठंढा। शीतल।				 | 
			
			
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					सुषिम					 :
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					वि० पुं०=सुषीम।				 | 
			
			
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					सुषिर					 :
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					वि० [सं०√शुष् (शोषण करना)+किरच् श=स पृषो०] छेदों या सूराखों से भरा हुआ। पुं० १. छेद। २. दरार। ३. फूँककर बजाया जानेवाला बाजा। ४. वायु—मंडल। ५. अग्नि। ६. लकड़ी। ७. बाँस। ८. लौंग। ९. चूहा।				 | 
			
			
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					सुषिरच्छेद					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार की वंशी।				 | 
			
			
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					सुषिरत्व					 :
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					पुं० [सं० सुषिर+त्व] दे० ‘छिद्रलता’।				 | 
			
			
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					सुषिरा					 :
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					स्त्री० [सं० सुषिर–टाप्] १. कलिका। विद्रुम लता। २. दरिया। नदी।				 | 
			
			
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