शब्द का अर्थ
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					स्पर्श					 :
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					पुं० [सं०] [भू० कृ० स्पर्शित, स्पृष्ट] १. त्वचा का वह गुण जिससे छूने, दबने आदि का अनुभव होता है। २. एक वस्तु के तल का दूसरी वस्तु के तल से सटना या छूना (टच)। ३. व्याकरण के उच्चारण करते समय जीभ कुछ ऊपर उठकर और तालु को स्पर्श करके बहुत थोड़े समय के लिए श्वास रोक देती है। (‘क’ से ‘म’ तक के व्यंजनों का उच्चारण इसी प्रयत्न से होता है)। ४. ग्रहण के समय सूर्य अथवा चन्द्रमा पर छाया पडने लगना। ग्रहण का आरंभ। ‘मोक्ष’ का विपर्याय। ५. संभोग का एक प्रकार का आसन या रति-बंध। ६. दान। ७. वायु। हवा। ८. कष्ट। पीड़ा।				 | 
			
			
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					स्पर्श-ग्राह्य					 :
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					वि० [सं०] [भाव० स्पर्श-ग्राह्यता] स्पर्श द्वारा जिसे जाना तथा समझा जाता हो। (टैक्टाइल)				 | 
			
			
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					स्पर्श-जन्य					 :
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					वि० [सं०] १. स्पर्श के परिणाम स्वरूप होनेवाला। जैसे–स्पर्श जन्य सुख। २. छुतहा। संक्रामक।				 | 
			
			
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					स्पर्श-मणि					 :
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					पुं० [सं०] पारस-पत्थर।				 | 
			
			
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					स्पर्श-रेखा					 :
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					स्त्री० [सं०] ज्यामिति में वह सरल रेखा, जो किसी वृत्त को किसी एक विन्दु पर स्पर्श करती हुई (बिना उस वृत्त को कहीं से काटे) एक ओर से दूसरी ओर निकल आती है। (टैनजेन्ट)				 | 
			
			
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					स्पर्श-संघर्षी (र्षिन्)					 :
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					वि० [सं०] शब्दों के उच्चारण में होनेवाला प्रयत्न। जिसमें पहले श्वास नली के साथ जीभ का थोड़ा स्पर्श और तब कुछ संघर्ष होता है। (एफ्रिकेट) जैसे–च् या ज् का उच्चारण।				 | 
			
			
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					स्पर्श-संचारी (रिन्)					 :
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					पुं० [सं०] शुक्र रोग का एक भेद।				 | 
			
			
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					स्पर्श-हानि					 :
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					स्त्री० [सं०] शूक रोग में रुधिर के दूषित होने के फलस्वरूप लिंग के चमड़े में स्पर्श-ज्ञान न रह जाना।				 | 
			
			
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					स्पर्श–कोण					 :
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					पुं० [सं०] ज्यामिति में वह कोण जो किसी वृत्त पर खींची हुई स्पर्श रेखा के कारण उस वृत्त और स्पर्श रेखा के बीच में बनता है।				 | 
			
			
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					स्पर्श–दिशा					 :
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					स्त्री० [सं०] वह दशा जिधर से सूर्य या चन्द्रमा को ग्रहण लगा हो या लगने का हो। चन्द्रमा या सूर्य पर ग्रहण की छाया आने अर्थात् स्पर्श का आरम्भ होने की दशा।				 | 
			
			
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					स्पर्शतन्मात्र					 :
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					पुं० [सं०] स्पर्श भूत का आदि, अमिश्र और सूक्ष्म रूप। दे० ‘तन्मात्र’।				 | 
			
			
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					स्पर्शता					 :
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					स्त्री० [सं०] स्पर्श का धर्म या भाव। स्पर्शत्व।				 | 
			
			
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					स्पर्शन					 :
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					पुं० [सं०] १. स्पर्श करने या छूने की क्रिया या भाव। २. देने की क्रिया। दान। ३. लगाव। सम्बन्ध। ४. वायु। हवा।				 | 
			
			
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					स्पर्शना					 :
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					स्त्री० [सं०] छूने की शक्ति या भाव।				 | 
			
			
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					स्पर्शनीय					 :
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					वि० [सं०] जिसे स्पर्श किया या छुआ जा सके। स्पृश्य।				 | 
			
			
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					स्पर्शनेंद्रिय					 :
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					स्त्री० [सं०] वह इन्द्रिय जिससे स्पर्श किया जाता है। छूने की इन्द्रिय। त्वक्।				 | 
			
			
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					स्पर्शा					 :
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					स्त्री० [सं०] दुश्चरित्रा स्त्री। छिनाल। पुंश्चली।				 | 
			
			
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					स्पर्शाक्रामक					 :
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					वि० [सं०] स्पर्श होने पर आक्रमण करनेवाला। संक्रामक। छुतहा।				 | 
			
			
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					स्पर्शाज्ञ					 :
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					वि० [सं०] जिसे स्पर्श की अनुभूति न होती हो।				 | 
			
			
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					स्पर्शास्पर्श					 :
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					पुं० [सं०] १. स्पर्श और अस्पर्श। छूना या न छूना। २. छूआछूत का भाव।				 | 
			
			
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					स्पर्शिक					 :
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					वि० [सं०] १. स्पर्श करनेवाला। २. जिसे छूने से ज्ञान प्राप्त होता है। पुं० वायु। हवा।				 | 
			
			
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					स्पर्शी (शिन्)					 :
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					वि० [सं०] स्पर्श करनेवाला। छूनेवाला। जैसे–हृदय-स्पर्शी।				 | 
			
			
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					स्पर्शेन्द्रिय					 :
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					स्त्री० [सं०] वह इन्द्रिय जिससे स्पर्श का ज्ञान होता है। त्वचा। चमड़ा।				 | 
			
			
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					स्पर्शोपल					 :
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					पुं० [सं०] पारस पत्थर। स्पर्श-मणि।				 | 
			
			
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