शब्द का अर्थ
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					स्याह					 :
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					वि० [फा०] काला। कृष्ण वर्ण। पुं० काले रंग का घोड़ा।				 | 
			
			
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					स्याह-कलम					 :
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					पुं० [फा०] मुगल चित्रशैली के एक प्रकार के बिना रंग भरे रेखाचित्र जिनमें एक एक बाल तक अलग-अलग दिखाया जाता है और होठों, आँखों और हथेलियों में नाममात्र की और बहुत हलकी रंगत रहती है (लान ड्राइंग)।				 | 
			
			
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					स्याह-कांटा					 :
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					पुं० [फा० स्याह+हिं० काँटा] किंगरई नाम का कटीला पौधा। दे० ‘किंगरई’।				 | 
			
			
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					स्याह-गोश					 :
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					वि० [फा०] काले कानवाला। जिसके काम काले हों। पुं० बन-बिलाव नामक जंगली जंतु।				 | 
			
			
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					स्याह-जबान					 :
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					पुं० [फा० स्याह+जबान] वह हाथी या घोड़ा जिसकी जबान स्याह या काली हो। (ऐसे जानवर ऐबी समझे जाते हैं)।				 | 
			
			
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					स्याह-जीरा					 :
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					पुं० [फा०स्याह+हिं० जीरा] काला जीरा।				 | 
			
			
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					स्याह-तालू					 :
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					पुं० [फा० वह हाथी या घोड़ा जिसका स्याह+हि.तालू] तालू बिलकुल स्याह या काला हो। ऐसे हाथी-घोड़े ऐसी समझे जाते हैं।				 | 
			
			
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					स्याह-दिल					 :
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					वि० [फा०] दिल का काला। खोटा। दुष्ट।				 | 
			
			
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					स्याह-भूरा					 :
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					वि० [फा०स्याह+हिं०भूरालू] काला (रंग)।				 | 
			
			
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					स्याहपोश					 :
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					पुं० [फा०] वह व्यक्ति जिसने शोक या मातम मनाने के उद्देश्य से काले वस्त्र पहने हों (मुसलमान)।				 | 
			
			
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					स्याहा					 :
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					स्त्री० [फा०] १. स्याह अर्थात् काले होने की अवस्था, गुण या भाव। कालापन। कालिमा। मुहावरा-स्याही जाना=बेलों का कालापन जाना। जवानी बीतना और बुढ़ापा आना। स्याही छाना=चेहरे का रंग काला पडना। २. कालिख। कलौंछ। क्रि० –प्र०–पोतना।–लगाना। ३. वह प्रसिद्ध रंगीन तरल अथवा कुछ गाढ़ा पदार्थ,जो लिखने या कपड़े,कागज आदि छापने के काम में आता है। रोशनाई। (इंक)। विशेष-स्याही यद्यपि निरुक्ति के विचार से काली ही होगी,पर लोक व्यवहार में नीली, लाल, हरी आदि स्याहियाँ भी होती है। ४. कड़ुए तेल के धुएँ से पारा हुआ एक प्रकार का काजल जिससे शरीर के अंगों में गोदना गोदते हैं। स्त्री०=साही (जंतु)।				 | 
			
			
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					स्याही-चूस					 :
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					पुं० [हि.]=सोख्ता (कागज)।				 | 
			
			
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					स्याही-सोख					 :
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					पुं० [हिं०] =सोख्ता (कागज)।				 | 
			
			
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