शब्द का अर्थ
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अश्र :
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पुं० [सं० √अश्(व्याप्ति)+रक] १. आँसू। २. रक्त। |
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समानार्थी शब्द-
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अश्रद्ध :
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वि० [सं० न० ब०] जिसमें श्रद्धा या विश्वास का अभाव हो। श्रद्धा न करने या न रखनेवाला। |
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अश्रद्धा :
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स्त्री० [सं० न० त०] किसी (विशिष्ट) के प्रति श्रद्धा या पूज्य भाव न होने की अवस्था। श्रद्धाहीनता। |
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अश्रद्धेय :
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वि० [सं० न० त०] जो श्रद्धेय न हो। जिसके प्रति श्रद्धा न हो सकती हो। |
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अश्रप :
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पुं० [सं० अश्र√पा(पीना)+क] राक्षस। वि० अश्र या रक्त पीनेवाला। रक्तपायी। |
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अश्रय :
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पुं० [सं०√श्रि (सेवा)+अच्, न० त०] राक्षस। |
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अश्रवण :
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वि० [सं० न० ब०] जिसे सुनाई न पड़ता हो। बहरा। पुं० १. [न० त०] बहरापन। २. [न० ब०] साँप। |
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अश्रांत :
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वि० [सं० न० त०] १. जो श्रांत या थका हुआ न हो। २. काम के बीच में विश्राम न करने वाला। ३. (काम) जिसके बीच में विश्राम या विराम न हो। |
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अश्राव्य :
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वि० [सं० न० त०] १. जो किसी के सुनने के योग्य न हो। २. जो किसी को सुनाने ये योग्य न हो। पुं० दे० ‘स्वगत कथन’। |
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अश्रि :
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स्त्री० [सं०√अश् (संघात)+क्रि] १. घर का कोना। २. अस्त्र या शस्त्र की नोक। |
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अश्रीक :
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वि० [सं० न० ब० कप्] १. जिसकी या जिसमें श्री न हो या न रह गई हो। श्री-हीन। २. भाग्यहीन। अभागा। |
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अश्रु :
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पुं० [सं०√अश (व्याप्ति)+क्रुन्] १. आँखो में बहनेवाला तरल पदार्थ आँसू। २. साहित्य में, हर्ष, शोक, क्रोध, भय आदि के समय आँखों से आँसू बहना जो सात्त्विक अनुभवों के अंतर्गत माना गया है। |
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अश्रु-गैस :
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स्त्री० [सं० अश्रु+अं०गैस] शरीर के अंदर माथे के पास की वे ग्रन्थियाँ जो अश्रु या आँसू उत्पन्न करती हैं। (लैक्रिमल ग्लैड) |
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अश्रु-ग्रथि :
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स्त्री० [ष० त०] रासायनिक क्रिया से तैयार की जानेवाली एक गैस जिससे आँखों में जलन उत्पन्न होती है तथा अत्यधिक आँसू निकलने लगते हैं। (टीपर गैस)। |
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अश्रु-जल :
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पुं० [ष० त०] आँसू। |
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अश्रु-पात :
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पुं० [ष० त०] आँखों से आँसू गिरना या बहना। रोना। |
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अश्रु-मुख :
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वि० [ब० स०] जिसके मुख पर आँसू बहते हों। पुं० मंगल को अपने उदय नक्षत्र से १॰वें, ११वें और १२वें स्थान पर टेढ़ा चलना। (ज्यो०) |
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अश्रुत :
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वि० [सं० न० त०] १. (कथन) जो पहले सुनने में न आया हो। २. जिसने सुना न हो। |
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अश्रुत-पूर्व :
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वि० [सं० श्रुत-पूर्व, सुप्सुपा, स० अश्रुतपूर्व, न० त०] १. जो पहले कभी न सुना गया हो। २. विचित्र। अनोखा। |
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अश्रुति :
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वि० [सं० न० ब०] १. न सुननेवाला। २. जिसकी श्रवणेन्द्रियाँ न हों। स्त्री० [न० त०] १. न सुनना। २. भूल जाना। विस्मृति। |
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अश्रुतिघर :
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वि० [न० त०] १. वेदों को न जाननेवाला। २. ध्यानपूर्वक न सुनने वाला। ३. स्मरण न रखनेवाला। |
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अश्रेय (स्) :
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वि० [सं० न० ब०] जो श्रेय न हो फलतः हीन। पुं० [न० त०] १. श्रेय अर्थात् कल्याण का अभाव। अकल्याण। २. दुःख। ३. बुराई। |
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अश्रौत :
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लि० [सं० न० त०] जो श्रुति (वेदों आदि) में न हो या उसके विपरीत हो। |
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