शब्द का अर्थ
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इस :
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सर्व० [सं० एष] हिंदी के ‘यह’ सर्वनाम का वह रूप जो उसे विभक्ति लगने से पहले प्राप्त होता है और जो (क) समय, स्थान आदि के विचार से समीपस्थ (ख) प्रसंग के विचार से प्रस्तुत अथवा (ग) उल्लेख के विचार से कुछ ही पहले कही या निर्दिष्ट की हुई बात अथवा वस्तु का वाचक होता है। जैसे—इसका, इसको, इसने आदि। विशेष—जब इसका प्रयोग सार्वनामिक विशेषण के रूप में होता है तब इसका प्रयोग ऐसे विशेष्य के पहले होता है जिसके आगे विभक्ति होती है। जैसे—(क) इस जगह का नाम हम नहीं जानते, (ख) इस आदमी को यहाँ से हटा दो। |
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इसक :
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पुं० =इश्क।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इसपंज :
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पुं० =इस्पंज। |
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इसपात :
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पुं० =इस्पात। |
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इसबगोल :
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पुं० [फा० यशबगोल] १. एक पौधा जिसके दाने या बीज प्रायः सफेद रंग के तथा बहुत छोटे-छोटे होते हैं और पेट का विकार दूर करने के लिए खाये जाते हैं। २. उक्त के दाने। |
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इसर :
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पुं० =ईश्वर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इसरगोल :
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पुं०=इसबगोल। |
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इसरगोल :
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पुं०=इसबगोल। |
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इसराज :
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पुं० [?] सारंगी की तरह का एक बाजा। |
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इसरार :
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पुं० [अ०] किसी काम या बात के लिए किया जानेवाला आग्रह। जिद। हठ। पुं० [अ० असरार, अ० सर-भेद का बहु] भेद। रहस्य। |
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इसरी :
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वि० =ईश्वरीय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इसलाम :
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पुं० =इस्लाम। |
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इसलाह :
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पुं० =इस्लाह। |
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इसाई :
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वि० दे० ‘मसीही’। |
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इसान :
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पुं० =ईशान। |
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इसी :
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सर्व० [हं० इस+ई०प्रत्यय] हिं० ‘इस’ का वह रूप जो उस पर पूरा जोर देने के लिए बनता है और जिसका अर्थ होता है-ठीक यही या बिलकुल यही। जैसे—(क) इसी आदमी ने इस लड़के को मारा था। (ख) मैं इसी लिए वहाँ नहीं गया था। |
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इसीका :
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स्त्री० दे० ‘इषीका’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इसे :
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सर्व० [सं०एषः, हिं० इस] इस का कर्मकारक और संप्रदान कारक रूप, जिसका अर्थ होता है-इसको। जैसे—इसे मारो मत, बंद करके रख दो। |
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इसै :
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अव्य० [सं०ईदृश] इस प्रकार। ऐसे। उदाहरण—सुग्रीव सेन नै मेघ पुहुप समवेग बलाहक इसै वहंति।—प्रिथीराज। |
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इसौ :
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वि० [हिं० ऐसा का राज रूप] [स्त्री० इसी]—ऐसा (इस प्रकार का)। उदाहरण—आम्हाँ वासना वसी इसी।—प्रिथीराज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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इस्तक़बाल :
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पुं० [अ० अस्तिकबाल] १. स्वागत। २. व्याकरण में, भविशष्यत् काल। |
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इस्तगासा :
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पुं० [अ०] १. न्याय के लिए दी जानेवाली प्रार्थना। फरियाद। २. वह प्रार्थना-पत्र जो किसी पर फौजदारी का मुकदमा चलाने के लिए न्यायालय में दिया जाता है। |
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इस्तमरारी :
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वि० [अ०] १. स्थायी। जैसे—इस्तमरारी पट्टा, इस्तमरारी बंदोबस्त आदि। २. दे० ‘दवामी’। |
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इस्तमरारी पट्टा :
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पुं० दे०‘दवामी पट्टा’। |
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इस्तमरारी बंदोबस्त :
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पुं० दे०‘दवामी पट्टा’। |
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इस्तरी :
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स्त्री० [सं० स्तरी-तह करनेवाली] १. गरम लोहे से नये धुले या सिले हुए कपड़ों की तह जमाने या बैठाने का काम। २. कपडों की तह बैठाने का एक प्रकार का उपकरण जो पान के आकार के डिब्बे के रूप में होता है। स्त्री०=स्त्री। |
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इस्तिंगी :
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स्त्री० [अ० स्ट्रिंग] जहाजों की वह रस्सी जिससे उनके पाल के किनारे ताने जाते हैं। |
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इस्तिंजा :
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पुं० [अ०] पेशाब करने के उपरांत मिट्टी के ढेले से लिगेंद्रिय को पोछने की क्रिया जो मुसलमानों में प्रचलित है। |
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इस्तीफा :
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पुं० [अ०] त्याग-पत्र। |
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इस्तेमाल :
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पुं० [अ० इस्तऽमाल] किसी वस्तु आदि को काम में लाने का भाव। उपयोग। प्रयोग। |
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इस्त्री :
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स्त्री०१. =इस्तरी। २=स्त्री।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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इस्पंज :
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पुं० [अ० स्पांज] कई प्रकार के समुद्री कीड़ों के उपनिवेश या बस्ती का वह ढाँचा जो उन कीड़ो के निकल जाने पर कोमल तंतुओं के पिंड के रूप में बना रहता है और जिसमें बहुत छोटे-छोटे छेद होते है। इसकी विशेषता यह है कि यह जल या दूसरे तरल पदार्थों पर कपड़कर उन्हें सोख लेता है और जब इसे दबाया जाता है तब वह तरल पदार्थ इसमें से बाहर निकल जाता है। इसी लिए स्नान आदि के बाद इसका उपयोग जल सुखाने के लिए होता है। |
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इस्पात :
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पुं० [सं० अपस्पत्र, पुर्त्त०स्पेडा] [वि० इस्पाती] कुछ विशेष प्रक्रियाओं से साफ करके तैयार किया हुआ एक प्रकार का बढ़िया लोहा जो अपेक्षया अधिक कड़ा और कुछ लचीला होता है। (स्टील)। |
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इस्पिरिट :
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स्त्री० [अं० स्पिरिट] एक प्रकार का रासायनिक तरल पदार्थ जो आग के सामीप्य या स्पर्श से ही भभककर जल उठता है। |
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इस्म :
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पुं० [अ०] १. नाम। २. संज्ञा। |
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इस्माइली :
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पुं० [इब] मुसलमानों का एक संप्रदाय। |
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इस्लाम :
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पुं० [अ०] मुहम्मद साहब का चलाया हुआ मुसलमानी धर्म। |
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इस्लाह :
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स्त्री० [अ०] किसी काम में होनेवाली त्रुटियाँ, भूलों आदि को दूर करना। सुधारना। जैसे—उर्दू के नौसिखुए कवि पहले अपनी रचनाएँ उस्ताद को दिखाकर उनसे इस्लाह लेते हैं। |
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