शब्द का अर्थ
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उभय :
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वि० [सं० उभ+अयच्] जिन दो का उल्लेख हो रहा हो, वे दोनों। जैसे—उभय पक्षों ने मिलकर यह निश्चय किया है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उभय :
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वि० [सं० उभ+अयच्] जिन दो का उल्लेख हो रहा हो, वे दोनों। जैसे—उभय पक्षों ने मिलकर यह निश्चय किया है। |
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उभय-चर :
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वि० [सं० उभय√चर्(चलना)+ट] जल और स्थल दोनों में रहनेवाला। (जीव, जंतु)। |
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समानार्थी शब्द-
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उभय-चर :
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वि० [सं० उभय√चर्(चलना)+ट] जल और स्थल दोनों में रहनेवाला। (जीव, जंतु)। |
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उभय-मुखीवि :
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१. =उभयतो-मुख। २. =गर्भवती। |
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समानार्थी शब्द-
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१. =उभयतो-मुख। २. =गर्भवती। |
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उभय-लिंग (नी) :
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वि० [सं० ब० स०] १. जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों के चिन्ह्र या लक्षण हों। २. (व्याकरण में ऐसा शब्द) जो दोनों लिगों के समान रूप से प्रयुक्त होता हो। |
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वि० [सं० ब० स०] १. जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों के चिन्ह्र या लक्षण हों। २. (व्याकरण में ऐसा शब्द) जो दोनों लिगों के समान रूप से प्रयुक्त होता हो। |
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उभय-विध :
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वि० [सं० ब० स०] दोनों प्रकारों या विधियों से संबंध रखनेवाला। दोनों प्रकार का। |
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समानार्थी शब्द-
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वि० [सं० ब० स०] दोनों प्रकारों या विधियों से संबंध रखनेवाला। दोनों प्रकार का। |
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उभय-व्यंजन :
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वि० [सं० ब० स०] जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों के चिन्ह या लक्षण वर्त्तमान हों। उभय-लिंगी। |
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वि० [सं० ब० स०] जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों के चिन्ह या लक्षण वर्त्तमान हों। उभय-लिंगी। |
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उभय-संकट :
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पुं० [ष० त०] ऐसी स्थिति जिसमें दोनों ओर संकट की संभावना हो। धर्म-संकट। |
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पुं० [ष० त०] ऐसी स्थिति जिसमें दोनों ओर संकट की संभावना हो। धर्म-संकट। |
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उभय-संभव :
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पुं० [ष० त०] ऐसी स्थिति जिसमें दोनों तरह की बातें हो सकती हो। वि०=उभय-संकट। |
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पुं० [ष० त०] ऐसी स्थिति जिसमें दोनों तरह की बातें हो सकती हो। वि०=उभय-संकट। |
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उभयतः :
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क्रि० वि० [सं० उभय+तसिल्] दोनों ओर से। दोनों पक्षों से। |
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क्रि० वि० [सं० उभय+तसिल्] दोनों ओर से। दोनों पक्षों से। |
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उभयतो-मुख :
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वि० [सं० ब० स०] [स्त्री०उभयतो-मुखी] १. जिसके दोनों ओर मुँह हों। २. दोनों ओर अथवा दो विभिन्न दिशाओं में गति,नति या प्रवृत्ति रखनेवाला। |
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वि० [सं० ब० स०] [स्त्री०उभयतो-मुखी] १. जिसके दोनों ओर मुँह हों। २. दोनों ओर अथवा दो विभिन्न दिशाओं में गति,नति या प्रवृत्ति रखनेवाला। |
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उभयवादी (दिन्) :
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वि० [सं० उभय√वद् (बोलना)+णिनि] १. दोनों ओर से बोलने या दोनों तरह की बातें कहनेवाला। २. (बाजा) जिसमें स्वर भी निकलता हो और ताल भी। |
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वि० [सं० उभय√वद् (बोलना)+णिनि] १. दोनों ओर से बोलने या दोनों तरह की बातें कहनेवाला। २. (बाजा) जिसमें स्वर भी निकलता हो और ताल भी। |
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उभयात्मक :
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वि० [सं० उभय-आत्मन्, ब० स० कप्] १. दोनों के योग से बना हुआ। जिसका संबंध दोनों से हो। २. दोनों प्रकारों या रूपों से युक्त। |
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वि० [सं० उभय-आत्मन्, ब० स० कप्] १. दोनों के योग से बना हुआ। जिसका संबंध दोनों से हो। २. दोनों प्रकारों या रूपों से युक्त। |
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उभयान्वयी (यिन्) :
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वि० [सं० उभय-अन्वय, स० त०+इनि] जिसका अन्वय दोनों ओर या दोनों से हो सके। (व्या) जैसे—काव्य में उभयान्वयी पद या शब्द। |
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वि० [सं० उभय-अन्वय, स० त०+इनि] जिसका अन्वय दोनों ओर या दोनों से हो सके। (व्या) जैसे—काव्य में उभयान्वयी पद या शब्द। |
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उभयार्थ :
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वि० [सं० उभय-अर्थ, ब० स०] १. जिसके दो या दोनों अर्थ निकलते हों। द्वयर्थक। २. अस्पष्ट (कथन या बात) |
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वि० [सं० उभय-अर्थ, ब० स०] १. जिसके दो या दोनों अर्थ निकलते हों। द्वयर्थक। २. अस्पष्ट (कथन या बात) |
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उभयालंकार :
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पुं० [सं० उभय-अलंकार, कर्म० स०] ऐसा अलंकार जिसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों का योग हो। |
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पुं० [सं० उभय-अलंकार, कर्म० स०] ऐसा अलंकार जिसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों का योग हो। |
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