शब्द का अर्थ
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					ऋण					 :
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					पुं० [सं०√ऋ (गमन)+क्त] [वि० ऋणी] १. वह धन जो किसी से कुछ समय के लिए उधार-स्वरूप लिया गया हो। ब्याज पर लिया हुआ धन आदि। कर्ज। (डेट)। मुहावरा-ऋण उतरना=ऋण या कर्ज पूरा चुकता हो जाना। ऋण चढ़ना =ऋणी या देनदार बनना। सिर पर कर्ज हो जाना। ऋण पटना=ऋण उतरना। २. वह कार्य या कृत्य जो किसी उपकार या लाभ के बदले में किसी के प्रति आवश्यक या कर्त्तव्य रूप से किया जाने को हो। वह जिसका दाय या दायित्व किसी पर हो। जैसे—देव-ऋण, पितृ-ऋण आदि। ३. साधारण बोल-चाल में, किसी का किया हुआ उपकार या एहसान। ४. गणित में, घटाने या बाकी निकालने का चिन्ह (-) । धन का विपर्याय। वि० खाते, गणित आदि में जो ऋण के पक्ष का हो। विशेष दे० ‘नहिक’।				 | 
			
			
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					ऋण-कर्ता (र्तृ)					 :
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					वि० [ष० त०] ऋण लेनेवाला।				 | 
			
			
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					ऋण-ग्रस्त					 :
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					वि० [तृ० त०] जिस पर ऋण या कर्ज हो। ऋण के भार से दबा हुआ।				 | 
			
			
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					ऋण-त्रय					 :
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					पुं० [ष० त०] देव-ऋण, ऋषि-ऋण और पितृऋण इन तीनों ऋणों का वर्ग या समूह।				 | 
			
			
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					ऋण-दाता (तृ)					 :
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					वि० [ष० त०] ऋण देनेवाला।				 | 
			
			
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					ऋण-दान					 :
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					पुं० [ष० त०] लिया हुआ ऋण चुकाना।				 | 
			
			
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					ऋण-दास					 :
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					पुं० [मध्य० स०] ऐसा दास जो उस व्यक्ति की दासता करता हो जिसने उसका सारा ऋण चुका कर उसे खरीदा हो।				 | 
			
			
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					ऋण-पक्ष					 :
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					पुं० [ष० त०] गणित, बही-खाते, लेखे आदि में वह पक्ष, विभाग या स्तंभ जिसमें किसी को दी हुई वस्तु, उसका मूल्य, तिथि विवरण आदि लिखा जाता है। (क्रेडिट साइट)				 | 
			
			
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					ऋण-पत्र					 :
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					पुं० [ष० त०] वह पत्र जिस पर ऋण देने और लेने की शर्ते लिखी हों। (डिबेंचर)				 | 
			
			
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					ऋण-मुक्त					 :
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					वि० [पं० त०] [भाव० ऋण-मुक्ति, ऋण-मोक्ष] जिसने ऋण चुका दिया हो। उऋण।				 | 
			
			
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					ऋण-मोक्षित					 :
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					पुं० [पं० त०] =ऋण-दास।				 | 
			
			
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					ऋण-लेख्य					 :
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					पुं० [ष० त०] ऋण-पत्र। तमस्सुक। दस्ताबेज।				 | 
			
			
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					ऋण-शुद्धि					 :
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					स्त्री० [ष० त०] =ऋण-शोधन।				 | 
			
			
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					ऋण-शोधन					 :
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					पुं० [ष० त०] लिया हुआ ऋण चुकाना।				 | 
			
			
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					ऋण-स्थगन					 :
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					पुं० [ष० त०] विधिक क्षेत्र में, उच्च न्यायालय या राज्य की वह आज्ञा जिसके अनुसार बैकों को यह अधिकार दिया जाता है कि वे लोगों का देन चुकाना कुछ समय के लिए स्थगित कर दें। (मॉरेटोरियम)				 | 
			
			
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					ऋणग्रस्तता					 :
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					स्त्री० [सं० ऋणग्रस्त+तल्-टाप्] ऋण-ग्रस्त होने की अवस्था या भाव। (इन्डेटेडनेस)				 | 
			
			
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					ऋणदायी (यिन्)					 :
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					वि० [सं० ऋण√दा (देना)+णिनि-युक्] ऋणदाता।				 | 
			
			
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					ऋणांतक					 :
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					पु० [सं० ऋण-अतंक, ष० त०] मंगल ग्रह, जो ऋण चुकाने में सहायक माना गया हो।				 | 
			
			
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					ऋणात्मक					 :
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					वि० [सं० ऋण-आत्मन्० ब० स०] =नहिक।				 | 
			
			
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					ऋणादान					 :
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					पुं० [सं० ऋण-आदान, ष० त०] दिया हुआ ऋण वापस मिलना।				 | 
			
			
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					ऋणार्ण					 :
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					पुं० [सं० ऋण-ऋण, मध्य० स०, वृद्धि] एक ऋण से मुक्त होने के लिए लिया जानेवाला दूसरा ऋण।				 | 
			
			
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					ऋणिक					 :
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					पुं० [सं० ऋण+ष्ठन्-इक] ऋणी।				 | 
			
			
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					ऋणिया					 :
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					वि०=ऋणी।				 | 
			
			
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					ऋणी (णिन्)					 :
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					वि० [सं० ऋण+इनि] १. जिसने किसी से ऋण लिया हो। कर्जदार। देनदार। अधमर्ण। २. जिस पर किसी का उपकार या एहसान हो। अनुगृहीत। उपकृत।				 | 
			
			
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