शब्द का अर्थ
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					ऋषि					 :
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					पुं० [सं०√ऋष् (गति)+इन्] १. वेद-मंन्त्रों का प्रकाश करनेवाले महापुरुष या मंत्र-द्रष्टा जो देवताओं, असुरों और मनुष्यों से भिन्न माने गये हैं। जैसे—अगस्त्य, अत्रि, वसिष्ठ आदि। २. आध्यात्मिक और भौतिक तत्त्वों का साक्षात्कार करनेवाला ज्ञानी, दूरदर्शी तथा त्यागी महापुरुष। ३. प्रकाश की किरण। ४. सात मुख्य ऋषियों के आधार पर ७ की संख्या का वाचक शब्द। (साहित्य)।				 | 
			
			
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					ऋषि कुमार					 :
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					पुं० [ष० त०] ऋषि का पुत्र या लड़का।				 | 
			
			
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					ऋषि-ऋण					 :
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					पुं० [ष० त०] हिंदू धर्म में तीन प्रकार के ऋणों में से एक जिससे मुक्त होने के लिए वेद आदि पढ़ने का विधान है।				 | 
			
			
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					ऋषि-कल्प					 :
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					वि० [ष० त०] ऋषि के समान पूज्य, विचारशील और सदाचारी। ऋषि-तुल्य। जैसे—ऋषि-कल्प दादा भाई नौरोजी।				 | 
			
			
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					ऋषि-कुल					 :
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					पुं० [ष० त०] वह आश्रम या विद्यालय जहाँ ब्रह्मचारियों को ऐसे ढंग से पढ़ाया-लिखाया और रखा जाता है कि वे आगे चलकर ऋषि-तुल्य हो सकें। गुरु-कुल।				 | 
			
			
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					ऋषि-कुल्या					 :
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					स्त्री० [ष० त०] एक प्राचीन नदी (महाभारत)।				 | 
			
			
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					ऋषि-गिरि					 :
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					पुं० [मध्य० स०] मगध का एक पर्वत।				 | 
			
			
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					ऋषि-चांद्रायण					 :
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					पुं० [ष० त० या मध्य० स०] एक प्रकार का चांद्रायण व्रत।				 | 
			
			
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					ऋषि-तर्पण					 :
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					पुं० [ष० त०] ऋषियों की तृप्ति के लिए उनके नामों पर किया जाने वाला जलदान या तर्पण।				 | 
			
			
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					ऋषि-पंचमी					 :
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					स्त्री० [ष० त०] भादों के शुक्ल पक्ष की पंचमी।				 | 
			
			
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					ऋषि-पत्तन					 :
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					पुं० [ष० त०] प्राचीन वाराणसी के पास का एक प्राचीन उपवन। (आधुनिक सारनाथ, जहाँ से गौतम बुद्ध ने धर्म-चक्र का प्रवर्त्तन किया था)				 | 
			
			
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					ऋषि-यज्ञ					 :
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					पुं० [मध्य० स०] ऋषियों के ऋण से मुक्त होने के लिए किया जानेवाला यज्ञ, अर्थात् वेदों का अध्ययन।				 | 
			
			
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					ऋषि-लोक					 :
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					पुं० [ष० त०] एक लोक जो सत्यलोक के पास माना गया है।				 | 
			
			
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					ऋषि-हृदय					 :
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					वि० [ब० स०] ऋषियों के समान शुद्ध और सरल हृदय। परम सज्जन और सदाचारी।				 | 
			
			
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					ऋषिक					 :
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					पुं० [सं० ऋषि+कन्] १. निम्न कोटि का ऋषि। २. एक प्राचीन जनपद। ३. उक्त प्रदेश का निवासी।				 | 
			
			
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