कच्चा/kachcha

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कच्चा  : वि० [सं० कच्चर=बुरा, प्रा० कच्छरो, सि० कचिरो, गुज० काजर, कचरो, मरा० कचरा, बँ० काँचा] [स्त्री० कच्ची] १. फलों, फसलों आदि के संबंध में, जो अभी अच्छी तरह बढ़कर काटने, तोड़ने या काम में लाने योग्य न हुआ हो। जो अभी पका न हो। अपक्व। जैसे—कच्चा आम, कच्चे दाने (अनाज के) आदि। २. खाद्य पदार्थ, जो अभी आग पर पकाया न गया हो अथवा जिसके ठीक तरह से पकने में अभी कुछ कसर हो और फलतः जो अभी खाने के योग्य न हुआ हो। अरंधित। जैसे—कच्चे चावल, कच्ची रोटी आदि। मुहावरा—किसी को कच्चा खा या चबा जाना=बहुत अधिक क्रोध या रोष में आकर ऐसी भाव-भंगी दिखलाना कि मानों अभी खा ही जायेंगे। ३. जो अभी आग पर या आग में रखकर अच्छी तरह पकाया या पक्का न किया गया हो। यों ही धूप आदि में सुखाया गया हुआ। जैसे—कच्ची ईट, कच्चा घड़ा आदि। ४. जिसमें अपेक्षित या उचित दृढ़ता, पक्वता अथवा पुष्टता का अभाव हो। जैसे—कच्ची दीवार, कच्चा धागा या सूत आदि। ५. जिसका अभी तक पूरा या यथेष्ट अबिवर्धन या विकास न हुआ हो। जो अभी पूर्णता या प्रौढ़ता तक न पहुँचा हो। जैसे—कच्ची उमर। कच्ची समझ। मुहावरा—कच्चा गिरना या जाना=आरंभिक अवस्था में ही गर्भपात या गर्भ-स्राव होना। ६. जो कुछ ही समय तक काम में आ सकता या बना रह सकता हो। जो टिकाऊ या स्थायी न हो। जैसे—कच्चा गोटा,कच्चा रंग। ७. जिसकी रचना अभी अस्थायी रूप से हुई हो और जो बाद में दृढ़ या पूर्ण किया जाने को हो। जैसे—कच्चा चिट्ठा, कच्ची सिलाई आदि। ८. जिसे पूर्णता तक पहुँचने के लिए अभी कुछ या कई प्रक्रियाओं की अपेक्षा हो। जैसे—कच्चा चमड़ा, कच्चा रेशम, कच्चा लोहा। ९. जो किसी तरह से ठीक, पूरा या प्रामाणिक न माना जा सकता हो। जैसे—कच्चा काम, कच्चा हाथ, कच्चा हिसाब। १॰. कला, विद्या आदि के संबंध में, जिसने किसी बात या विषय का अभी तक अच्छा अध्ययन या अभ्यास न किया हो अथवा जिसकी जानकारी अधूरी हो। जैसे—यह लड़का अभी हिसाब में कच्चा है। ११. जो प्रामाणिक या शिष्ट-सम्मत न हो। जैसे—ऐसी कच्ची बात मुँह से मत निकाला करो। मुहावरा—(किसी को) कच्ची-पक्की सुनाना=ऐसी बातें कहना जो शिष्ट सम्मत न हों। खरी-खोटी कहना। (कोई बात) कच्ची पड़ना=अप्रामाणिक, अविश्वासनीय या मिथ्या ठहरना। १२. जिसमें धैर्य,बल,साहस आदि का अभाव हो। जैसे—कच्चा दिल। १३. तौल आदि के संबंध में, जो सब जगह ठीक या मानक न माना जाय, बल्कि उससे कुच कम या हल्का हो और जिसका प्रचलन थोड़े क्षेत्र में होता हो। जैसे—कच्चा मन, कच्चा सेर। विशेष—अधिकतर अवस्थाओं में यह शब्द ‘पक्का’ का विपर्याय होता है और ‘पक्का’ की ही तरह भिन्न-भिन्न पदों और प्रसंगों में भिन्न-भिन्न प्रकार के अर्थ या आशय प्रकट करता है, जो उन पदों के अन्तर्गत देखे जा सकते हैं। पुं० १. ताँबें का एक प्रकार का पुराना छोटा सिक्का जो प्रायः पैसों की जगह चलता था। २. किसी काम, चीज या बात का खड़ा किया हुआ आरंभिक रूप। खाका। ढाँचा। ३. लेख या लेख्य का वह आरंभिक रूप जिसमें अभी काट-छाँट, परिवर्तन, परिवर्द्धन या संशोधन होने को हो। प्रालेख। मसौदा। ४. कपड़े आदि सीने के समय उनमें दूर-दूर की जानेवाली कमजोर और हलकी सिलाई जो बाद में काटकर निकाल दी जाती है। ५. भारतीय महाजनी ढंग से ब्याज या सूद लगाने के हिसाब में, वह अंक या संख्या जो प्रतिदिन और प्रति रुपये के हिसाब से स्थिर हो या हाथ लगे। पुं० [कच्च से अनु०] ऊपर और नीचे के जबड़ों के जोड़ जो कनपटी के पास होता है। मुहावरा—कच्चा बैठना=बेहोशी के समय या रोग के रूप में दाँतों पर दाँत इस प्रकार जमकर बैठना कि मुँह न खुल सके।
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कच्चा असामी  : पुं० [हिं० कच्चा+फा० असामी] १. वह असामी जिसे कुछ या थोड़े समय के लिए खेत जोतने बोने के लिए दिया गया हो। २. ऐसा व्यक्ति जो लेन-देन में खरा न हो। ३. अपनी बात में न रहनेवाला व्यक्ति।
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कच्चा कागज  : पुं० [हिं० कच्चा+अ० कागज] १. एक प्रकार का देशी कागज जो घोंटा हुआ नहीं होता। २. लेख्य, जिसका निबंधन (रजिस्टरी) न हुआ हो। ३. प्रालेख। मसौदा।
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कच्चा कोढ़  : पुं० [हिं०] १. खुजली। २. आतशक या गरमी नामक रोग।
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कच्चा माल  : पुं० [हिं०+अ०] कारखानों में काम आने वाले वे खनिज या वानस्पतिक पदार्थ, जो अपने आरंभिक या प्राकृतिक रूप में हों और जिन्हें मशीनों द्वारा ठीक करके या बनाकर उनसे दूसरी वस्तुएँ बनाई जाती हों। (रा मेटीरियल)।
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कच्चा-घड़ा  : पुं० [हिं०] वह घड़ा, जो आँवें में पकाया न गया हो, केवल धूप में सुखाया गया हो। मुहावरा—कच्चे घड़े में पानी भरना=ऐसा काम करना जो स्थायी न हो। (कच्चे घड़े में पानी भरने पर वह गल जाता है, जिससे घड़ा भी नष्ट होता है और पानी भी।)
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कच्चा-चिट्ठा  : पुं० [हिं०] १. वह विवरण या वृत्तांत जिसमें किसी व्यक्ति की गुप्त या छिपी हुई दुर्बलताएँ बतलाई गई हों, अथवा सब बातें ज्यों कि त्यों कही गई हों। २. आय-व्यय, हानि-लाभ आदि के विवरण का वह प्रारंभिक रूप जो अभी जाँचकर ठीक किया जाने को हो।
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कच्चापन  : पुं० [हिं० कच्चा+पन (प्रत्यय)] कच्चे होने की अवस्था, गुण या भाव। कचाई।
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