शब्द का अर्थ
			 | 
		
					
				| 
					कठोर					 :
				 | 
				
					वि० [सं०√कठ्+ओरन्] [भाव० कठोरता, स्त्री० कठोरा] १. (पदार्थ) जिसका तल इतना कड़ा हो कि सहज में दबाया या धँसाया न जा सके। जो दबाने से दबे नहीं। ‘कोमल’ या ‘मुलायम’ का विपर्याय। सख्त। २. (कार्य) जिसे पूरा करने में विशेष आयास, मनोयोग आदि की आवश्यकता हो। जो सहज में निबाहा न जा सके। कठिन। कड़ा। जैसे—कठोर परिश्रम। ३. (बात या व्यवहार) जो उग्र तथा कष्टदायक होने के कारण अप्रिय या असह्य हो। जैसे—कठोर दंड, कठोर वचन। ४. जिसका अनुसरण निर्वाह या पालन सहज में न हो सके। जैसे—कठोर नियम, कठोर व्रत। ५. (व्यक्ति अथवा उसका कार्य या मन) जिसमें उदारता, दया, प्रेम आदि कोमल तथा मानवोचित्त गुणों या विशेषताओं का अभाव हो। जैसे—कठोर व्यवहार, कठोर हृदय।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					कठोरता					 :
				 | 
				
					स्त्री० [सं० कठोर+तल्-टाप्] १. कठोर होने की अवस्था, गुण या भाव। कड़ापन। २. कार्य, व्यवहार आदि में होनेवाली कड़ाई। सख्ती।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					कठोरताई					 :
				 | 
				
					स्त्री०=कठोरता।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					कठोरपन					 :
				 | 
				
					पुं० =कठोरता।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
				| 
					कठोरीकरण					 :
				 | 
				
					पुं० [सं० कठोर+च्वि, ईत्व√कृ (करना)+ल्युट-अन] किसी कोमल वस्तु को कठोर करने या बनाने की क्रिया या भाव। कठोर करना या बनाना।				 | 
			
			
				 | 
				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 |