कपड़/kapad

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कपड़  : पुं० हिं० कपड़ा का संक्षिप्त रूप जो समस्त पदों में पूर्व पद के रूप में लगता है। जैसे—कपड़-गंध, कपड़-छान आदि।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
कपड़-कोट  : पुं० [हिं० कपड़+कोट (किला)] खेमा। तंबू।
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कपड़-खसोट  : पुं० [हिं० कपड़ा+खसोटना] [भाव० कपड़-खसोटी] दूसरों के कपड़े तक उतार या छीन लेनेवाला अर्थात् बहुत अधिक धूर्त्त और लोभी।
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कपड़-गंध  : स्त्री० [हिं० कपड़ा+गंध] कपड़ा जलने से निकलनेवाली दुर्गध।
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कपड़-छन  : पुं०=कपड़-छान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कपड़-छान  : पुं० [हिं० तपड़ा +छानना] १. महीन कपड़े में से किसी पिसे हुए चूर्ण को छानने की किया या भाव। २. वह वस्तु जो उक्त प्रकार से छानी गई हो।
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कपड़-मिट्टी  : स्त्री० [हिं० कपड़ा+मिट्टी] वैद्यक में धातु या ओषधि फूँकने के संपुट पर गीली मिट्टी के लेप के साथ कपड़ा लपेटने की किया। कपड़ौटी।
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कपड़-विदार  : पुं० [हिं० कपड़ा+सं० विदारण] १. दरजी। २. रफूगर। (र्डि०) ३. दे० ‘कपड़-खसोट’।
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कपड़ा  : पुं० [सं० कर्पण; प्रा० कप्पड़ ; दे० प्रा० कंपड़े; र्सि० कपग; मरा० गुं० बँ०, उ० कापंड ; पं० कप्पड़ा] १. ऊन, रूई, रेशन आदि के तागों अथवा वृक्षों की छालों के तंतुओं से बुना हुआ पदार्थ जो ओढ़ने, बिछाने, पहनने आदि के काम आता है। (क्लाथ) २. पहनावा। पोशाक। मुहा०—(किसी के) कपड़े उतार लेना=किसी का सब कुछ छीन या लूट लेना। कपड़े छीनना=पल्ला छुड़ाना। पीछा छुड़ाना। (अपने) कपड़े रँगना=गेरुए वस्त्र पहनकर त्यागी या साधु बनना। (स्त्रियों का) कपड़ों से होना=मासिक धर्म में होना। एकवस्त्रा होना। रजस्वला होना।
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कपड़ौटी  : स्त्री०= कपड़-मिट्टी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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