कलेजा/kaleja

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कलेजा  : पुं० [सं० यकृत से विपर्यय के कारण कृत्य, प्रा० कृज्ज] १. जंतुओं और मनुष्यों के धड़ के अन्दर का एक विशिष्ट अंग जो प्रायः पान के आकार का होता और भाथी की तरह सदा उभरता और दबता रहता है। और जिसकी इस क्रिया के फलस्वरूप सारे शरीर में रक्त का संचार होता है। हृदय। (हार्ट) विशेष—शरीर के इसी अंग में मन का निवास माना जाता है; इसलिए कुछ अवस्थाओं में और प्रायः मुहावरों में इसका अर्थ (क) मन या हृदय (ख) उदारता, प्रेम आदि तथा (ग) जीव तथा साहस भी होता है। जैसे—(क) जी चाहता है कि तुम्हें कलेजे में रख लूँ। (ख) जरा जी कड़ा करके यह काम कर डालो। मुहा०—कलेजा उछलना=किसी आकस्मिक और प्रबल मनोविकार (जैसे—प्रसन्नता, भय आदि) अथवा मानसिक आघात आदि के कारण उक्त अंग का जल्दी-जल्दी और जोर से चलने लगना। कलेजा उड़नाँ=आशंका, भय या विकलता के कारण होश ठिकाने न रहना। सुध-बुध भूल जाना। कलेजा उलटना=पीड़ा, रोग आदि के कारण ऐसा जान पड़ना कि अब उक्त अंग का काम बंद हो जायगा अर्थात् मृत्यु हो जायगी। कलेजा काँपना=बहुत भयभीत होने के कारण जी दहलना। कलेजा काढ़कर रख देना=अपने आपको सब प्रकार से किसी के लिए निछावर कर देना। कलेजा खानाँ=किसी को इतना तंग या दिक करना कि वह परेशान हो जाय। कलेजा छेदना या बींधनाँ=बहुत कठोर या चुभती हुई बातें कहकर मर्मबेधी आघात करना। कलेजा छलनी होना=बहुत अधिक कष्ट के कारण ऐसी स्थिति होना कि मानों कलेजे में जगह-जगह बहुत-से छेद हो गये हों। जैसे—किसी की गालियों या शापों से या बार-बार के मानसिक कष्ट या दुःख के कारण विशेष संताप होना। कलेजा टूटना या टुकड़े-टुकड़े होना=(क) बहुत अधिक मानसिक कष्य या संताप होना। (ख) उत्साह या साहस न रह जाना। कलेजा ठंडा या तर होना=अभिलाषा या इच्छा पूरी होने के कारण तृप्ति, शांति या संतोष होना। कलेजा थामकर बैठ या रह जाना=प्रबल मानसिक आघात के कारण कुछ करने-धरने में असमर्थ हो जाना। कलेजा बहलना=बहुत भयभीत होने के कारण अस्थिर तथा विकल होना। कलेजा धकधक करना=कलेजा धड़कना। कलेजा धक से हो जाना=सहसा कोई अनिष्ट बात सुनने से कुछ समय के लिए हृदय की गति रुक जाना। कलेजा धड़कनाँ=आशंका, भय, रोग आदि के कारण कलेजे में धड़कन होना। कलेजा निकलना=कष्ट, वेदना आदि के कारण ऐसा जान पड़ना कि शरीर के अन्दर कलेजा रह ही नहीं गया। (किसी के आगे) कलेजा निकाल कर रखना या रख देना=(दे०) कलेजा काढ़कर रख देना। (किसी का) कलेजा निकालना=(क) किसी की परम प्रिय वस्तु या सर्वस्व-हरण करना। (ख) बहुत अधिक, कष्ट पहुँचाना। व्यथिक करना। कलेजा पक जाना=कष्ट या दुःख सहते-सहते बहुत ही अधीर या असमर्थ और विकल हो जाना। कलेजा पसीजना=किसी को दुःखी देखकर दयार्द्र होना। हृदय-द्रवित होना। कलेजा फटना=बहुत अधिक मार्मिक कष्ट या वेदना होना। कलेजा बैठ जानाँ=मानसिक आघात आदि के कारण अक्रिय और असमर्थ-सा हो जाना। कलेजा बैठा जाना=ऐसा जान पड़ना कि अब प्राण न बचेंगे। (अपना) कलेजा मलना=मानसिक आघात या प्रहार होने पर अपने मन को धीरज बँधाने के लिए उस पर हाथ फेरना। (किसी का) कलेजा मलना=किसी को बहुत अधिक कष्ट पहुँचाना या दुःखी करना। कलेजा मसोस कर रह जाना=बहुत कुछ चाहते हुए भी असमर्थ या विवश होने के कारण कुछ कर न सकना। परम असमर्थता का अनुभव करना। कलेजा मुँह को आना=बहुत अधिक विकलता के कारण ऐसा जान पड़ना कि अब हम न बचेंगे। बहुत अधिक चिंतित और दुःखी होना। कलेजा सुलगना=मानसिक कष्ट या क्लेश के कारण मन का निरंतर खिन्न और दुःखी रहना। कलेजा हिलना=कलेजा दहलना। कलेजे पर साँप लोटना=किसी अप्रिय या असह्य घटना के कारण बहुत अधिक मानसिक कष्ट होना। कलेजे पर हाथ धर (या रख) कर देखना=अंतरात्मा या विवेक का ध्यान रखते हुए न्याय या सत्य की ओर ध्यान देना। कलेजे में आग लगना=बहुत अधिक हार्दिक कष्ट या दुःख होना। (किसी के) कलेजे में पैठना या घुसना=किसी के मन की थाह लेने के लिए उससे मेल-जोल बढ़ाना। पद—पत्थर का कलेजा=(क) ऐसा हृदय जो किसी का दुःख देखकर पसीजता न हो। (व्यक्ति) जिसमें दया, ममता या सहानुभूति न हो। (ख) ऐसा हृदय जो कष्ट सहने में यथेष्ट समर्थ हो। कलेजे का टुकड़ा=परम प्रिय वस्तु या व्यक्ति। २. उक्त अंग का ऊपरी या बाहरी भाग। छाती। वक्षस्थल। मुहा०—कलेजे से लगाकर रखना=बहुत ही प्रेम, यत्न या स्नेह से बराबर अपने पास या साथ रखना। ३. जीवट। साहस। हिम्मत। मुहा०—कलेजा बढ़ जाना=साहस या हिम्मत बढ़ जाना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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