काम/kaam

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काम  : पुं० [सं०√कम् (चाहना)+णिङ्+घञ्] [वि० कामुक, कामी, काम्य] १. किसी इष्ट बात की सिद्धि या वासना की पूर्ति के संबंध में मन में होनेवाली इच्छा या चाह। अभिलाषा, कामना, मनोरथ। २. अपने अपने विषयों के भोग की ओर होनेवाली इंद्रियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति जो धार्मिक क्षेत्र में चातुर्वर्ग या चार पदार्थों में से एक मानी गई है। विशेष—हमारे यहाँ धर्म, अर्थ काम और मोक्ष ये चार ऐसे पदार्थ कहे गये हैं जिनकी सिद्धि मनुष्य के जीवन में होना आवश्यक भी है और स्वाभाविक भी। ऐसे प्रसंगों में काम की प्राप्ति या सिद्धि का यह आशय होता है कि इंद्रियों की इष्ट, संगत और स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ चरितार्थ और पूरी होती रहें। ३. संभोग या स्त्री-प्रसंग की कामना। मैथुन या सहवास की इच्छा या प्रवृत्ति। ४. पुरुष और स्त्री के पारस्परिक संभोग या संयोग की इच्छा या कामना का देवता जिसे कामदेव भी कहते हैं। विशेष—रूप के विचार से यह कुमारोचित सुन्दरता का आदर्श और प्रतीक माना गया है, और इसकी पत्नी रति स्त्रियों की सुन्दरता की प्रतीक कही गई है। भिन्न-भिन्न आचार्यों या ग्रन्थों के मत के ०यह धर्म,ब्रह्मा अथवा संकल्प का पुत्र है। कहते हैं कि जब इसने शिवजी के मन पर अपना प्रभाव डालना चाहा था तब उन्होंने इसे भस्म कर डाला था। पर बाद में रति के विलाप करने पर वर दिया था कि अब यह शरीर-रहित होकर सदा जीवित रहेगा। तभी से इसे अनंग भी कहते हैं। ५. महादेव। शिव। ६. बलदेव का एक नाम ७. प्रद्युम्न का एक नाम जो परम सुन्दर होने के कारण कामदेव के अवतार कहे गये हैं। ८. वीर्य। शुक्र। ९. चार चरणों का एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में दो दीर्घ मात्राएँ होती हैं। १॰. रचना के विचार से एक विशिष्ट प्रकार का देव-मंदिर। (वास्तु)। पुं० [सं० कर्म, प्रा० पा० पं० कम्म, गु० मरा० काम० सिह० कमु] १. वह जो कुछ किया जाय,किया गया हो अथवा किया जाने को हो। क्रिया के परिणाम के रूप में होनेवाला किसी प्रकार का कार्य, कृत्य या व्यापार। जैसे—मनुष्य हरदम किसी-न-किसी काम में लगा रहता है। २. किसी विशिष्ट उद्देश्य से अथवा किसी प्रयोजन की सिद्धि के लिए किया जानेवाला कोई कार्य या कृत्य। जैसे—दफ्तर का काम करके आने पर घर का काम करना पड़ता है। मुहावरा—काम अटकना=बाधा के कारण काम का बीच में कुछ समय के लिए रूकना। जैसे—अब तो रुपए के बिना काम अटक रहा है। (किसी वस्तु का) काम करना=अपनी उपयोगिता, गुण या प्रभाव दिखलाना। जैसे—यह दवा तीन घंटे में अपना काम करेगी। कान चलना=(क) किसी कार्य का आरम्भ होना। (ख) किसी कार्य का बराबर संपादित होता रहना। जैसे—इमारत का काम बराबर चल रहा है। (किसी चीज से) काम चलाना या निकालना=आवश्यक वस्तुओं के अभाव में किसी दूसरी चीज में से जैसे—तैसे कार्य का निर्वाह करना। जैसे—कपड़ा न मिलने पर कागज से ही काम चलाना या निकालना। काम निकलना-(क) आवश्यकता पूरी होना। (ख) उद्देश्य या प्रयोजन सिद्ध होना। काम बनना=उद्दिष्ट रूप में या ठीक तरह से कार्य पूरा या सिद्ध होना। जैसे—(क) यदि वे किसी तरह राजी हो जायँ तो काम बन जाय। (ख) चलों, तुमने तो अपना काम बना लिया। (किसी आदमी या चीज से) काम लेना=उपयोग में लाकर उद्देश्य या कार्य सिद्ध करना। जैसे—जब तक कोई अच्छा नौकर नहीं मिलता तब तक इसी लड़के से काम लो। (किसी का) काम हो जाना=इतना अधिक परिश्रम या भार पड़ना कि मानों प्राणों पर संकट आ गया हो। जैसे—आज तो दिन भर लिखते-लिखते (या दौड़ते-दौड़ते) हमारा काम हो गया। ३. कोई ऐसा कार्य जिसकी पूर्ति या संपादन से कोई कृति प्रस्तुत होती हो। जैसे—इमारत का काम,कोश का काम। ४. व्यापार, सेवा आदि का कोई ऐसा कार्य जो जीविका-निर्वाह के लिए किया जाता हो। जैसे—(क) आज-कल उनके हाथ में कोई काम नहीं है। (ख) उनके पास जाने पर तुम्हें कोई काम मिल जायगा। ५. कोई ऐसा कार्य जिसके लिए बहुत अधिक कौशल, परिश्रम या योग्यता की आवश्यकता होती हो। पद—(कुछ करना) काम रखता है=(इस काम में) बहुत अधिक कौशल, परिश्रम या योग्यता अपेक्षित है। जैसे—ऐसा ग्रन्थ लिखना काम रखता है। ६. कोई ऐसी कृति या रचना जिसमें कर्त्ता ने उत्कृष्ट कौशल दिखलाया या विशेष परिश्रम किया हो। जैसे—कसीदे या जरदोजी का काम,पच्चीकारी या मीनाकारी का काम। ७. किसी कृति या रचना में दिखाई पड़नेवाला कर्त्ता का कौशल, परिश्रम या योग्यता (उसके उपादान से भिन्न) जैसे—जरा इन बेल-बूटों में कारीगर का काम तो देखो। ८. किसी कृति या रचना में लगा हुआ प्रधान या मुख्य उपादान अथवा सामग्री। जैसे—(क) उस मकान में ऊपर से नीचे तक पत्थर (या लकड़ी) का ही काम है। (ख) ऐसा कपड़ा लाओ जिसमें जरी (या रेशम) का काम हो। ९. उपयोग। प्रयोग। व्यवहार। मुहावरा—(किसी चीज, बात या व्यक्ति का) काम आना उपयोगी या व्यवहार के योग्य होना। जैसे—आखिर आपकी दोस्ती और किस दिन काम आवेगी। विशेष— हिंदी का यह मुहावरा उर्दू के उस (काम आना) मुहावरे से भिन्न है जिसका अर्थ होता है—लड़ाई-झगड़े में मारा जाना। इसे अंतिम मुहावरे के विवेचन और उदाहरण के लिए देखें नीचे फा०काम का अर्थ-वर्ग। काम में आना=उपयोग या व्यवहार में आना, प्रयुक्त या व्यवह्रत होना। जैसे—इतने दिनों से सँभालकर रखी हुई पुस्तक आज काम में आई है। काम लेना=(क) उपयोग या व्यवहार में लाना। जैसे—आप इस पुस्तक से भी कुछ काम ले सकते हैं। (ख) काम में लगाना। जैसे—आज इस नये आदमी से काम लेकर देखो। काम निकालना=किसी युक्ति से अपना उद्देश्य या मनोरथ सिद्ध करना। जैसे—तुमने तो बातों-बातों में ही अपना काम निकाल लिया। काम बनना=उद्देश्य या प्रयोजन सिद्ध होना। जैसे—चलो,तुम्हारा काम तो अब बन ही गया। पद—काम का=जिसका अच्छा या यथेष्ट उपयोग पूरा होता हो। जैसे—यह आदमी तो बहुत काम का निकला। १॰. ऐसा पारस्परिक संबंध या संपर्क जिससे कोई उद्देश्य पूरा होता हो। मतलब। वास्ता। सरोकर। जैसे—तुम्हें इन सब झगड़ों से क्या काम। उदाहरण—जाओ, जाओ, मोसों तोसों अब कहा काम। गीत। मुहावरा—अपने काम से काम रखना=अपने काम या प्रयोजन के सिवा और किसी बात से मतलब या संबंध न रखना। जैसे—वह जो चाहें सो करें, तुम अपने काम से काम रखो। (किसी के) काम पड़ना=इस प्रकार का संपर्क या संबंध होना कि बल, बुद्धि आदि की परीक्षा हो और उसके फलस्वरूप कुछ कटु अनुभव हो। पाला या साबिका पड़ना। जैसे—अभी तुम्हें किसी उस्ताद से काम नहीं पड़ा है नहीं तो इस तरह बढ-बढ़कर बातें न करते। उदाहरण—चंदन पड़ा चमार घर नित उठ कूटै चाम। चंदन रोवै सिर धुनै पड़ा नीच से काम। पुं० [सं० काम से फा०] १. इच्छा। कामना। २. इरादा। विचार। ३. अभिप्राय,उद्देश्य। मुहावरा—(किसी व्यक्ति का) काम आना=मार-काट या लड़ाई-झगड़े में मारा जाना। हत होना। जैसे—पहले महायुद्ध में साठ लाख आदमी काम आये थे। (किसी व्यक्ति का) काम चमाम करना=कौशल अथवा बल से किसी का अस्तित्व मिटाना। किसी के जीवन का अंत करना। जैसे—बेगम ने लौंड़ी से जहर दिवलवाकर अपनी नई सौत का काम तमाम कर दिया। विशेष—ये मुहावरे उर्दू से हिंदी में आये हैं इसलिए ये सं० काम के अर्थ-वर्ग में नही बल्कि फा० काम के अर्थ-वेग में रखे गये हैं। इनका आशय यही होता है कि किसी उद्देशय या प्रयोजन की सिद्धि में किसी के अस्तित्व या जीवन का उपयोग हुआ था अथवा किया गया था, अर्थात् उसकी बलि चढ़ी थी।
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काम-कला  : स्त्री० [ष० त०] १. मैथुन। रति। २. कामदेव की पत्नी रति। ३. तंत्रोपचार में शिव और शक्ति की प्रतीक सफेद और लाल बिन्दियों या बिंदुओं का संयोग।
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काम-कूट  : वि० [ब० स०] १. कामुक। २. व्यभिचारी। पुं० [ष० त०] १. कामुकता। २. वेश्यावृत्ति।
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काम-चलाऊ  : वि० [हिं० काम+चलाना] १. (ऐसी वस्तु) जो टिकाऊ न होने पर भी कुछ समय तक के लिए काम में आ सके। २. जैसे—तैसे कुछ काम चला देनेवाला।
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काम-चोर  : वि० [सं० काम+चोर] जो अपने कर्त्तव्य या कार्य से जी चुराता हो। जैसे—काम चोर नौकर।
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काम-ज्वर  : पुं० [मध्य० स०] वह ज्वर जो काम-वासना की पूर्ति न होने अथवा अधिक समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करने की दशा में होता है। (वैद्यक)।
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काम-तरु  : पुं० [मध्य० स०] १. कल्प-वृक्ष (दे०) २. बंदाल या बाँदा जो दूसरे वृक्षों पर चढ़कर पलता है।
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काम-तिथि  : स्त्री० [मध्य० स०] त्रयोदशी जो कामदेव की पूजा की तिथि कही गयी है।
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काम-दव  : पुं० [कर्म० स०] कामाग्नि (काम-वासना)।
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काम-दहन  : पुं० [ष० त०] १. शिवजी के द्वारा कामदेव के जलाये जाने की घटना। २. शिव।
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काम-दान  : पुं० [मध्य० स०] १. किसी की इच्छा या रुचि के अनुकूल भेंट की जानेवाली वस्तु। २. वेश्याओं का ऐसा नाच-रंग जिसमें लोग सब काम छोड़कर लीन हो रहे हों।
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काम-दूती  : स्त्री० [ष० त०] १. परवल की बेल। २. नागदंती नाम की घास।
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काम-देव  : पुं० [मयू० स०] पुराणों के अनुसार एक देवता जो काम-वासना के अधिष्ठाता माने गये हैं। इनकी पत्नी रति थी। शिव ने इन्हें अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया था। वसंत इनका साथी, कोयल वाहन और अस्त्र फूलों का धनुष-बाण कहा गया है। अनंग, मदन, मन्मथ। २. उक्त की प्रेरणा से जाग्रत होनेवाली कामवासना। ३. वीर्य।
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काम-धाम  : पुं० [सं० कर्म-धर्म से] १. तरह-तरह के काम। काम-काज। २. रोजगार। व्यवसाय।
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काम-धेनु  : स्त्री० [मध्य० स०] १. पुराणानुसार एक प्रसिद्ध गौ जो समुद्र मंथन के समय समुद्र में से निकलनेवाले चौदह रत्नों में से एक थी। और जो सब प्रकार की कामनाएँ पूरी करनेवाली कही गई है। सुरभी। २. वसिष्ठ की नंदिनी नामक गाय,जिसके लिए उन्हें विश्वामित्र से युद्ध करना पड़ा था। ३. दान के लिए सोने की बनाई हुई गौ की मूर्ति। ४. रहस्य संप्रदाय में मन की वृत्ति,जो सभी प्रकार के फल दे सकती है।
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काम-ध्वज  : पुं० [ष० त०] मछली जो कामदेव के झंडे पर बनी रहती है।
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काम-बाण  : पुं० [ष० त०] कामदेव के ये पाँच बाण-मोहन, उन्मादन, संतापन, शोषण और निश्चेष्टकरण।
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काम-भूरुह  : पुं० [मध्य० स०] कल्पवृक्ष।
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काम-रिपु  : पुं० [ष० त०] कामदेव के शत्रु अर्थात् शिव।
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काम-रुचि  : पुं० [ब० स०] सब प्रकार के अस्त्रों को व्यर्थ करनेवाला एक अस्त्र जो विश्वामित्र से श्रीरामचन्द्रजी को मिला था।
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काम-रूप  : वि० [ब० स०] जो इच्छानुसार अनेक प्रकार के रूप धारण कर सकता हो। पुं० १. देवता। २. एक प्राचीन राज्य जो करतोया नदी से असम प्रदेश और हिमालय तथा चीन तक फैला हुआ था। इसकी राजधानी प्रागज्योतिष में थी। इसी में कामख्या देवी का मंदिर है। ३. एक प्राचीन अस्त्र, जिससे शत्रु के फेंके हुए अस्त्र विफल किए जाते थे। ४. २६ मात्राओं का एक छंद जिसमें क्रमशः ९, ७ और १॰ के अन्तर पर यति और अन्त में गुरु-लघु होता है। ५. बरगद की तरह का एक बड़ा पेड़।
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काम-लोक  : पुं० [मध्य० स०] बौद्धों के अनुसार एक लोक।
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काम-वन  : पुं० [ष० त०] १. वह वन जिसमें तपस्या करते समय शिवजी ने कामदेव को भस्म किया था। २. मथुरा के पास का एक प्रसिद्ध तीर्थ।
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काम-वर  : वि० [सं० ] मनोहर। सुंदर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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काम-शर  : पुं० [ष० त०] १. कामबाण। (दे०) २. आम।
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काम-शास्त्र  : पुं० [मध्य० स०] वह शास्त्र जिसमें स्त्री और पुरुष के संभोग के प्रकारों रीतियों पारस्परिक आकर्षक तथा प्रेम-संबंधी बातों का विवेचन होता है।
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काम-सुत  : पुं० [ष० त०] अनिरूद्ध जो कामदेव के अवतार मानेजाने वाले प्रद्युम्न के पुत्र थे।
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कामकाज  : पुं० [हिं० काम+काज=कार्य] कई प्रकार के काम। काम-धंधा।
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कामकाजी  : पुं० [हिं० काम+काज] वह जो प्रायः काम-धंधे में लगा रहता हो या जिसके हाथ में अनेक काम रहते हों।
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कामकृत  : वि० [कामकृत] १. अपनी इच्छा के अनुसार काम करनेवाला। २. [च० त०] काम-वासना या विषय भोग से संबंध रखने या उसके कारण होनेवाला। जैसे—कामकृत ऋण, कामकृत रोग।
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कामग  : वि० [सं० काम√गम् (जाना)+ड] [स्त्री० कामगा] १. अपनी कामना या इच्छा के अनुसार काम करनेवाला। २. मनमाना आचरण करनेवाला। स्वेच्छाचारी। ३. कामुक। ४. व्यभिचारी। पुं० कामदेव
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कामगार  : पुं० १. मजदूर। २. कामदार (कार्याधिकारी)।
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कामचर  : पुं० [सं० काम√चर् (गति)+ट] १. अपनी अच्छा के अनुसार हर जगह पहुँच सकनेवाला। २. स्वेच्छापूर्वक विचरने या घूमने-फिरने वाला।
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कामचार  : पुं० [सं० काम√चर्+घञ्] [वि० कामचारी] १. स्वेच्छाचार। २. कामुकता। ३. स्वार्थता।
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कामचारी (रिन्)  : वि० [सं० काम√चर्+णिनि] १. अपनी इच्छानुसार विचरण करनेवाला। २. जब जहाँ चाहे तब वहाँ पहुँच सकने वाला। जैसे—देवगण कामचारी होते हैं। ३. काम-वासना की तृप्ति के लिए मनमाना आचरण करनेवाला। कामुक। लंपट।
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कामज  : वि० [सं० काम√जन्+ड] काम या वासना से उत्पन्न। जैसे—कामज व्यसन। पुं० क्रोध।
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कामजित्  : वि० [सं० काम√जि (जीतना+क्विप्] काम को जीतने या उस पर विजय प्राप्त करनेवाला। पुं० १. महादेव० शिव। २. कार्तिकेय। ३. जैनों में जिनदेव।
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कामड़िया  : पुं० [सं० कम्बल] संत रामदेव के अनुयायी साधु।
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कामणि  : स्त्री० [सं० कामिनी] सुन्दर स्त्री।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कामतः  : क्रि० वि० [सं० काम+तस्] इच्छा, उद्देश्य या कामना से। जान-बूझकर कर या स्वेच्छा से।
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कामत  : स्त्री० [अ० क्रामत] ऊँचाई के विचार से आकार। कद।
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कामता  : पुं० [सं० कामद] चित्रकूट के पास का एक गाँव। स्त्री० [सं० ] काम का भाव। कामत्व। पुं० =कामदगिरी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कामद  : वि० [सं० काम√दा (देना)+क] कामना पूरा करनेवाला। इच्छाओं की पूर्ति करनेवाला। जैसे—कामद मणि, कामद यज्ञ। उदाहरण—कामद भे गिरि रामप्रसादा।—तुलसी। पुं० १. ईश्वर २. सूर्य। ३. कार्तिकेय।
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कामद-गिरि  : पुं० [कर्म० स०] चित्रकूट में एक पर्वत जो सभी कामनाएँ पूरी करनेवाला कहा गया है।
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कामद-मणि  : पुं० [कर्म० स०] चिंतामणि नामक पौराणिक रत्न।
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कामदगाई  : स्त्री०=कामधेनु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कामदा  : स्त्री० [सं० काम√दा (देना)+क+टाप्] १. कामना पूर्ण करनेवाली एक देवी का नाम। २. कामधेनु। ३. चैत्र-शुक्ला एकादशी। ४. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रम से रगण, यगण, जगण तथा गुरु होता है।
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कामदानी  : स्त्री० [सं० काम+दान (प्रत्यय)] १. कपड़े आदि पर बादलों के तारों, सलमें, सितारे आदि से बनाया जानेवाला बेल-बूटों का काम। २. वह कपड़ा जिस पर उक्त प्रकार का काम बना हो। जैसे—कामदार टोपी। पुं० प्रधान कर्मचारी या कारिन्दा।
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कामदुधा  : स्त्री० [सं० काम√दुह् (दुहना)+क-टाप्] कामधेनु।
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कामधुक्  : वि० [सं० काम√दुह्+क्विप्] इच्छानुसार या मनमाना फल देनेवाला। स्त्री०=कामधेनु।
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कामन  : वि० [सं०√कम्+णिङ+ल्युट-अन] कामुक।
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कामना  : स्त्री० [सं०√कामि+युच् टाप्] १. अभीष्ट या हार्दिक इच्छा। जैसे—हमारी कामना है कि तुम फलो-फूलो। २. ऐसी इच्छा, जिसकी पूर्ति होने पर विशेष आनन्द तथा सुख मिलता हो। (विश्)।
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कामनी  : स्त्री०=कामिनी।
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कामपरता  : स्त्री० [सं० काम-पर, स० त०+तल्-टाप्] कामुकता।
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कामपाल  : वि० [सं० काम√पाल् (पालन करना)+णिच्+अण्] कामनाओं की पूर्ति करनेवाला। पुं० १. श्रीकृष्ण। २. बलराम। ३. महादेव। शिव।
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कामयाब  : वि० [फा] [भाव कामयाबी] जिसे सफलता हुई हो। सफल।
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कामर  : पुं० =कंबल।
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कामरान  : वि० [फा] जिसका उद्देश्य या प्रयत्न सिद्ध होल गया हो। सफल।
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कामरि  : स्त्री०=कमली (छोटा कंबल)।
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कामरी  : स्त्री० [सं० कंबल] छोटा कबंल। कमली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कामरु  : पुं० =कामरूप।
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कामरूपत्व  : पुं० [सं० कामरूप+त्व] एक प्रकार की सिद्धि जिससे साधक में अनेक प्रकार के मन-माने रूप धारण करने की शक्ति आती है।
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कामरूपी (पिन्)  : वि० [सं० कामरूप+इनि] [स्त्री० कामरूपिणी] १. इच्छानुसार रूप धारण करनेवाला। मायावी। २. सुन्दर।
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कामल  : पुं० [सं०√कम (चाहना)+णिच्+कलच्] १. वसंत ऋतु। २. कामला या पीलू नामक रोग। पीलिया। वि० कामी। कामुक।
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कामला  : पुं० [सं० कामल] कमल या पीलिया नामक रोग।
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कामली  : स्त्री०=कमली।
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कामवती  : स्त्री० [सं० काम+मतुप्, ङीष्] दारुहल्दी। वि० [कामवान का स्त्री रूप] रूपवती स्त्री। सुन्दरी।
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कामवान् (वत्)-  : वि० [सं० काम+मतुप्] [स्त्री० कामवती] १. जिसके मन में कामना हो। २. रूपवान। सुंदर।
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कामसखा  : पुं० [सं० कामसख] कामदेव का मित्र वसंत। (ऋतु)।
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कामा  : स्त्री० [सं० काम+टाप्] १. कामिनी स्त्री० २. एक वर्णिक छन्द जिसके प्रत्येक चरण में दो गुरु होते हैं। जैसे—ध्याये, राधा, त्यागे बाधा। पुं० [अं० कॉमा] अल्प विराम (दे०)।
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कामाक्षी  : स्त्री० [काम-अक्षि, ब० स० षच् प्रत्यय ङीष्] १. दुर्गा की एक मूर्ति। २. असम का एक प्रदेश जहाँ उक्त मूर्ति स्थापित है।
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कामाख्या  : स्त्री० [काम-आख्या, ब० स०] दुर्गा की एक मूर्ति।
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कामाग्नि  : स्त्री० [काम-अग्नि, उपमित० स०] उत्कट या तीव्र कामवासना। संभोग की प्रबल इच्छा।
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कामातुर  : वि० [काम-आतुर, तृ० त०] जो काम-वासना के कारण बहुत आतुर या विकल हो रहा हो।
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कामात्मज  : पुं० [काम-आत्मज, ष० त०] प्रद्युम्न (कामदेव का अवतारी रूप) के पुत्र अनिरुद्ध।
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कामाद्रि  : पुं० [काम-अद्रि, मध्य० स०] असम देश का एक पर्वत।
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कामांध  : वि० [काम-अंध, तृ० त०] जो काम-वासना के कारण अंधा अर्थात् विवेक से रहित हो रहा हो। परम कामातुर।
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कामानुज  : पुं० [काम-अनुज, ष० त०] काम-वासना के कारण उत्पन्न होनेवाला तामस भाव या मनोविकार।
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कामायनी  : स्त्री० [सं० काम-अयन, ष० त० कामायन+ङीष्] १. स्त्री। २. [काम+फक्-आयन, ङीष्] कामगोत्र में उत्पन्न स्त्री० ३. पुराणानुसार कामदेव और रति की कन्या, जिसका विवाह वैवस्वत् मनु से हुआ था।
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कामायुध  : पुं० [काम-आयुध, उपमित स०] १. कामदेव का अस्त्र। काम-बाण। २. आम (वृक्ष और फल)।
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कामारथी  : पुं० =कामार्थी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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कामारि  : पुं० [काम-अरि, ष० त०] कामदेव के शत्रु महादेव।
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कामार्त  : वि० [काम-आर्त, तृ० त०]=कामातुर।
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कामावशायिता  : स्त्री० [सं० काम-अव√शी (निश्चय करना)+णिच्+तल्, टाप्] सत्य संकल्पता जो योगियों की आठ सिद्धियों या ऐश्वर्यों में से है।
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कामावसयिता  : स्त्री० [सं० काम-अव√सो (अंत करना)+णिच्+णिनि+तल्, टाप्]=कामावशायिता।
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कामिक  : वि० [सं० काम+ठन्-इक]=कामित।
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कामिका  : स्त्री० [सं० कामिक+टाप्] श्रावण कृष्ण एकादशी।
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कामित  : वि० [सं० कम् (चाहना)+णिच्+क्त] जिसकी कामना की गई हो। अभिलषित। स्त्री०=कामना।
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कामिनियाँ  : पुं० [देश] एक प्रकार का छोटा पेड़ जिसकी राल से एक प्रकार का लोबान बनता है।
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कामिनी  : स्त्री० [सं० काम+इनि, ङीष्] १. ऐसी स्त्री जिसके मन में कामवासना हो। कामवती। २. सुंदरी स्त्री, जिसकी कामना की जाय या की जा सके। ३. कृपालु या स्नेहमयी स्त्री। ४. मालकोस राय की एक रागिनी। ४. मदिरा। शराब। ६. पेड़ों पर होनेवाला परगाछा। बाँदा। ७. दारूहल्दी। ८. एक प्रकार का वृक्ष, जिसकी लकड़ी से मेज, कुरसियाँ बनती है।
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कामिनी कांत  : पुं० [ष० त०] एक प्रकार का वर्णवृत्त।
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कामिनी मोहन  : पुं० [ष० त०] स्रग्विणी छंद का दूसरा नाम।
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कामिल  : वि० [अ०] १. पूरा। पूर्ण। २. कुल। सब। ३. समूचा। सारा। ४. जिसने किसी कार्य या विषय में पूर्ण योग्यता प्राप्त की है। पूर्ण ज्ञाता।
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कामी (मिन्)  : वि० [सं० काम+इनि] [स्त्री० कामिनी] १. जिसके मन में कोई कामना हो। उदाहरण—जहाँ मनुज पहले स्वतन्त्रता से हो रहा साम्य का कामी।—दिनकर। २. काम-वासना में रत रहनेवाला। विषयी। पुं० १. विष्णु का एक नाम। २. चंद्रमा। ३. चकवा या चक्रवाक पक्षी। ४. कबूतर। ५. गौरैया या चिड़ा नामक पक्षी। ६. सारस।
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कामुक  : वि० [सं०√कम्+उकञ्] [स्त्री० कामुका] १. कामना या इच्छा करनेवाला। चाहनेवाला। २. जिसके मन में प्रायः कामवासना रहती हो। कामी। विषयी। पुं० १. अशोकवृक्ष। २. माधवीलता। ३. गौरैया या चिड़ा पक्षी।
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कामुका  : स्त्री० [सं० कामुक+टाप्] एक प्रकार का मातृका दोष, जो बालकों को रोग के रूप में उनके जन्म के बारहवें दिन, बारहवें महीने या बारहवें वर्ष होता है। (वैद्यक)।
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कामुकी  : स्त्री० [सं० कामुक+ङीष्] १. कामवती स्त्री। २. व्यभिचारिणी।
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कामेश्वरी  : स्त्री० [काम-ईश्वरी, ष० त०] १. कामाख्या की पाँच मूर्तियों या रूपों मे से एक। २. तंत्र में एक भैरवी का नाम।
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कामोद  : पुं० [कु-आमोद, ब० स० कु-क आदेश] रात के पहले पहर में गाया जानेवाला संपूर्ण जाति का एक राग, जो मालकोस का पुत्र माना गया है।
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कामोद-कल्याण  : पुं० [ब० स०] संपूर्ण जाति का एक संकर राग जो कामोद और कल्याण के योग से बनता है तथा जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं।
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कामोद-तिलक  : पुं० [ब० स०] रात के पहले पहर में गाया जानेवाला बाड़व जाति का एक संकर राग, जो कामोद और तिलक के योग से बनता है।
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कामोद-नट  : पुं० [ब० स०] संपूर्ण जाति का एक संकर राग, जो कामोद और नट के योग से बनता है।
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कामोद-सामन्त  : पुं० [ब० स०] रात के तीसरे पहर में गाया जानेवाला बाड़व जाति का एक राग, जो कामोद और सामंत के योग से बनता है।
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कामोदक  : पुं० [काम-उदक, मध्य० स०] किसी मृत प्राणी, विशेषतः किसी मित्र या दूर के संबंधी को दी जानेवाली जलांजलि।
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कामोदा  : स्त्री० [सं० कामोद+टाप्] दे० ‘कामोदी’।
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कामोदी  : स्त्री० [सं० कामोद+ङीष्] रात के दूसरे पहर में गाई जाने वाली संपूर्ण जाति की एक रागिनी जो कामोद की स्त्री मानी गई है।
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कामोद्दीपक  : वि० [काम-उद्दीपक, ष० त०] (वस्तु या स्थिति) जो मनुष्य के मन में काम-वासना जगावे या तीव्र करे।
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कामोद्दीपन  : पुं० [काम-उद्दीपन, ष० त०] १. काम-वासना को उद्दिप्त या तीव्र करना। २. काम-वासना का उद्दीप्त या तीव्र होना।
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कामोन्माद  : पुं० [सं० काम-उन्माद, मध्य० स०] युवकों और युवतियों को होनेवाला वह उन्माद रोग जो काम-वासना की पूर्ति न होने के कारण होता है।
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काम्य  : वि० [सं०√कम्+णिङ+यत्] १. जिसकी कामना की गई हो अथवा की जा सके। जो कामना किये जाने के योग्य हो। २. जो किसी की इच्छा या रुचि के अनुकूल या अनुसार हो। ३. प्रिय,सुन्दर और सुखद। ४. जिससे अथवा जिसके द्वारा कामना की सिद्धि होती हो अथवा हो सकती हो। जैसे—काम्य धर्म। ५. जो अपनी इच्छा से होता हो या हो सकता हो। जैसे—काम्य मरण।
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काम्य-कर्म (न्)  : पुं० [कर्म० स०] किसी उद्देश्य या कामना की सिद्धि के लिए किया जानेवाला कोई अनुष्ठान या कार्य।
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काम्य-मरण  : पुं० [कर्म० स०] १. अपनी इच्छा से अर्थात् जब जी चाहे तब मरना। २. मुक्ति।
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काम्या  : स्त्री० [सं० √कम्+णिङ्+क्वय्, टाप्] १. कामना। २. प्रयोजन। ३. उद्देश्य।
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काम्येष्टि  : स्त्री० [सं० काम्या-इष्टि, कर्म० स०] वह यज्ञ जो किसी कामना की पूर्ति के लिए किया जाता हो। जैसे—पुत्रेष्टि।
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