शब्द का अर्थ
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					कोट					 :
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					पुं० [सं०√कुट (टेढ़ा होना)+घञ्, प्रा० कोट्ट] १. सेना के रहने के लिए बना हुआ बड़ा पक्का भवन। दुर्ग। २. राजमहल। ३. परकोटा। प्राचीर। ४. रहस्य-संप्रदाय में शरीर। पुं० [अं०] अंग्रेजी ढंग का एक प्रसिद्ध पहनावा। पुं० [सं० कोटि] १. झुंड। समूह। २. लंबाई। विस्तार। उदाहरण—सुमिरत पट को कोट बढ़्यौ तब, दुख-सागर उबर्यौ।—सूर।				 | 
			
			
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					कोट-चक्र					 :
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					पुं० [ष० त०] एक प्रकार का चक्र जिसका प्रयोग युद्ध से पहले अपने दुर्ग का शुभाशुभ परिणाम जानने के लिए किया जाता था ।(तंत्रशास्त्र)।				 | 
			
			
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					कोट-तीर्थ					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] चित्रकूट तथा गंधमादन पर्वत पर की पुण्य स्थलियाँ। उदाहरण—फिर कोटतीर्थ देवांगनादि।—निराला।				 | 
			
			
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					कोटक					 :
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					वि० [सं०√कुट्+ण्वुल्-अक] १. कोट संबंधी। २. कोट भवन या झोपड़े बनानेवाला। पुं० एक जाति जो प्रायः बढ़ई का काम करती है। वि०=कोटिक।				 | 
			
			
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					कोटगंधल					 :
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					पुं० [देश०] मजबूत और चिकनी लकड़ीवाला एक छोटा पेड़।				 | 
			
			
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					कोटपाल					 :
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					पुं० [सं० कोट√पाल (रक्षा करना)+णिच्+अच्] दुर्ग की रक्षा करनेवाला सैनिक अधिकारी। किलेदार।				 | 
			
			
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					कोटपीस					 :
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					स्त्री० [अ० कोर्टपीस०] ताश का एक प्रसिद्ध खेल जिसमें चार आदमी दो पक्ष बनाकर खेलते हैं।				 | 
			
			
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					कोटभरिया					 :
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					स्त्री० [सं० कोष्ट+हिं० भरना] नाव के किनारों पर ऊपर की ओर जड़ी हुई लकडी।				 | 
			
			
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					कोटर					 :
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					पुं० [सं० कोट√रा (दान)+क] १. पेड़ का वह खोखला अंश या भाग जिसमें पक्षी साँप आदि रहते हैं २. किले की रक्षा के लिए लगाया हुआ उसके आसपास का वन।				 | 
			
			
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					कोटरा					 :
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					स्त्री० [सं० कोटर+टाप्] बाणासुर की माता का नाम।				 | 
			
			
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					कोटरी					 :
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					स्त्री० [सं० कोट√री (गति)+क्विप्] दुर्गा। चंडिका।				 | 
			
			
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					कोटवा					 :
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					पुं० [सं० कोट] छोटा दुर्ग। छोटा कोट। उदाहरण—रुंधयो साहि हिंदूनि नृप कोटव्वा लंगर गुनह।—चंदवरदाई।				 | 
			
			
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					कोटवार					 :
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					पुं० १. =कोटपाल। २. =कोतवाल।				 | 
			
			
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					कोटा					 :
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					पुं० [अ०] वह आनुपातिक अंश या भाग जो किसी या प्रत्येक सदस्य को नियत रूप में मिलने को हो। यथांश।				 | 
			
			
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					कोटि					 :
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					स्त्री० [सं०√कुट्+इञ्०] १. धनुष का सिरा। २. अर्द्ध-चंद्र का सिरा। ३. अस्त्र की नोक या धार। ४. एक ही प्रकार की वस्तुओं या लोगों की वह श्रेणी या वर्ग जो क्रमिक उत्कृष्टता के विचार से बनाया गया हो। (ग्रेड) ५. किसी वाद-विवाद का पूर्व पक्ष। ६. किसी विचारणी या विवादग्रस्त बात के पक्ष और विपक्ष में कही जानेवाली हर तरह की बात या विचार। जैसे—इन सभी कोटियों में एक तत्त्व समान रूप से पाया जाता है। ७. उत्कृष्टता। ८. किसी ९॰ अंश के चाप के दो भागों में से एक। ९. किसी त्रिभुज या चतुर्भुज के आधार और कर्ण से भिन्न रेखा। १॰. राशि चक्र का तीसरा अंस या खंड। ११. असबर्ग नामक ओषधि। वि०=करोड़ (संख्या)।				 | 
			
			
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					कोटि-क्रम					 :
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					पुं० [ष० त०] १. विकास क्रम की दृष्टि से किसी वस्तु या विषय की बनाई या लगाई जाने हुई कोटियाँ या वर्ग। २. तर्क में विचार प्रकट करने का ढंग या प्रकार।				 | 
			
			
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					कोटि-च्युत					 :
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					वि० [पं० त०] १. (व्यक्ति) जो किसी ऊँची कोटि (या पद) से हटाकर निम्न कोटि में भेज दिया गया हो। २. जिसकी किसी कोटि से अवनति हुई हो। (डिग्रेडेड)				 | 
			
			
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					कोटि-ज्या					 :
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					स्त्री० [मध्य० स०] ग्रहों की स्पष्टता के लिए बनाये जाने वाले एक प्रकार के क्षेत्र का एक विशिष्ट अंश।				 | 
			
			
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					कोटि-तीर्थ					 :
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					पुं० [ब० स०] चित्रकूट का गंधमादन पर्वत पर का एक तीर्थ।				 | 
			
			
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					कोटि-परीक्षा					 :
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					स्त्री० [मध्य० स०] किसी विभाग के कर्मचारियों की ली जानेवाली वह परीक्षा जिसमें उत्तीर्ण होने पर वे ऊँची कोटि में रखे जाते हैं। (ग्रेड इग्जामिनेशन)				 | 
			
			
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					कोटि-बद्ध					 :
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					वि० [स० त०] १. किसी विशिष्ट कोटि में रखा हुआ। २. जो छोटी-बड़ी कोटियों में विभक्त हो। (ग्रेडेड)।				 | 
			
			
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					कोटि-बंध					 :
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					पुं० [स० त०] बहुत-सी वस्तुओं, व्यक्तियों या कार्यकर्त्ताओं को उनके महत्त्व, विकास-क्रम, वे तन आदि के अनुसार अलग-अलग कोटियों में बाँधना या स्थान देना। कोटियाँ स्थिर करना। (ग्रेडेशन)।				 | 
			
			
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					कोटिक					 :
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					वि० [संकोटि+क] १. कई करोड़। करोड़ों। २. बहुत अधिक। असंख्य।				 | 
			
			
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					कोटिफली (लिन्)					 :
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					पुं० [सं० कोटि-फल, ष० त०+इनि] गोदावरी के संगम के निकट का एक प्रसिद्ध तीर्थ।				 | 
			
			
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					कोटिशः (शस्)					 :
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					क्रि० वि० [सं० कोटि+शस्] अनेक प्रकार से। वि० असंख्य। बहुत अधिक।				 | 
			
			
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					कोटी					 :
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					स्त्री० [सं०√कु+इन्, ङीष्]=कोटि। स्त्री० [अं० कोट] स्त्रियों के पहनने की चोली जिसकी आकृति कोट जैसी होती है।				 | 
			
			
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					कोटीर					 :
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					पुं० [सं० कोटि√ईर् (गति)+अण्] १. किरीट। जटा।				 | 
			
			
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					कोटीश्वर					 :
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					पुं० [सं० कोटि-ईश्वर, ष० त०] करोड़पति।				 | 
			
			
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					कोटू					 :
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					पुं० [देश] एक प्रसिद्ध पौधा जिससे बीजों का आटा फलाहार में गिना जाता है। कुटू।				 | 
			
			
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					कोट्ट					 :
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					पुं० =कोट।				 | 
			
			
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					कोट्टवी					 :
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					स्त्री० [सं० कोट्ट√वा (गति)+क, ङीष्] १. दुर्गा। २. बाणासुर की माता। ३. नंगी स्त्री।				 | 
			
			
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					कोट्टार					 :
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					पुं० [सं०√कुट्+अराक, पृषो० सिद्धि] १. किला। कोट। २. कूआँ या तालाब। ३. तालाब की सीढ़ियाँ। ४. लपट।				 | 
			
			
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					कोट्यधीश					 :
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					पुं० [सं० कोट-अधीश, ष० त०] करोड़पति। बहुत बड़ा धनी।				 | 
			
			
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