गरम/garam

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गरम  : वि० [सं० धर्म से फा० गर्म] [क्रि० गरमाना, भाव, गरमाहट, गरमी] १. (पदार्थ) जिसका ताप-मान जीवों या प्राणियो के सहज और स्वाभाविक ताप-मान से कुछ अधिक हो। जैसे–नहाने का गरम पानी, दोपहर की गरम हवा। २. (प्राणी या शरीर) जिसका ताप-मान सहज या स्वाभाविक से कुछ अधिक या ऊपर हो। उस प्रकार का जैसा ज्वर या बुखार में होता है। जैसे–रोज संध्या को इसका बदन गरम हो जाता है। ३. (शरीर) जिसमें सहज और स्वाभाविक ताप-मान वर्तमान हो। प्रसम ताप-मानवाला। जैसे–शरीर का गरम रहना जीवन का लक्षण है। ४. (पदार्थ) जो अग्नि, धूप आदि के संयोग से जल या तप रहा हो। जिसे छूने से शरीर में जलन होती है। जैसे–कड़ाही (या तवा) गरम है, इसे मत छूना। ५. (पदार्थ) जिसमें विद्युत की धनात्मक या सहिक धारा प्रवाहित हो रही हो। जैसे–बिजली का गरम तार छूना प्राणियों के लिए घातक होता है। ६. (प्रदेश या भू-भाग) जो विषुवत् रेखा पर या उसके पास स्थित हो और इसी लिए जहाँ गरमी अपेक्षया अधिक पड़ती हो। जैसे–अरब, चीन, भारत आदि गरम देश हैं। ७. (औषध या खाद्य पदार्थ) जो शरीर के अंदर पहुँचकर उष्णता या ताप उत्पन्न करता हो। जिसकी तासीर या प्रभाव तापकारक हो। जैसे–जायफल, मिर्च, लौग आदि मसाले गरम होते हैं। ८. (पदार्थ) जो शरीर के ऊपरी भाग पर से शीत का प्रभाव कम करके उसमें हलकी उष्णता या ताप लाता हो। जैसे–जाड़े में सब लोग गरम कपड़े पहनते हैं। ९. (प्रकृति या स्वभाव) जिसमें उग्रता, क्रोध, द्वेष आदि तीव्र बातें अधिक प्रधान तथा प्रबल रहतीं हों। जैसे–वे गरम मिजाज के आदमी हैं। मुहावरा–(किसी से) गरम पड़ना या होना=आवेश या क्रोध में आकर किसी से लड़ने-झगड़ने पर उतारू होना। १॰. जो किसी रूप में उग्र, उत्कट या तीव्र हो अथवा जो किसी कारण से ऐसा हो गया हो। जैसे–तुम्हारी ऐसी ही बातों से हमारा मिजाज गरम हो जाता है। ११. (मादा पशु) जो काम-वासना के वश में होकर गर्भ धारण करने के लिए उत्सुक या उपयुक्त हों। जैसे–कुतिया या गौ का गरम होना। १२. जिसमें आवेश, उत्साह, तीव्रता आदि बातें यथेष्ट मात्रा में हों। जिसमें अभी तक किसी प्रकार की मंदता, शिथिलता, ह्रास आदि के लक्षण न दिखाई देतें हों। जैसे–(क) अभी तुम्हारा खून गरम है, जब बड़े होगे तब तुममें सहनशीलता आवेगी। (ख) अभी यह मसाला (या विवाद) इतना गरम है कि इसका निपटारा हो ही नहीं सकता। १३. (चर्चा या बात) जिसका यथेष्ट प्रचलन हो। जैसे–आज शहर में एक नई खबर गरम है। १४. बिलकुल तुरंत या हाल का। बहुत ही ताजा। जैसे–अभी तो चोट गरम है, कुछ देर बाद दरद बढ़ेगा। १५. (बात-चीत) जिसके प्रसंग में कुछ उग्रता उत्तेजना या कटुता आ गई हो। जैसे–संसद में इस विषय में खूब गरम बहस हुई थी। १६. (बाजार या भाव) जिसमें खूब चहल पहल या तेजी हो। जो चलता हुआ या बढती पर हो। जैसे–आज सोने का बाजार गरम है। मुहावरा–(किसी चीज या बात का) बाजार का गरम होना=बहुत अधिकता, तीव्रता या प्रबलता होना। जैसे–(क) आज-कल हैजे का बाजार गरम है। (ख) शहरों में चोरियों का बाजार गरम है।
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गरम-कपड़ा  : पुं० [हिं०] शरीर गरम रखनेवाला और जाड़े में पहनने का कपड़ा। ऊनी अथवा रूईदार कपड़ा।
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गरम-पानी  : पुं० [हिं०] १. वीर्य। शुक्र। (बाजारू) २. मदिरा। शराब।
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गरम-मसाला  : पुं० [हिं०] भोजन में मिलाई जानेवाली ऐसी चीजें जो उसे चरपरा, पाचक और सुस्वादु बनाती है। जैसे–दालचीनी, धनियाँ मिर्च, लौंग आदि।
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गरमाई  : स्त्री० [फा० गरम से पंजाबी] १. गरमी। २. ऐसी वस्तु जिसके उपयोग या सेवन से शरीरिक शक्ति बढती हो। जैसे–जच्चा को गरमाई खिलाओ, तबी वह जल्दी स्वस्थ होगी।
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गरमागरम  : वि० [हिं०+गरम+गरम] १. ऐसा गरम जिसमें अभी ठंडक बिलकुल न आने पायी हो। काफी गरम। जैसे–गरमागरम चाय या दूध। २. बिलकुल ताजा या तुरन्त का। जैसे–गरमागरम खबर। ३. उत्तेजना से युक्त। जैसे–गरमागरम बहस।
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गरमागरमी  : स्त्री० [हिं०+गरमा+गरम] १. किसी काम में जल्दी से निपटाने या समाप्त करने में होनेवाली तेजी। तत्परता। मुस्तैदी। २. अन-बन या झगड़ा होने की स्थिति या भाव। ३. आवेशपूर्ण कहा-सुनी।
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गरमाना  : स० [फा० गर्म, हिं० गरम+आना (प्रत्यय)] १. कोई चीज आग पर रखकर उसे साधारण या हलका गरम करना। जैसे–पीने के लिए दूध या खाने के लिए ठंडी रोटी गरमाना। २. साधारण उष्णता या ताप से युक्त करना। जैसे–आग तापकर या धूप सेंककर हाथ-पैर गरमाना, रजाई ओढ़कर शरीर गरमाना। ३. ऐसा काम करना या ऐसी स्थिति उत्पन्न करना जिससे किसी में कुछ गरमी (आवेश, उत्तेजना, उत्साह, तीव्रता, प्रसन्नता आदि) उत्पन्न हो। जैसे–(क) कोई तीखी बात कहकर किसी आदमी को गरमाना। (ख) शराब पिलाकर भैसों को गरमाना। (ग) कुछ दूर दौड़ाकर घोड़े को गरमाना। (घ) गवैये का आरंभ में धीरे-धीरे कुछ समय तक गाकर अपना गला गरमाना। ४. किसी से जेब, हाथ आदि के संबंध में उसमें कुछ धन रखकर उसे प्रसन्न या संतुष्ट करना। जैसे–उसने थानेदार (या पेशकार) का जेब (या हाथ) गरमाकर उसे अपने अनुकूल कर लिया। अ० १. साधारण या हलकी उष्णता या ताप से युक्त होना। गरम होना। जैसे–(क) थोड़ी देर आँच पर रहने से दूध या पानी का गरमाना। (ख) आग तापने या कम्बल ओढ़ने से शरीर का गरमाना। २. आवेश, उत्तेजना आदि उग्र अथवा तीव्र मनोंभावों से युक्त होना। जैसे–जरा सी बात पर इस तरह गरमाना अच्छा नहीं होता। ३. किसी आरंभिक या औपचारिक क्रिया के प्रभाव से किसी प्राणी या उसके किसी अंग का तेजी पर आना और ठीक तरह से अपना काम करने के योग्य होना। जैसे–(क) कुछ दूर दौड़ने से घोडे का गरमाना। (ख) कुछ देर तक धीरे-धीरे गा लेने पर गवैये का गला गरमाना। ४. स्वाभाविक रूप से पशुओं आदि का उमंग में आना और काम-वासना से युक्त होना। जैसे–गौ या घोड़े का गरमाना। ५. जेब हाथ आदि के संबंध में रुपये-पैसे की उत्साह-वर्धक या सुकद प्राप्ति होना। जैसे–आज कई दिन बाद इनका जेब (या हाथ) गरमाया है।
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गरमाहट  : स्त्री० [हिं० गरम+आहट(प्रत्यय)] १. गरम होने की अवस्था या भाव। २. कुछ हलकी गरमी। जैसे–कमरे में अब गरमाहट आयी है।
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गरमी  : स्त्री० [फा०] १. गरम होने की अवस्था, गुण या भाव। जैसे–आग या धूप की गरमी। २. वर्षा से पहले या बसंत के बाद की ऋतु। ग्रीष्म काल। जेठ-असाढ़ के दिन। जैसे–इस साल गरमी में पहाड़ पर जाने का विचार है। ३. किसी प्रकार का मानसिक आवेग या उमंग। जोश। मुहावरा–(अपनी) गरमी निकालना=मैथुन या संभोग करना। (बाजारू)। (किसी की) गरमी निकालना=ऐसा कार्य करना जिससे किसी का आवेग या क्रोध सदा के लिए अथवा कुछ दिनों के लिए दूर होकर मंद या शांत पड़ जाए। ५. दृष्ट मैथुन से जननेंद्रिय में होने वाला एक भीषण रोग। आतशक या फिरंग रोग। (सिफलिस) ६. घोड़ो और हाथियों को होनेवाला एक प्रकार का रोग। ७. दे० ‘ताप’।
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गरमीदाना  : पुं० [हिं० गरमी+दाना] अधिक गरमी पड़ने के कारण शरीर पर निकलनेवाले छोटे-छोटे लाल दाने। अँभौरी। पित्ती।
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